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अटल भूजल योजना में पंजाब और झारखण्ड को शामिल करने के लिए नेताओं ने मोदी को लिखा पत्र  

विजय कुमार 

लखनऊ : प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी द्वारा भूजल संसाधनों के सतत प्रबंधन एवं संरक्षण के लिए घोषित की गयी अटल भूजल योजना में पानी के संकट से जूझ रहे पंजाब और झारखंड जैसे राज्यों को शामिल न किये जाने से सवाल खड़े हो रहे हैं. सियासी गलियारों में चर्चा है कि मोदी सरकार की इस योजना में पारदर्शिता का अभाव है. कारण यह है कि अभी तक इस योजना को जिन राज्यों में लागू किया जाना है उनमें से आधे से अधिक भाजपा शासित हैं और बाकियों में एक दो को छोड़ अन्य में भी बीजेपी प्रमुख राजनीतिक दल के रूप में मजबूत है. लगातार गिरते भूजल स्तर की समस्या से प्रभावित पंजाब और झारखण्ड राज्य को इस योजना में शामिल किये जाने हेतु राज्य के नेताओं द्वारा प्रयास जारी है और इस सम्बन्ध में पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह के अलावा झारखंड के राष्ट्रीय जनता दल के सचिव संजय भारद्वाज ने भी प्रधानमन्त्री मोदी को पत्र लिखा है.

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग की कि भूजल संसाधन के संरक्षण के लिए विश्व बैंक की सहायता से लागू की जाने वाली  ‘अटल भूजल योजना’ में पंजाब को शामिल किया जाए. जल शक्ति मंत्रालय ने भूजल स्तर में सुधार के उद्देश्य से अटल भूजल योजना के तहत सात राज्यों का चयन किया है. अमरिंदर सिंह ने पंजाब में सबसे अधिक भूजल की कमी के मद्देनजर योजना में पंजाब को शामिल नहीं करने को लेकर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि राज्य के 22 में से 20 जिले भूजल की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि पहले भी वह प्रधानमंत्री के समक्ष यह मुद्दा रखते आये हैं और भूजल संसाधन संरक्षण के लिए केंद्रीय सहायता मांग चुके हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री से अपील की कि वह जल शक्ति मंत्रलय को आवश्यक निर्देश दें कि पंजाब को योजना में तुरंत शामिल किया जाए.

पंजाब में सबसे अधिक भूजल की कमी

कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के अनुसार पंजाब में सबसे अधिक भूजल की कमी है और राज्य के तीन चौथाई से ज्यादा ब्लॉक जल संकट से जूझ रहे हैं. इस साल की शुरुआत में ही जल शक्ति मंत्रलय ने कुछ अधिकारियों को इन जिलों के दौरे पर भेजा गया था और केंद्रीय भूजल बोर्ड की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार राज्य के तीन चौथाई से ज्यादा ब्लॉक जल संकट से जूझ रहे है. मुख्यमंत्री ने कहा कि यह भी सच है कि पंजाब के प्राकृतिक संसाधनों जैसे भूजल में कमी धान की खेती के कारण है जो देश के लिए खाद्य सुरक्षा हासिल करने के लिए ही है. मुख्यमंत्री के अनुसार इसके अलावा सतह पर उपलब्ध पानी भी पिछले कुछ दशकों में कम हुआ है इसलिए पंजाब जल संरक्षण हेतु सहायता का मजबूत दावेदार है.

झारखंड का नाम शामिल न होना आश्चर्यजनक  

जल एवं पर्यावरण पर शोध करने वालों का मानना है कि अटल भूजल योजना में झारखंड का नाम शामिल न किया जाना मोदी सरकार का कदम बेहद निराशाजनक है जबकि अन्तरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र अहमदाबाद की रिपोर्ट इसके इतर है. रिपोर्ट के अनुसार झारखंड भारत में पाँव पसारती मरुस्थलीकरण की समस्या से सर्वाधिक पीड़ित राज्य है. जिसमें भूजल स्तर नीचे चले जाने से मिटटी में नमी की कमी हो गयी है और धरती बंजर हो रही है. इस सम्बन्ध में राष्ट्रीय जनता दल के सचिव संजय भारद्वाज का कहना है कि राज्य में इस योजना के लागू होने से मरुस्थलीकरण से पीड़ित आदिवासी बाहुल्य इस राज्य में पंचायत स्तर पर जल समिति का गठन कर प्राचीन भूजल श्रोतों के संरक्षण का काम सर्वाधिक उपयोगी होता और ग्रामीण जनता को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराया जाना संभव हो पाता.

बताते चलें कि 25 दिसम्बर को अटल के जन्मदिवस पर घोषित अटल भूजल योजना को 12 दिसंबर को ही वर्ल्ड बैंक की ओर से मंजूरी मिली है. 6,000 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना में 50 फीसदी हिस्सेदारी भारत सरकार की होगी, जबकि आधा हिस्सा वर्ल्ड बैंक की ओर से खर्च किया जाएगा. इस स्कीम को जल संकट से प्रभावित उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में लागू किया जाएगा. इन राज्यों का चयन भूजल की कमी, प्रदूषण और अन्य मानकों को ध्यान में रखते हुए किया गया है.

सरकार का दावा है कि इस योजना से किसानों की आय दोगुनी करने में मदद मिलेगी. इस योजना से 8,350 गांवों को लाभ मिलेगा. सरकार के मुताबिक पानी की समस्या से निपटने के लिए अटल भूजल योजना पर पांच साल में 6,000 करोड़ रुपये का खर्च होगा. ग्राम पंचायत स्तर पर “पंचायत जल समिति” का गठन कर जल सुरक्षा के लिए काम किया जाएगा. भूजल के संरक्षण के लिए शैक्षणिक और संवाद कार्यक्रमों को संचालित किया जाएगा. इस स्कीम में आम लोगों को भी शामिल किया जाएगा. वाटर यूजर असोसिएशन, मॉनिटरिंग और भूजल की निकासी के डेटा संकलन की मदद से इस स्कीम को आगे बढ़ाया जाएगा. इस योजना का उद्देश्य कम से कम सात राज्यों में सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से भूजल प्रबंधन में सुधार करना है.

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