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वाह रे यूपी की अफसरशाही, पगार सरकार से, पैरोकार चड्ढा कंपनी के

# सात जिलों के आबकारी अधिकारियों को चार्जशीट, प्रमुख सचिव करेंगी जांच 

# उपायुक्तों की हाईवे की शराब दुकानों पर राजस्व छूट देने की पैरोकारी से सरकार को करोड़ों का नुकसान 

# मेरठ के जॉइंट कमिश्नर सहित मेरठ, बरेली, मुरादाबाद और सहारनपुर के आबकारी उपायुक्त हैं शामिल

ए एन ब्यूरो 

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में शराब किंग के नाम से मशहूर पोंटी चड्ढा ग्रुप का जलवा हर सरकार में बरकरार रहा है. उसकी इस बादशाहत के पीछे सत्ताशीर्ष से लेकर जिला प्रशासन तक के अफसरों और नेताओं के हाथ होने की चर्चा हमेशा से रही है. पश्चिमी यूपी के जिलों में केवल एक ही लायसेंस जारी करने के  सूबे की पूर्व की सरकारों के फैसले के चलते चड्ढा ग्रुप का पश्चिमी यूपी के 18 जिलों में एकाधिकार रहा है. इससे प्रदेश सरकार को अरबों रूपये की राजस्व हानि होने की बात सामने आई है. योगी आदित्यनाथ सरकार ने जब इस मामले में सख्ती बरती तो नये खुलासे हो रहे हैं.

वास्तव में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश स्टेट हाईवे और नेशनल हाईवे से दुकानें हटाए जाने के बाद चड्ढा ग्रुप ने दूसरी जगह दूकान न मिल पाने का हवाला देकर दुकानें बंद रखीं और राजस्व का नुकसान बढ़ता गया. दुकानें बंद होने के चलते जारी होने वाला कोटा ग्रुप द्वारा लिया नहीं गया. दुकानें कम होने से अवैध शराब की बिक्री बढ़ जाती है जिससे अतिरिक्त लाभ बढ़ जाता है. चड्ढा ग्रुप के इस कदम से होने वाले राजस्व नुकसान के आंकलन और उसकी भरपाई के लिए मेरठ, बरेली, मुरादाबाद और सहारनपुर के आबकारी उपायुक्तों की एक कमेटी बनाई गयी जिसने ग्रुप के पक्ष में पैरोकारी करते हुए सलाह दिया कि जब दुकानें खुली नहीं तो उन पर कोटा थोपा न जाय. कमेटी के इस सुझाव से सरकार का  नुकसान हुआ और अब इसकी जांच के लिए मेरठ, बरेली, मुरादाबाद और सहारनपुर के उपायुक्तों को चार्जसीट सौंपी गयी तथा जांच को प्रमुख सचिव को सौंप दिया गया है.

हाईवे पर बढ़ते आपराधिक घटनाओं से चिंतित कोर्ट ने आदेश दिया कि राज्य राजमार्ग और राष्ट्रीय राजमार्ग से  500 मीटर की दूरी पर शराब की दुकानें खोली जायें. राजस्व के नुकसान के डर से सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ कुछ चंडीगढ़, पंजाब जैसे कुछ राज्य सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर कर पुनः सुनवाई की मांग किया, जिसकी सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायाल ने फैसला दिया कि नगर पंचायत, नगर पालिका और नगर निगम अआब्कारी अधिनियम 1910 के आबकारी दुकानों  की संख्या और स्थिति नियमावली 1968 यथा संशोधित 2008 के अनुसार किये जाने का फैसला दिया. जिसमें 20 हजार से कम आबादी वाले इलाकों में 220 मीटर की दूरी पर दुकानें खोली जा सकती हैं. इसके अलावा नगर निगम में 50 मीटर, नगर पंचायत में 75 मीटर  और ग्रामीण इलाकों में 100 मीटर की दूरी पर दुकानें खोली जा सकती हैं जोकि विद्यालय, धार्मिक स्थान, अस्पताल आदि की दूरी पर हो.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इन जिलों में एक व्यक्ति को लायसेंस दिए जाने और कम दुकानों के होने से कोटा कम होगा तो अवैध शराबों की बिक्री बढ़ जाती है. इसी के चलते चड्ढा ग्रुप ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद दूसरी जगह दूकान न मिल पाने की बात कहकर दुकानें बंद रखीं जिससे सरकार को करीब 450 करोड़ का नुकसान हुआ. शासन ने ऐसी बंद दुकानों पर कार्यवाही हेतु सम्बंधित जिलाधिकारियों को पत्र जारी कर जमानत राशि को जब्त कर उचित कार्यवाही करने का निर्देश दिया है. सरकार के पास चड्ढा ग्रुप का का लगभग 250 करोड़ प्रतिभूति (जमानत राशि) के तौर पर जमा है. अब बचे राजस्व के नुकसान की भरपाई सरकार कैसे करती है यह देखने वाली बात होगी.

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