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“अटल भूजल” महत्वाकांक्षी योजना का ऐलान, भूजल संरक्षण की दिशा में प्रधानमंत्री की बड़ी पहल

#”अफसरनामा” की खबर का असर, भूगर्भ जल विभाग में भी बढ़ी हलचल, जलशक्ति मंत्रालय के बाद अब अटल जल योजना की शुरुआत.

#6 हजार करोड़ की लागत से उत्तर प्रदेश सहित 7 राज्यों के 78 जिलों में पंचायत स्तर पर भूजल प्रबंधन को बेहतर बनाने की कवायद.      

अफसरनामा ब्यूरो 

लखनऊ : नई दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने बटन दबाकर “अटल भू-जल योजना” की शुरुआत किया और इससे जल संचयन व संरक्षण में सुधार की उम्मीद जतायी. जल जीवन मिशन के द्वारा सरकार हर घर को नल के माध्यम से पेयजल उपलब्ध कराने की महत्वाकांक्षी लक्ष्य को और आगे बढ़ा रही है. लेकिन इस देश में कृषि क्षेत्र की लगभग 65 फीसदी जरूरतों और औद्योगिक जगत की भी आधे से अधिक पानी की जरूरत को भूगर्भ जल से ही पूरा किया जा रहा है. मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त जलपुरुष राजेंद्र सिंह के अनुसार तो देश में कुल उपलब्ध भूगर्भ जल कोष में  से अत्याधिक दोहन करने से मात्र 28 फीसदी जलराशि ही शेष बची है. ऐसे  में हर घर के लिए नल योजना के लिए जो पानी की जरूरत होगी उसकी पूर्ती कहाँ से होगी इस बात की चिंता प्रधानमंत्री के द्वारा वाटर बजटिंग पर जोर दिए जाने के बयान से झलकती है.

विज्ञान भवन में भूजल संरक्षण से सम्बंधित इस योजना के लांचिंग के अवसर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि अभी तक भूजल का मात्र दोहन किया जा रहा था लेकिन इसके सतत प्रबंधन पर फोकस  नहीं किया जा सका है. अटल भूजल योजना में इस बात का ख्याल रखा गया है. केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के अनुसार “हम सब मिलकर वैज्ञानिक आधार पर जल का उचित संरक्षण कर सकते हैं और भूगर्भ के सिकुड़ते भण्डार को वापस कैसे पुनर्जीवित कर सकते हैं इस दृष्टिकोण से अटल भूजल योजना कारगर होगी. देश का प्रत्येक गाँव अपने पेयजल का प्रबंधन स्वयं करे, सरकार आधारिक संरचना बनाएगी, गाँव उसके संचालन, रख रखाव और प्रचालन की जिम्मेदारी ले. जिस स्रोत से गाँव के पेयजल की आपूर्ति की जा रही है उसकी स्थिरता अगर बनेगी तो यह योजना जल जीवन मिशन को भी Complement करेगी.”

भूगर्भ जल और नदियों के संरक्षण व जल संचयन के “अफसरनामा” द्वारा उठाये गये मुद्दे को सरकार द्वारा गंभीरता से लेते हुए कई कदम उठाये जा रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को राजधानी लखनऊ के मुख्यमंत्री सचिवालय लोकभावन में भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी के 95वें जन्मदिवस के अवसर पर उनकी प्रतिमा का अनावरण करने के बाद अपने संबोधन में कहा कि अटल जल योजना की आज शुरुआत हुई है.

प्रधानमन्त्री ने 6000 करोड़ रूपये की इस योजना से उत्तर प्रदेश सहित कुल 7 राज्यों गुजरात,राजस्थान,हरियाणा,कर्नाटक,महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश के 78 जिलों के 8350 गाँवों में पंचायत स्तर पर सामुदायिक सहभागिता के जरिए भू-जल प्रबंधन को बेहतर बनाने पर जोर दिये जाने की बात कही लेकिन अटल भू-जल योजना में मरुस्थलीकरण और गिरते भूजल स्तर की समस्या से जूझ रहे झारखंड का नाम नहीं होना आश्चर्यजनक माना जा रहा है.

इस अवसर पर पीएम मोदी ने कहा कि देश की कृषि व्यवस्था में कुल सिंचाई के 65% क्षेत्रमें सिंचाई के लिए भूजल का उपयोग, अटल भूजल योजना का उद्देश्य पंचायत स्तर पर भूजल ले उपयोग और मांग के प्रति लोगों की सोच में बदलाव लाकर भूजल की मांग का बहतर प्रबंधन करना और इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने ऐसी तकनीकी विकसित करने की अपील की जिससे जल पर निर्भरता कम की जा सके. सामुदायिक सहभागिता के जरिये भूजल प्रबंधन को बेहतर बनाना है. गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित 7 राज्यों में लागू की जाने वाली योजना से इन राज्यों के 75 जिले आच्छादित होंगे.

गौरतलब है कि “अफसरनामा” ने गिरते भूजल स्तर के मुद्दे को सामने रखते हुए भूजल रिचार्ज के लिए गोमती व गंगा की अन्य सहायक नदियों के ड्रेजिंग और स्कीमिंग, रेन वाटर हार्वेस्टिंग जैसे उपायों पर सरकार द्वारा पहल किये जाने का मुद्दा सामने लाया था. जिसके बाद हरकत में आई सरकार ने “उत्तर प्रदेश भूगर्भ जल (प्रबंधन एवं विनियमन) 2019 विधेयक” भी पारित कराया. पारित विधेयक में मुख्य सचिव को चेयरमैन बनाते हुए अन्य सम्बंधित विभागों के अपर मुख्य सचिव/सचिव को मिलाकर एक राज्यस्तरीय स्टीयरिंग कमेटी भी बनाई गयी परन्तु उस कमेटी की बैठक और उसके परिणाम अभी तक सामने नहीं आ सके हैं.   

जल संरक्षण के उपायों को लेकर जलनीति बनाकर मेघालय ने देश में पहला स्थान बनाया है वहीँ उत्तर प्रदेश की अफसरशाही खुद अपने ही जिले के अफसरों की कार्यप्रणाली का अनुसरण नहीं कर पायी थी. सूबे में गंगा की सहायक नदियों में तमसा नदी में मनरेगा जैसी योजना का सदुपयोग करते हुए जनवरी 2019 में तत्कालीन डीएम डॉ. अनिल पाठक, डीसी मनरेगा नागेंद्र मोहन राम त्रिपाठी ने मिशाल पेश किया था. इसके अलाव कुछ इसी तरह शाहजहांपुर के डीएम रहे अमृत त्रिपाठी जैसे उत्साही अफसर द्वारा स्वप्रेरणा से गोमती के उद्धार हेतु शुरुआत किया जाना एक नजीर बना था. ऐसे कदमों से नदियों के जल संचयन, भू-गर्भ जल रिचार्ज का बड़ा श्रोत नदी का जल प्रवाह अविरल बनता. जानकारों का मानना है कि गोमती जैसी नदियों के पुनुरुद्धार करने का लाभ हजारों तालाबो के पुनुरोद्धार से मिलने वाले लाभ से ज्यादा है, लेकिन इस पर जिम्मेदारों की उदासीनता कई प्रश्न खड़े करती रही है.

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