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भूगर्भ जल से जलमग्न रहने वाली गोमती पर अस्तित्व का संकट, कहीं सरस्वती नदी न बन जाय गोमती  

#भूगर्भ से निकले जल से जलमान रहने वाली गोमती की देखरेख से भूगर्भ जल जैसा अहम विभाग दूर क्यों?

#वर्ष 1993 से जिस जलनिगम के हवाले रहा इसका जिम्मा वहां हुआ केवल पैसों का बंदरबांट.

#जल संरक्षण और भूगर्भ जल के स्रोतों के संरक्षण पर काम करने के बजाय रिवर फ्रंट जैसी योजनाओं में हुया धन का अपब्यय.

#पीएम की जन जन की भागीदारी की अपील तो दूर जरूरी विभाग ही इस काम में नहीं किये गये शामिल.        

#नदी विकास का काम अभी तक है उस नगर विकास के हवाले जो स्वच्छता मिशन को लगा चुका है पलीता.  

विजय कुमार   

लखनऊ : दूसरी बार देश की सत्ता संभालने के बाद अपने पहले मन की बात के कार्यक्रम में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने 30 जून को भारत की जनता से जल संरक्षण के लिए आगे आने और पानी बचाने के लिए जागरूकता अभियान चलाये जाने की अपील की. प्रधानमन्त्री का कहना था कि पानी का हमारी संस्कृति में बहुत महत्त्व है, लेकिन हम बारिश का मात्र 8 प्रतिशत जल ही बचा पाते हैं. इसलिए जल संरक्षण में जन जन की भागीदारी सुनिश्चित की जाय और अनुभव साझा किये जायं. लेकिन प्रधानमन्त्री की इस मार्मिक अपील के उलट उत्तर प्रदेश की स्थिति कुछ और ही है. भूगर्भ से निकली इस नदी की देखरेख से भूगर्भ जल जैसे अहम् विभाग को दूर रखा गया है साथ ही साथ जन जन की भागीदारी तो दूर जलनिगम के अलावा अन्य सम्बंधित जरूरी विभागों की भूमिका को भी जिम्मेदारों ने शून्य के बराबर ही रखा है.

एनजीटी की कूड़ा प्रबंधन व अनुश्रवण समिति द्वारा प्रस्तुत 81 पृष्ठों की रिपोर्ट के बाद हुई किरकिरी से सरकारी महकमे में हलकान मचा और जिलाधिकारी प्रदूषण और पर्यावरण के नियमों व मानकों की अनदेखी करने वाले नगर निगम और अन्य सरकारी व निजी संस्थाओं के विरुद्ध सख्त हो गये. लेकिन शासन-प्रशासन में मची इस हलचल से गोमती को लाभ होता दिखाई नहीं दे रहा है. बल्कि फिर से जल निगम जैसे महकमे की लॉटरी लग गयी है. फिलहाल राजधानी लखनऊ में 3 एसटीपी (सीवर ट्रीटमेंट प्लान) के  प्रस्ताव को अनुमति मिली है. जबकि 1993 से अब तक जल निगम उत्तर प्रदेश के कर्ता-धर्ता केवल एसटीपी बनाने और बिगाड़ने का काम करते रहे. परिणाम अभी तक यह रहा कि न तो प्रदूषित जल को गोमती में गिरने से रोक पाए और ना ही प्रदूषण व पर्यावरण में सुधार के लक्षण दिखे.

जानकारों की मानें तो गोमती को अविरल और निर्मल बनाने के नाम पर जल निगम के हाथों जितनी धनराशि का व्यय हुआ है और रिवरफ्रंट जैसी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए धन राशि का बंदरबांट हुआ है उतनी धनराशि अगर सुनियोजित तरीके से विशेषज्ञों और ईमानदार पर्यावरण संरक्षकों की मदद से खर्च की जाती तो शायद गोमती का कुछ भला हो पाता. गोमती इकलौती ऐसी नदी है जो गंगा यमुना की तरह किसी बर्फीले पहाड़ की देन होने के बजाय भूगर्भ से उत्पन्न है और इसके भूगर्भ जलस्तर को रिचार्ज करने और वर्षा जल के संचयन और संरक्षण में गोमती एक प्राकृतिक कारक के रूप में कार्य करती रही है. लेकिन अभी तक की सरकारों ने गोमती नदी के सरंक्षण और सफाई के कार्य से भूगर्भ जल जैसे अहम् विभाग को सारी कवायद से दूर रखा गया है और इसकी भूमिका नदारद रही है.

