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तो क्या अब गोमती संरक्षण के लिए होगा ठोस उपाय या फिर पहले की ही तरह रंग-रोगन !

#भूगर्भ विज्ञान से परास्नातक आईएएस मनोज सिंह, फिर भी भूगर्भ जल से जलमग्न रहने वाली गोमती पर अस्तित्व का संकट.

#वर्ष 2011 में तत्कालीन बसपा सरकार ने “गोमती नदी संरक्षण समिति” बनाकर किया था सकारत्मक पहल.

#कभी सूबे के शहरी विकास मंत्री रहे लालजी टंडन को भी अफसरों ने तात्कालिक उपायों से गोमती के पानी को साफ़ कर किया था खुश.

विजय कुमार

लखनऊ : बुधवार को जल शक्ति मंत्रालय और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बैठक में भी इस बात पर जोर दिया गया कि गंगा की सहायक नदियों के साफ सफाई और उनके किनारे वन विभाग द्वारा सघन वृक्षारोपण किए जाने की जरूरत है और जिसकी तैयारी शासन द्वारा की जा रही है. इसके अलावा मुख्यमंत्री नमामि गंगे परियोजना की नोडल एजेंसी जलनिगम के कामकाज से नाखुश दिखे और केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत की मौजूदगी में इस परियोजना के अधूरे कामों के जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ FIR दर्ज कर जेल भेजने और उनकी संपत्ति की जांच ED से कराए जाने की भी बात कही. इसके अलावा मुख्यमंत्री योगी की उपस्थिति में केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने भी माना की देश की 121 करोड़ जनता के आस्था की प्रतीक गंगा के लिए बनी नमामि गंगे परियोजना में अपेक्षा के अनुरूप काम नहीं हुआ है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि पिछली सरकारों से चली आ रही गंगा व उसकी सहायक नदियों को लेकर अफसरशाही की यह उदासीनता वर्तमान की योगी सरकार में भी अभी तक क्यों जारी रही. अच्छा होता यदि जिले के प्रभारी मंत्रियों को गोमती और  राप्ती जैसी नदियों के संरक्षण और पुनर्जीवन के कार्यों को मानीटर करने की जिम्मेदारी भी मिली होती तो जनता का जुड़ाव भी होता और अफसरशाही भी ठोस उपायों को लेकर संजीदा होती.

जब तक गंगा के साथ ही साथ गोमती जैसी अन्य सहायक नदियों के जल संचयन और जल संरक्षण का काम सही तरीके से नहीं किया जाएगा तब तक आशातीत सफलता कैसे मिलेगी. इसके पहले की भाजपा की सरकार में जब लालजी टंडन ग्राम विकास विभाग के मंत्री हुआ करते थे उस समय गोमती नदी में फैली जलकुंभी को हटाने के लिए तमाम टेंडर किए गए थे और तात्कालिक उपायों से गोमती के पानी को साफ़ कर उनको दिखा दिया गया था. जिसके बाद उनका बयान था कि अब गोमती इतनी साफ हो गई है कि उसका जल सीधे पीने योग्य हो गया है, और आज गोमती की स्थिति सबके सामने है. फिलहाल गंगा और गाय को अपने एजेंडे में रखने वाले सूबे के मुखिया योगी की सरकार में भी कमोबेश अभी तक यही चलता आ रहा है तथा अफसरों द्वारा किसी ठोस योजना के बजाय केवल हुक्मरानों को खुश रखने के लिए तात्कालिक  उपाय ही किये जाते रहे हैं.

भूगर्भ विज्ञान से परास्नातक आईएएस मनोज सिंह, फिर भी भूगर्भ जल से जलमग्न रहने वाली गोमती पर अस्तित्व का संकट

नमामि गंगे जैसी महत्वपूर्ण परियोजना के नोडल अफसर और खुद भूगर्भ विज्ञान से परास्नातक 1988 बैच के अनुभवी आईएएस अधिकारी मनोज कुमार सिंह भूगर्भ से निकली और जलमग्न रहने वाली गोमती नदी का दर्द नहीं समझ सके.  केंद्र में पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन जैसे महकमे को सुशोभित करने वाले व उत्तर प्रदेश शासन में भी ग्राम विकास और जल संसाधन जैसे विभागों के अगुआ रहे और वर्तमान में प्रमुख सचिव नगर विकास के साथ साथ परियोजना निदेशक राष्ट्रीय गंगा संरक्षण अभियान तथा स्वच्छ भारत मिशन जैसे महत्वपूर्ण परियोजनाओं के निदेशक पद पर काबिज मनोज कुमार सिंह के विराट अनुभव का लाभ उत्तर प्रदेश सरकार को मिलता तो शायद तस्वीर कुछ और ही होती.

