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बिजली कंपनियों के हजारों कर्मियों की भविष्य निधि डिफाल्टर डीएचएफसीएल में डूबी

#प्रमुख सचिव ऊर्जा आलोक कुमार के अदूरदर्शी फैसले ने फंसाया बिजली कर्मियों के पीएफ का 1500 करोड़.

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ : मुंबई में पीएमसी बैंक से लेकर जीवन बीमा निगम की लुटिया डूबोने वाले डीएचएफसीएल (दीवान हाउसिंग फाइनेंस कारपोरेशन लिमिटेड) ने यूपी में बिजली कंपनियों के हजारों कर्मचारियों के खून पसीने की गाढ़ी कमाई में सेंध लगा दी है. कर्मचारियों के भविष्य निधि (पीएफ) का करीब 1550 करोड़ रुपये इस विवादित कंपनी में फंस गया है जिसके जल्दी मिलने के आसार नही हैं. डिफाल्टर कंपनी में पैसा निवेश करने को आतुर उर्जा विभाग के आला अधिकारियों नें सरकारी बैंकों को अनदेखा कर दिया. अफसरनामा के पास मौजूद कागजात बताते हैं कि जिन दिनों डीएचएफसीएल देश की नामीगिरामी वित्तीय संस्थाओं को चूना लगा डिफाल्टर साबित हो रहा था उसी समय उर्जा विभाग के बड़े अधिकारी वहां कर्मचारियों के पीएफ का पैसा लगा रहे थे.

ताजा खबर यह है कि दीवान हाउसिंग फाइनेंस कारपोरेशन लिमिटेड ने उत्तर प्रदेश की कई बिजली कंपनियों के कर्मचारियों अधिकारियों की खून पसीने की कमाई पर भी ग्रहण लगा दिया है. इन कर्मचारियों के भविष्य निधि (पीएफ) की रकम के करीब 1550 करोड़ रुपये से ज्यादा इस डिफाल्टर कंपनी में फंस गए हैं.

प्रदेश में पावर कारपोरेशन, विद्युत उत्पादन निगम, जल विद्युत निगम, विद्युत पारेषण निगम सहित कई ऊर्जा कंपनियों के भविष्य निधि का संचालन करने वाली उत्तर प्रदेश स्टेट पावर सेक्टर इम्पालाईज ट्रस्ट ने दीवान हाउसिंग फाइनेंस कारपोरेशन लिमिटेड की विभिन्न योजनाओं में मार्च 2017 से लेकर दिसंबर 2018 के बीच कुल 2631.20 करोड़ रुपये निवेश किया था. इनमें से सितंबर तक ट्रस्ट को मूलधन में से 1185 करोड़ रुपये वापस मिल चुके हैं जबकि सावधि जमा में निवेश किए 1445.70 करोड़ रुपये का भुगतान नही हो सका है. इस धनराशि पर देय ब्याज के रुप में 151 करोड़ रुपये का भुगतान भी डीएचएफसीएल पर लंबित है.

हैरत की बात यह है कि ऊर्जा कंपनियों के पीएफ फंड की ज्यादातर राशि डीएचएफसीएल में उस समय जमा की गयी जबकि इसके डिफाल्टर हो जाने की खबरे आम होने लगी थीं. पावर सेक्टर इम्लाईज ट्रस्ट 2004 -2005 तक उर्जा कंपनियों के जीपीएफ और उसके बाद से अब तक सीपीएफ का भी संचालन कर रहा है. उक्त ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रमुख सचिव उर्जा आलोक कुमार खुद हैं जबकि सभी बिजली कंपनियों के प्रबंध निदेशक इसके ट्रस्टी हैं.

ट्रस्ट के निदेशक मंडल की बीते सप्ताह 25 अक्टूबर को हुयी बैठक में सचिव आईएम कौशल की ओर से यह जानकारी दी गयी कि रिलायंस निप्पान लाइप एसेट मैनेजमेंट कंपनी की ओर से डीएचएफसीएल पर मुबंई उच्च न्यायालय में दायर एक वाद के संबंध में बीते 30 सितंबर को पारित आदेश के तहत सभी असुरक्षित कर्जदाताओं के भुगतान पर रोक लगा दी गयी है. ट्रस्ट की बैठक में रखे गए एजेंडा में बताया गया है कि डीएचएफसीएल से मिली जानकारी के मुताबिक मुंबई उच्च न्यायालय ने फिर से 10 अक्टूबर को पारित अपने आदेश में वाद के अंतिम निस्तारण होने तक सभी तरह के भुगतान पर रोक लगा दी है.

प्रदेश की ऊर्जा कंपनियों के हजारों कर्मचारियों के भविष्य निधि की रकम इस तरह से फंस जाने के बाद लोगों में खासा गुस्सा है. कर्मचारी संघ नेताओं का कहना है कि उनके पीएफ का पैसा निवेश समिति के निर्णय के मुताबिक राष्ट्रीयकृत बैंकों में सावधि जमा के रुप में लगाया जाता था जिससे 9.30 से लेकर 10.20 फीसदी तक रिटर्न मिलता रहा था. साथ ही ब्याज के भुगतान पर कर कटौती भी नही होती थी. उनका कहना है कि ट्रस्ट ने निवेश सलाहकारों की सेवाए लेकर अनाप शनाप निवेश का फैसला किया जिसका खामियाजा रिटायर होने वाले लोगों को भुगतना पड़ेगा. कर्मचारी नेताओं का कहना है कि प्रदेश सरकार विवादित कंपनी में पैसा लगाने वाले अधिकारियों पर कड़ी कारवाई करे और कर्मचारियों के पीएफ का पैसा सुरक्षित सरकारी बैंकों में जमा करे.

afsarnama
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