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यूपी सरकार की नजर में डीएम की रिपोर्ट नहीं रखती मायने, बागपत, कानपुर और बलरामपुर का छांगुर प्रकरण है सामने    

#DM बागपत की रिपोर्ट, DM कानपुर की रिपोर्ट और चर्चित छांगुर प्रकरण में DM बलरामपुर की रिपोर्ट शासन को, और शासन का निर्णय कितना वाजिब? डीएम की रिपोर्ट गलत या शासन का निर्णय!

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के जिलों में तैनात जिलाधिकारियों को क्या फिर से कलेक्टर बनाने की तैयारी है, यह एक बड़ा विषय बना हुआ है. पहले बलरामपुर के छांगुर मामले में, फिर कानपुर में CMO और जिलाधिकारी के विवाद में और बागपत जिले के ताजे प्रकरण से तो यही लगता है. बागपत मामले में अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी दीपा सिंह के खिलाफ जिलाधिकारी की रिपोर्ट पर कार्यवाई करने के बजाय रिपोर्ट को दरकिनार कर मुख्य चिकित्सा रामपुर बना देने से कमोबेश बलरामपुर के छांगुर प्रकरण की याद दिलाता है. इसमें जिलाधिकारी ने एक रिपोर्ट शासन को भेजकर पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाया था. लेकिन जिलाधिकारी को सजायफ्ता कहे जाने वाले राजस्व परिषद भेज दिया गया और पुलिस के मुखिया को जिले की कमान देकर सम्मानित किया गया.

उक्त तीनों मामलों में शासन की उदासीनता और मनमानीपन योगी सरकार के मंसूबों पर पानी फेरने और उसको सियासी सवालों में कहदी करने वाली रही. सवाल यह भी है कि ऐसी घटनाएं जोकि स्वास्थ्य और कानून व्यवस्था से जुडी हैं और जिलाधिकारी एक जिले के मुखिया के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए रिपोर्ट भेज रहा है. लेकिन शासन में बैठे जिम्मेदार इसपर उदासीन बने रहने के साथ ही जिलाधिकारी की जिम्मेदारियों पर कुठाराघात कर रहे हैं. और इन सबके बावजूद सरकार के मुखिया मूकदर्शक की भूमिका में हैं. तीनों प्रकरण को देखने से स्थिति साफ़ है. 

1.बागपत जिले के जिलाधिकारी ने 06 सितम्बर 2025 को शासन को रिपोर्ट भेज ACMO को कठोर कार्यवाही की संस्तुति किया लेकिन शासन स्तर से कार्यवाई करने के बजाय डॉ दीपा सिंह को CMO रामपुर बना दिया गया. जबकि मुख्य चिकित्साधिकारी बागपत की जांच रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि डॉ दीपा सिंह गंभीर अनैतिक कृत्यों और भ्रष्टाचार में संलग्न पायीं गयीं. उनके संरक्षण में अल्ट्रासाउंड सेंटरों में लिंग परिक्षण, कन्या भ्रूण हत्या जघन्य अपराधों को बढ़ावा देने का आरोप भी लगा.

जिलाधिकारी बागपत की इस रिपोर्ट को दरकिनार कर शासन ने 08 सितम्बर को ACMO बागपत दीपा सिंह का तबादला रामपुर जिले में करते हुए वहाँ का मुख्य चिकित्सा अधिकारी CMO बना दिया.

2. कानपुर जिले में भी जिलाधिकारी की रिपोर्ट पर शासन स्तर के निर्णयों के चलते CMO और जिलाधिकारी के बीच उत्पन्न हुए विवाद खूब चर्चित रहा था और मामला कोर्ट तक पंहुचा. कानपुर के जिलाधिकारी और मुख्य चिकित्साधिकारी के बीच हुए इस विवाद के चलते सरकार भी असहज रही थी.

3. बलरामपुर जिले में के 12 जून 2023 से 28 जून 2024 तक जिलाधिकारी रहे अरविन्द सिंह ने भी पुलिस और धर्मांतरण कराने वालों के बीच के गठजोड़ की हकीकत को परख कर कारवाई की संस्तुति करते हुए एक रिपोर्ट शासन को भेजा. जिसमें जिलाधिकारी ने उत्तरौला, गैह्रास बुजुर्ग और सादुल्लानगर थानों की भूमिका पर आपत्ति जताते हुए स्पष्ट किया था कि धर्मांतरण या संदिग्ध गतिविधियों जैसे मामलों को पुलिस के द्वारा गंभीरता से नहीं लिया गया और न ही कोई प्रभावशाली कदम इसके लिए उठाया गया.

इस रिपोर्ट के बाद जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान के बीच विवाद की भी ख़बरें आयीं. और दोनों को बलरामपुर से हटा दिया गया. लेकिन जमीनी हकीकत और पुलिस की कार्यशैली से सरकार को अवगत कराने वाले जिलाधिकारी सजायाफ्ता पोस्ट मानी जाने वाली राजस्व परिषद् में हैं. और जिस पुलिस की कार्यशैली और उसकी मिलीभगत को उजागर किया उसके कप्तान को जिले से नवाजा गया और उसको 15 अगस्त को सम्मानित भी किया गया.          

छांगुर प्रकरण के विवरण के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें…                               

छांगुर मामला- DM की रिपोर्ट, ATS की जांच से खुलती जमीनी हकीकत, पुलिस के साथ शासन स्तर पर भी लापरवाही, DM शंट और SP की मौज..   

छांगुर मामला- DM की रिपोर्ट, ATS की जांच से खुलती जमीनी हकीकत, पुलिस के साथ शासन स्तर पर भी लापरवाही, DM शंट और SP की मौज..         

           

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