केंद्र की महत्वपूर्ण परियोजनाओं में शुमार नमामि गंगे परियोजना की सफलता भी उत्तर प्रदेश की गोमती नदी जैसी अन्य नदियों की स्वच्छता पर ही निर्भर है. लेकिन डेढ़ दशक से ज्यादा का वक्त बीत जाने के बाद भी इसकी साफ सफाई का जिम्मा संभाल रहे जल निगम के प्रयास जहां केवल नाकाफी रहे वहीं इसके लिए स्वीकृत धन की बंदरबांट भी हुई. और आज जब इसके लिए सरकार गम्भीर है तब भी वर्षों से चली आ रही उसी व्यवस्था को जारी रखना जिसका अभी तक का परिणाम यह रहा कि एनजीटी की कमेटी को सरकार के खिलाफ गम्भीर टिप्पड़ी करनी पड़ी, तमाम तरह के सवाल खड़े करता है. जब गोमती नदी का उदभव ही भूगर्भ जल से हुआ है तो इसको जलमग्न रखने और साफ सफाई के उपाय भी उसी तरह से होने चाहिए जिसमें भूगर्भ जल विभाग के साथ ही उन अन्य विभागों, वन एवं पर्यावरण, सिंचाई, कृषि, पंचायती राज, इंडस्ट्री आदि को भी शामिल करना चाहिए जो भी इसको प्रभावित करते हों. लेकिन 1993 से चली आ रही इस व्यवस्था के परिवर्तन की उम्मीद लगाए पर्यावरण विदों को केवल निराशा ही मिली. ऐसे में आज जब राजधानी लखनऊ में जलनिगम द्वारा 3 सीवर ट्रीटमेन्ट प्लान प्रस्तावित हैं तो उनके परिणाम का भी अनुमान अनुभवों के आधार पर लगाया जा सकता है. धन उगाही और उसके बंदरबांट का अड्डा बन चुके जलनिगम की वर्षों से चली आ रही इस जिम्मेदारी का परिणाम भी इस तरह शून्य ही नजर आ रहा है.

पिछले दिनों एनजीटी की कूड़ा प्रबंधन एवं अनुश्रवण समिति की गोमती नदी को लेकर किया गया कमेन्ट कि गोमती नदी में नहाना ही नहीं बल्कि किनारे पर टहलना भी सेहत के लिए हो सकता है खतरनाक, काफी सुर्ख़ियों में रहा जिसमें अभी तक सरकारों द्वारा करोड़ों खर्च किये जाने के बाद भी गोमती नदी की सफाई नहीं हो सकी है जिसके चलते उसके अस्तित्व पर भी अब खतरा आ गया है. गोमती एक पौराणिक नदी है और पुराणों के अनुसार ऋषि वशिष्ठ का पुत्री हैं. हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले गोमती को एक पवित्र नदी और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग मानते हैं. यह भारत की इकलौती नदी है जिसका उदगम भूगर्भ जल से हुआ है. पीलाभीत का माधव टांडा कस्बा गोमती का उद्गम है और यहीं पर गोमद ताल से गोमती की धारा निकलती है. रिपोर्ट में लिखा है कि राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार के चलते गोमती आज तक प्रदूषण से मुक्त नहीं हो पाई है.

हिंदुत्व के आस्था की प्रतीक इस नदी के उद्धार की उम्मीद सूबे में नई सरकार बनने और योगी आदित्य नाथ के रूप में एक सन्यासी व ईमानदार के मुख्यमंत्री बनने के बाद जगी जरूर लेकिन अभी तक इसके लिए किये गए प्रयास किसी भी तरह से कारगर साबित होते नहीं दिख रहे बल्कि हमेशा की ही तरह केवल इस प्रोजेक्ट के माध्यम से पैसों की बंदरबांट की ही गुंजाईस बरकरार है. सरकारी ओहदे पर बैठे जिम्मेदारों ने पिछले वर्ष मुख्यमंत्री योगी को गुमराह करते हुए भूगर्भ से निकली इकलौती इस नदी के संरक्षण और साफ़ सफाई का कोई ठोस कदम उठाने के बजाय बरसात के मौसम में शारदा नहर से पानी छोडकर गोमती को जलमग्न दिखा दिया जोकि बरसात के बाद फिर जस का तस हो गया. ऐसे में बड़ा सवाल यह कि भूगर्भ जल विभाग के विशेषज्ञों से इस कार्य को करने के बजाय इसको उस निगम को दिये जाने के पीछे का तर्क क्या है जिसका काम केवल जल वितरण का रहा है और जो खुद में अभी तक भ्रष्टाचार के एक बड़े अड्डे के रूप में जाना जाता रहा है.

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