#स्थानांतरण नीति की धज्जियां उड़ाकर निदेशक द्वारा किया जा रहा है स्थानांतरण.
अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश के लेखा एवं ऑडिट संवर्ग के बेहतरी के लिए वर्ष 2014 में आंतरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा निदेशालय का गठन किया था और प्रदेश के समस्त विभागों के लेखा एवं ऑडिट के कर्मचारियों के स्थानांतरण आदि का अधिकार निदेशक आंतरिक लेखा को दिया गया था. सरकार के इस फैसले के पीछे मुख्य उद्देश्य यह रहा था कि लेखा एवं ऑडिट के कर्मचारी जो विभागीय अधिकारियों के दबाव में रहते हैं जिसके कारण वे वित्त संबंधी कार्यों को स्वतंत्र रूप से नहीं कर पाते फलस्वरुप तमाम वित्तीय अनियमितताएं घटित होती रहती हैं, अगर इनको विभागीय अधिकारियों के नियंत्रण से मुक्त कर दिया जाय तो ये अपने कार्य को स्वतंत्र पूर्वक कर सकेंगे.
लेकिन शासन ने जिस उद्देश्य से इस निदेशालय का गठन किया वह उद्देश्य तो दूर की कौड़ी रह गई तथा यह निदेशालय दूसरी दिशा में चल पड़ा. लेखा एवं ऑडिट के कर्मचारियों के लिए यह एक शोषण का अड्डा बन गया है जो भी निदेशक यहां आया उस का एकमात्र उद्देश्य कर्मचारियों को स्थानांतरण का भय दिखाकर पैसे का दोहन किया जाना रहा तथा मनमाने तरीके से स्थानांतरण कर कर्मचारियों को परेशान किया गया. इसी कारण पूर्व निदेशक श्री भोला सिंह यादव के विरुद्ध आय से अधिक संपत्ति एवं अनियमित कार्यों की विजिलेंस जांच भी वर्तमान सरकार द्वारा शुरू की गई है.
वर्तमान निदेशक राज प्रताप सिंह द्वारा भी सरकार द्वारा घोषित स्थानांतरण नीति की धज्जियां उड़ाते हुए स्थानांतरण किए जा रहे हैं. इनके द्वारा अब तक लगभग 700 कर्मचारियों का स्थानांतरण किया जा चुका है. कोई कर्मचारी जो दो-तीन साल से किसी कार्यालय में तैनात है उसे जनहित का हवाला देकर हटा दिया जा रहा है तथा लंबे समय वाले को वहीं बनाये रखा जा रहा है. जो स्थानांतरण किए गए उनमें अधिकांश में कर्मचारियों को उनकी तैनाती से लगभग 300 से 400 किलोमीटर दूर तैनात किया गया है. सेवानिवृत्त एवम पदोन्नत होने वाले कर्मियों को भी नहीं छोड़ा गया है.
स्थानांतरण नीति में अधिकारियों की तरह तृतीय श्रेणी कर्मचारियों के लिए अन्य जनपद मंडल में तैनाती की ना ही कोई समय सीमा निर्धारित की गई है ना ही कोई उनके स्थानांतरण की व्यवस्था/ अनिवार्यता की गई है फिर भी इनके द्वारा मनमाने तरीके से कर्मचारियों को दूसरे जनपद में जनहित का हवाला देकर ट्रांसफर किया जा रहा है. किसी-किसी विभाग / कार्यालय विशेष से बहुत से कर्मचारियों को हटाया गया तथा इसी प्रकार किसी विभाग / कार्यालय विशेष में अत्यधिक तैनाती की गयी. ट्रान्सफर में कर्मचारियों के सेवा अनुभव का भी कोई ख्याल नहीं रखा गया. कौन व्यक्ति कहाँ के लिए उपयुक्त है इस संबंध में बिना कोई विचार किये जैसे मिला वैसे स्थानान्तरण कर दिया गया.
निदेशक के मनमानेपन का आलम यह है कि उनके द्वारा जनप्रतिनिधियों, माo मंत्रीगणों तथा विभागीय अधिकारियों / विभागाध्यक्षो के स्थानान्तरण से संबंधित पत्रों को विचार करना तो दूर की बात संज्ञान में लेने की आवश्यकता तक नहीं समझा गया. ग्राम्य विकास विभाग जहाँ सरकार की ब्लॉक स्तर पर इतनी महत्वपूर्ण / प्राथमिकता प्राप्त योजनाएं चलती है वहां से लेखाकारों को हटाकर दूसरे बिभाग भेज दिया गया जिससे वहां मनरेगा जैसी योजनाओं का वित्तीय / भुगतान संबंधी कार्य बुरी तरह प्रभावित हो रहा है.
जिन लेखा कर्मचारियों का ट्रांसफर किया गया उनमे से लगभग 80 प्रतिशत कार्मिको को दूसरे विभाग में स्थानांतरित किया गया जबकि कर्मचारी जिस विभाग में पहले से कार्य कर रहा होता है वहाँ के कार्यो में वह दक्ष होता है यदि उसका सामान्य रूप से दूसरे विभाग में ट्रांसफर किया जाता है तो जिस विभाग से उसे हटाया गया वहां का भी कार्य प्रभावित होगा तथा जहाँ उसे तैनात किया गया ,वहाँ के कार्यो का ज्ञान न होने के कारण वहां का भी कार्य बाधित होगा, यह गुड गवर्नेंस के बिल्कुल विपरीत है.
शिकायतों की जांच व पुष्टि कराएं बिना प्रशासनिक आधार पर बहुत से कर्मचारियों को ट्रांसफर किया गया है छोटी सी कोई फर्जी शिकायत मिलने पर भी कर्मचारियों को ट्रांसफर कर दिया गया है जिससे वह परेशान होकर निदेशालय के चक्कर लगाए. पूरे साल निदेशालय में स्थानांतरण की ही तैयारी की जाती है और यह प्रदेश का एक अनोखा विभाग है जहां पर कोई सामाजिक योजना / कार्यक्रम न चलकर मात्र ट्रांसफर योजना पर ही कार्य होता है.
वर्तमान निदेशक के मनमाने कार्यप्रणाली से ना केवल शासन की नीति नियमों की अनदेखी हो रही है बल्कि इससे कर्मचारियों का शोषण चरम स्तर पर पहुंच गया है तथा शासन की जिस मंशा से निदेशालय का गठन हुआ वह बहुत अल्प अवधि में ही समाप्तप्राय हो गया शासन को इस पर विचार करने की गंभीर आवश्यकता है कि इस निदेशालय को कर्मचारियों के शोषण के लिए बनाए रखा जाए या पूर्व व्यवस्था स्थापित की जाए.
कर्मचारी प्रमोशन पाकर और स्थान्तरित होकर भी एक ही जगह वर्षों से डटा है लेकिन निदेशक महोदय को उसकी सुध लेने की फुरसत नहीं है. पढ़ें लिंक ………..
आखिर क्या ख़ास है RES में जो प्रमोशन बाद भी नहीं खाली हो रही कुर्सी

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