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यूपी की पहली कारपोरेट कल्चर की ISO तहसील बनी लखीमपुर सदर, एसडीएम अरुण सिंह को मिला तमगा

#बिल्डिंग से लेकर कर्मचारी तक सब कुछ मल्टीनेशनल कंपनी के दफ्तर की  तर्ज पर विकसित किया.

#फरियादी ड्रेस देख पहचान  सकेगा सामने वाले कर्मचारी का पद, दलालों से मिलेगी निजात.

#तहसील के निर्माण और कर्मचारियों के सहयोग से हो पाया संभव- एसडीएम अरुण सिंह.

#हेल्पडेस्क के साथ ही साथ अन्य जन सुविधाओं का रखा ख्याल, लोगों से मिल रही वाहवाही.             

अफसरनामा ब्यूरो  

लखीमपुर :  बोसीदा फाइलों, सुस्त कामकाज, लेटलतीफी के लिए मशहूर यूपी की तहसीलों में से एक लखीमपुर सदर की रंगत बदल गयी है. हमेशा लीक से हटकर काम करने के मशहूर एसडीएम अरुण सिंह के खास प्रयासों के चलते इस तहसील को उत्कृष्टता के लिए दुनिया भर में प्रतिष्ठित आईएसओ 9001 का प्रमाण पत्र दिया गया है. वैसे तो प्रदेश में आईएसओ प्रमाणित और भी तहसीलें हैं लेकिन मल्टीनेशनल तर्ज पर कारपोरेट कल्चर की आईएसओ प्रमाण पत्र पाने वाली यह यूपी की पहली तहसील बन गयी है. बदली हुयी रंगत और कामकाज के तरीकों के लिए सदर लखीमपुर तहसील की जनता अपने इस कर्मठ एसडीएम अरुण सिंह को सराह रही है.

एसडीएम सदर अरुण कुमार सिंह के अनुसार वह अभी तक अपनी तहसील की तैनातियों में आने वाले फरियादियों को देखते थे तो पीड़ा होती थी. उनका कहना है कि तहसील और थानों में आने वाला कोई पीड़ित ही होता है. ऐसे में उसकी परेशानी और अज्ञानता का लाभ उठा तहसीलों में दलाल सक्रीय रहते हैं और तहसील दलाली का अड्डा बन जाती है. तहसील को इसी दलाली से मुक्ति दिलाने और आमजन में तहसील को लेकर बनी गलत अवधारणा को दूर करने के लिहाज से उन्होंने इस तरह की व्यवस्था करने की सोची और अंततः उसमें सफल ही नहीं रहे बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य के लिए नजीर बने. एसडीएम अरुण इसका पूरा श्रेय अपने तहसील स्टाफ को देते हैं जिसकी वजह से आज यह सरकारी तहसील किसी मल्टीनेशनल कंपनी के दफ्तर से कम नहीं है.

इस हाईटेक तहसील में बैठने वाले हर स्टाफ को आप उसके ड्रेस से पहचान सकते हैं कि वह लेखपाल है अथवा कानूनगो या फिर कोई और सबके अलग ड्रेस हैं. मजे की बात यह है कि इस निर्धारित ड्रेस को पहनने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया गया बल्कि समस्त स्टाफ अपने जेब खर्च से ड्रेस को बनवाया है. तहसील को एक मल्टीनेशनल कंपनी के दफ्तर का लुक देने के लिए एसडीएम की मेहनत, उनके स्टाफ का सहयोग और आम लोगों की सहभागिता ही उनकी लोकप्रियता, विजन और कार्यशैली की परिचायक है. वैसे तो इस तहसील को बनवाने में लगे खर्च को राजस्व परिषद ने वहन किया लेकिन इसके लिए अरुण कुमार को निर्माण कार्य में सहयोगार्थ जनसहयोग भी मिला और लोगों ने बढ चढ़कर हिस्सा लेते हुए निर्माण सामाग्री आदि का सहयोग किया.