20 जुलाई 2017 को केंद्र सरकार के पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन विभाग के ज्वाईंट सेक्रेटरी के पद से वापस उत्तर प्रदेश आये और प्रमुख सचिव शहरी विकास, शहरी सशक्तिकरण और गरीबी क्रांति विभाग के परियोजना निदेशक जैसे महत्वपूर्ण विभाग की कमान संभालने वाले मनोज कुमार सिंह आस्था और अर्थ का केंद्र सूबे की इन सहायक नदियों के उद्धार के लिए कोई ठोस उपाय नहीं कर सके. सूबे की राजधानी लखनऊ के बीच से निकलने वाली गोमती नदी का दर्द नहीं समझ सके तो प्रदेश की अन्य सहायक नदियों की स्थिति क्या होगी समझा जा सकता है. कहने को गोमती को संवारने के लिए ढेरों योजनाएं बनीं लेकिन सरकार बदलने के साथ सभी कागजों में बंद होती गईं और हुक्मरानों को खुश रखने के लिए पिछली सरकारों के सही प्रोजेक्ट को भी ठन्डे बस्ते में डालते हुए गंगा और उनकी सहायक नदियों के पुनर्जीवित करने के नाम पर ठोस उपाय अपनाने के बजाय केवल रंग रोगन लगाने का काम किया गया.

वर्ष 2011 में तत्कालीन बसपा सरकार ने “गोमती नदी संरक्षण समिति” बनाकर किया था सकारत्मक पहल

बसपा सरकार ने वर्ष 2011 में गोमती नदी संरक्षण समिति बनाई थी जिसमें गोमती की सफाई, तटों को सुंदर बनाने और नदी के किनारे अतिक्रमण को रोकने के लिए प्रोजेक्ट बनाया था. मनरेगा के तहत गोमती नदी के किनारे वृक्षारोपण के निर्देश दिए गए थे. लेकिन यह सभी प्रोजेक्ट जमीनी हकीकत पर नहीं उतर सके और पूर्व की सपा सरकार में रिवर फ्रंट के नाम पर पैसों का कथित बंदरबांट अलग से हुआ. बसपा सरकार ने भी भूगर्भ जल विभाग को नदी संरक्षण के लिए चेकडैम बनाने के निर्देश दिए गए थे जो अब तक नहीं बन सके हैं. उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दूषित इकाइयों को चिन्हित कर प्रदूषण नियंत्रण का जिम्मा दिया गया था जिससे नदी में रहने वाले जलीय जीव और नदी की जैव विविधता बनी रहे, लेकिन आज भी फैक्ट्रियां गोमती नदी में प्रदूषण फैलाने का बड़ा कारण बनी हुई हैं जिसके चलते NGT ने अपनी 81 पेज की रिपोर्ट में कड़ी फटकार लगाई है.

जब योगी और मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में गंगा है, और अभी तक इसकी साफ़-सफाई, जल संरक्षण और संचयन की जिम्मेदारी का काम अनुभवी मनोज कुमार सिंह जैसे अफसर के हाथों में है, जिनके पास खुद की डिग्री के साथ ही प्रदेश से लेकर केंद्र तक उन विभागों में सेवायें देने का एक लंबा अनुभव है जोकि इन नदियों के संरक्षण के लिए जरूरी हैं, के बाद भी गोमती जैसी सहायक नदियों की बदहाली तमाम सवाल खड़े करती है. शायद मनोज कुमार सिंह के अनुभवों को देखते हुए ही सरकार ने नमामि गंगे व स्वच्छता मिशन जैसी केंद्र की महत्वाकांक्षी योजना को जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी देते हुए केंद्र से प्रदेश को वापस किया था. लेकिन राजधानी से निकलने वाली गोमती की बदहाली, हकीकत बयान करती है, तो एनजीटी की कूड़ा प्रबंधन व अनुश्रवण समिति की 81 पेज की रिपोर्ट जिसमें प्रदेश सरकार की अच्छी खासी किरकिरी हुई, बहुत कुछ बयान करती है. संचारी रोग की रोकथाम की तर्ज पर बनी रणनीति की ही तरह इन विलुप्त होती नदियों को भी स्वस्थ रखा जा सकता था लेकिन सूबे की अफसरशाही ने अपनी कार्यप्रणाली को दर्शा दिया और 1993 से चली आ रही व्यवस्था से ही काम चलाते रहे है, अपने अनुभव, समय की मांग और व्यावहारिक निर्णय लेने से बचते रहे जिसका परिणाम सामने है.

दस्तक-2 यानी संचारी रोग की रोकथाम की तर्ज पर गोमती संरक्षण का कार्य क्यूँ नहीं?

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भूगर्भ जल से जलमग्न रहने वाली गोमती पर अस्तित्व का संकट, कहीं सरस्वती नदी न बन जाय गोमती

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