
#बिना किसी विधिक समीक्षा और संवर्गीय विमर्श से जारी यह आदेश राजस्व व्यवस्था से खिलवाड़ और शासनादेश के नाम पर न्यायिक पदानुक्रम की हत्या है.
अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : उत्तर प्रदेश शासन द्वारा उपजिलाधिकारी की तहसीलदार पद पर तैनाती के जारी आदेश को लेकर जहाँ एक तरफ संवर्ग के अफसरों में काफी रोष बताया जा रहा है. वहीँ इसको राजस्व व्यवस्था से खिलवाड़ व शासनादेश के नाम पर न्यायिक पदानुक्रम की हत्या करार दिया जा रहा है. यह आदेश उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006, न्यायिक पदानुक्रम तथा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों पर सीधा प्रहार होने के साथ ही अप्रासंगिक भी माना जा रहा है. शासन के इस नए फरमान से सरकार और शासन की रीढ़ कहे जाने वाले पीसीएस संवर्ग में भी काफी रोष है. साथ ही पीसीएस संघ की इस प्रकरण पर चुप्पी सवाल खड़े कर रही है.
जानकारों के अनुसार यह आदेश राजस्व परिषद् के अपने ही पूर्व परिषदादेश दिनांक 27.08.2025 से भी विपरीत है, जिसमें स्पष्ट रूप से वरिष्ठतम नायब तहसीलदार को प्रभारी तहसीलदार बनाए जाने की व्यवस्था थी. बिना किसी विधिक समीक्षा और संवर्गीय विमर्श के उस आदेश को निरस्त कर देना प्रशासनिक अस्थिरता को दर्शाता है. शासनादेश का सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि इसमें कहा गया है कि जिस SDM के पास तहसील या न्यायिक कार्य है, उसे तहसीलदार नहीं बनाया जाएगा, जबकि जमीनी सच्चाई यह है कि जिले में ऐसा कोई भी डिप्टी कलेक्टर नहीं होता जिसे तहसील या न्यायिक कार्य न सौंपा गया हो. इस प्रकार यह आदेश व्यवहार में अव्यवहारिक और निष्प्रभावी हो जाता है.
सीधी भर्ती के PCS अधिकारियों को बिना किसी दोष या विभागीय कार्यवाही के तहसीलदार के पद पर तैनात करना सेवा शर्तों और कैडर नियमों का भी उल्लंघन माना जा रहा है. यह वही प्रक्रिया है जो सामान्यतः दंडस्वरूप पदावनति की स्थिति में अपनाई जाती है. इस तरह के फैसले सरकार के हित में भी नहीं हो सकते. क्योंकि वर्तमान की योगी सरकार के सामने SIR के साथ ही आने वाले समय में चुनाव में जाना है. ऐसे में इस संवर्ग की नाराजगी के नफा नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता है.
विधि के जानकारों के मुताबिक जब कोई उपजिलाधिकारी स्वयं तहसीलदार न्यायालय का संचालन करेगा, तो उसी मामले की अपील उसी अधिकारी के समक्ष आने की संभावना बनी रहेगी. यह स्थिति Natural Justice के मूल सिद्धांत “Nemo Judex in Causa Sua” का खुला उल्लंघन है, जिसमें स्पष्ट है कि कोई भी व्यक्ति स्वयं अपने ही मामले में न्यायाधीश नहीं हो सकता. इससे पूरी अपील प्रणाली (Appellate Hierarchy) अर्थहीन हो जाती है. ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस शासनादेश को तत्काल वापस नहीं लिया गया, तो यह राजस्व न्याय व्यवस्था को गंभीर संवैधानिक और कानूनी संकट में डाल देगा. साथ ही सरकार को भी इससे नुकसान हो सकता है.
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश शासन द्वारा हाल ही में जारी पत्र संख्या 2079/एक-9-2025 (दिनांक 11 दिसम्बर 2025) के माध्यम से जिलाधिकारियों को यह अधिकार दे दिया गया है कि वे तहसीलदार संवर्ग में रिक्तियों के दृष्टिगत उपजिलाधिकारी/उपजिलाधिकारी (न्यायिक) को तहसीलदार के पदीय दायित्व सौंप सकें. और इसी आदेश के क्रम में जिलाधिकारी बलिया द्वारा दो पीसीएस अफसरों को तहसीलदार के पद पर तैनात कर दिया गया.



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