लखीमपुर खीरी तहसील को  ISO 9001 का प्रमाण पत्र मिला, छह महीनों की कड़ी मेहनत के बाद मिली इस उपलब्धि से ज्यादा ख़ुशी उनके स्टाफ को इस बात की है कि अब उनकी तहसील कोई खंडहर जैसे सरकारी दफ्तर में नहीं बल्कि एक कॉरपोरेट ऑफिस की तरह दिखने लगी है. तहसील की इस नई बिल्डिंग में फरियादियों के लिए साइन बोर्ड लगाये गए हैं. कृषि-भूमि पट्टा,तालाब का पट्टा या फिर जमीनों के बंटवारे का कोई मामला हो, सभी के लिए एक एक बोर्ड तैयार किया गया है. तहसील का सभागार किसी मल्टीनेशनल ऑफिस के मीटिंग हॉल से कम नही है. तहसील में आने वालों के लिए उनकी जरूरी सुविधाओं पर विशेष ध्यान दिया गया है. उनके बैठने के लिए बेंचें बनाई गईं हैं, शौचालयों को भी माडर्न व स्वच्छ बनाया गया है. महिला फरियादियों के साथ आने वाले बच्चों के लिए टॉयलेट की व्यवस्था है. स्वच्छता को ध्यान में रखकर जगह-जगह कूड़े दान की व्यवस्था की गई है.

ISO टीम ने लगातार तीन दिन तक तहसील में मिलने वाली सुविधाओं को परखा. तहसील में साफ सफाई व लोक सभागार सहित लेखपाल व कानूनगो के केबिनों को सराहा. तहसील में ड्रेस कोड सहित सब कुछ व्यवस्थित देख आईएसओ टीम ने लखीमपुर तहसील को ISO 9001 का दर्जा दिया और इसी सोमवार को लखनऊ मंडल के कमिश्नर और आईजी ने ISO 9001 प्रमाणपत्र प्रदान किया.

एसडीएम अरुण सिंह के मुताबिक गुणवत्ता परक कार्यशैली के लिए आईएसओ द्वारा तहसील के सभी कर्मचारियों अधिकारियों की क्वालिटी मैनेजमेंट की परीक्षा आयोजित की गई. जिसमें तहसील के कुल 15 अधिकारियों और कर्मचारियों ने उक्त परीक्षा को पास किया. जिसके बाद से विगत 2 माह से परीक्षण पर आई ISO टीम का निर्देशन कर रहे धनंजय मिश्रा के निर्देशन में पास हुए लोगों द्वारा तहसील का परिक्षण किया गया साथ ही कर्मचारियों को क्वालिटी मैनेजमेंट की ट्रेनिंग भी दिया. आईएसओ की सदस्य टीम में शामिल केके गोगिया, अल्ताफ, रमाकांत दीक्षित द्वारा 3 दिन तक तहसील में बड़ी बारीकी से सभी चीजों की जांच की गई.

अब तहसील में खतौनी आदि को प्राप्त करने के लिए टोकन नंबर की ब्यवस्था की गयी है और नम्बर आने पर खतौनी मिल जाएगी. तहसील परिसर में आने वाले लोगों के लिए बैठने की बेहतर सुविधा है तो साथ ही पेयजल की व्यवस्था की गयी है. इतना ही नहीं अब कानूनगो वह लेखपाल सहित सभी तहसील कर्मचारी पूरी ड्रेस में नजर आएंगे ड्रेस देखकर ही आपको पता चल जाएगा कि वह लेखपाल हैं या कोई पटल बाबू. तहसील में पार्किंग व्यवस्था,फर्स्ट एड बॉक्स सुविधा उपलब्ध कराई है.

गौरतलब है कि इसके पहले भी अरुण सिंह की तैनाती जहां भी रही है वहां लोगों के बीच अपनी कार्यशैली को लेकर चर्चा में रहे हैं. अपनी कन्नौज में तैनाती के दौरान इनके द्वारा ऐतिहासिक धरोहरों की जमीनों पर हुए अतिक्रमण और कब्जे को हटवाया बल्कि उनको संरक्षित कराने का भी काम किया. जिसके चलते इनका वहां से तबादला तो हुआ लेकिन आज भी वहां की जनता अरुण के कार्यों को याद करती है. फिर अपनी तिर्वा तहसील की तैनाती के दौरान करीब तीन दर्जन अवैध खनन में लिप्त ट्रकों को पकड़ा जिसमें वहां की पुलिस ने करीब एक दर्जन को छोड़ दिया. बाद में कार्यवाही कर पुनः उन ट्रकों को अंदर कराया. तिर्वा से हटने के बाद ये लखीमपुर आये और सदर तहसील के उपजिलाधिकारी बने. सदर तहसील का जिम्मा संभालने के बाद इनका पाला पहले यहाँ के खनन माफियाओं और भूमाफियाओं से पड़ा. खनन में लिप्त गाड़ियों को पकड़े जाने पर इनपर ट्रैक्टर चढ़ाने की भी कोशिश की गयी. भूमाफियाओं द्वारा किये गए अतिक्रमण को हटाने को लेकर की गयी सख्ती के चलते सक्रिय भूमाफिया मुख्यमंत्री सचिवालय तक चक्कर लगाये लेकिन सुनवाई नहीं हुई.

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