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अलोक कुमार ने पद संभालते ही डीएचएफएल मे निवेश का खेल रखा जारी, पूरे डेढ़ साल तक चला यह खेल

#19 मई 2017 को ऊर्जा विभाग के मुखिया की कुर्सी सम्भाला और 23 मई 2017 को दिया दागी कम्पनी को पहला 100 करोड़ का ट्रांसफ़र.

#कर्मचारियों के पैसे को डीएचएफएल को जमकर लुटा अब शाह बनने चले आलोक कुमार, डेढ़ साल में 29 बार किया पैसा दागी कम्पनी को ट्रांसफ़र.

#अलोक कुमार पर अचानक ऊर्जा विभाग की यूनियनों की चुप्पी और योगी सरकार द्वारा अलोक पर मेहरबानियों से उठ रहे सवाल.

#खाद्यान्न के एक मामले में गोंडा के डीएम को सस्पेंड करने वाले मुख्यमंत्री, अलोक कुमार पर मेहरबान क्यों?

#योगी राज में डेढ़ साल में 29 बार दागी फर्म को फंड हुआ ट्रांसफर, दोषी अलोक कुमार को मिला प्रमोशन याद दिला रहा अखिलेश सरकार का कार्यकाल.

राजेश तिवारी

लखनऊ : ऊर्जा विभाग के जीपीफ घोटाले की नींव भले ही अखिलेश सरकार में पड़ी हो लेकिन उसको आगे बढ़ाने और पिछली सरकारों की तरह जिम्मेदारों को संरक्षण देने में योगी सरकार भी कुछ कम नहीं दिख रही है. जीपीएफ जैसे बड़े घोटाले के उजागर होने और सीधी लापरवाही ज़ाहिर होने के बाद भी योगी सरकार अलोक कुमार जैसे अफ़सर पर कार्यवाही करने की हिम्मत नहीं जुटा पायी है, और न ही अभी तक सीबीआई जाँच के लिए योगी के दिए गये आदेश में कोई प्रगति हो पायी है. अलोक कुमार जिनकी सीधी ज़िम्मेदारी थी जीपीफ घोटाले को रोकने की लेकिन वे इसको रोकने में नाकामयाब रहे या फिर पूरे खेल में शामिल रहे. सूबे की सत्ता संभालते ही योगी सरकार व उनके मंत्रियों ने पिछली अखिलेश सरकार के निर्णयों की समीक्षा शुरू किया और कमियों को ढूढना शुरू किया जोकि खबरों की सुर्खियाँ भी बने ऐसे में डेढ़ साल में 29 बार डीएचएफएल जैसी  दागी फर्म को पैसा ट्रांसफर होना खुद में बड़े सवाल खड़ा करता है.

योगी राज में डेढ़ साल में 29 बार दागी फर्म को फंड हुआ ट्रांसफर, दोषी अलोक कुमार को मिला प्रमोशन याद दिला रहा अखिलेश सरकार का कार्यकाल.

दागी कंपनी डीएचएफएल को हजारों करोड़ रुपये लूटने मे जमकर मदद करने के बाद अब पूर्व चेयरमैन आलोक कुमार मासूमियत का लबादा ओढ़ ईमानदार बनने चले हैं. डीएचएफएल को पावर कारपोरेशन के कर्मचारियों के पीएफ के पैसों के बैंक ट्रांसफर के रिकार्ड चिल्ला चिल्ला कर आलोक कुमार के आकंठ संलिप्तता की गवाही दे रहे हैं. आरटीजीएस के कागज बताते हैं कि आलोक कुमार ने बिजली कर्मचारियों के पीएफ की बंदरबांट तो पद संभालने के हफ्ते भर के अंदर ही शुरू कर दिया था जो बदस्तूर अगले डेढ़सालों तक जारी रहा. इन डेढ़ वर्षों में अलोक कुमार ने कुल 29 बार फ़ंड ट्रांसफ़र किया. ऐसे में ED को उनका दिया गया बयान झूठा व बेबुनियाद है.

सरकार और बिजली विभाग की यूनियन के रूख से साफ़ होता है कि अन्य तमाम मामलों की तरह इस मामले में भी सच्चाई सामने नहीं आएगी और न ही अलोक कुमार जैसे किसी बड़े ओहदेदार पर कोई कार्यवाही किए जाने की उम्मीद है. यह उत्तर प्रदेश की बदनसीबी है कि सरकार किसी की भी हो लेकिन विभागीय मुखिया पर कार्यवाही करने से पसीने छूट ही जाते हैं. फ़िलहाल जीपीफ मामले में अलोक कुमार को लेकर जिस तरह से फ़ील्ड सजायी जा रही है उससे इस योगी सरकार में भी न्याय की उम्मीद नहीं दिखायी दे रही है. इस प्रकरण को लेकर यह चर्चा भी शुरू हो चुकी है कि सरकार अखिलेश की रही हो या फिर योगी की, सबकी कार्यशैली में कोई परिवर्तन नहीं है.

आखिर ऊर्जा विभाग यूनियनों की अचानक चुप्पी के क्या हैं मायने ?

योगी सरकार के अभी तक के कार्यकाल का सबसे बड़ा कलंक साबित हुआ यह ऊर्जा विभाग का जीपीफ घोटाला जिसने मृत प्राय हो चुकी कांग्रेस जैसी पार्टी को भी संजीवनी देने का काम किया उसके जिम्मेदार अलोक कुमार पर कोई कार्यवाही करने के बजाय उनको प्रमोशन देकर प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास बना दिया. जबकि इसी सरकार ने गोंडा के जिलाधिकारी रहे जेबी सिंह को एक मामले में सस्पेंड कर दिया था. यदि दोनों के प्रकरण की गम्भीरता का आंकलन क़िया जाय तो अलोक कुमार का मामला ज़्यादा गम्भीर दिखाई देता है. बस अंतर है तो यह कि दोनों में से एक सीधी भर्ती से है तो दूसरा प्रमोटी है.

परंतु इस पूरे प्रकरण में सबसे आश्चर्यजनक ऊर्जा विभाग के यूनियनों की अचानक चुप्पी है. जिसने जीपीएफ घोटाले पर दो बिन्दुओं पर मोर्चा खोला कि फंड की गारंटी सरकार ले और दोषियों पर कार्यवाही की जाय जिसमें आलोक कुमार का नाम भी लिया गया. लेकिन फेडरेशन ने बखूबी मोर्चा सम्भालने के बाद सरकार से अपने फंड की गारंटी का आदेश तो करा लिया लेकिन अलोक कुमार व अन्य दोषियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही की बात पर आश्चर्यजनक तरीके से चुप्पी साध गये. ऐसे में ऊर्जा विभाग के संगठनों की यह चुप्पी तमाम सवाल खड़े करती है कि अचानक उनकी माँग को विराम क्यों लग गया.

जीपीएफ घोटाले में हुई पूछताछ में अलोक कुमार ने ED के सामने बोला झूठ

जीपीएफ घोटाले में डीएचएफएल में निवेश को लेकर प्रवर्तन निदेशालय द्वारा पूर्व चेयरमैन पावर कारपोरेशन इम्प्लायज ट्रस्ट के चेयरमैन रहे अलोक कुमार से की गयी पूछताछ में जो जानकारी बाहर आयी है उसमें अलोक कुमार द्वारा या तो एजेंसियों को गुमराह किया गया है या फिर पूछताछ के नाम पर सिर्फ उनसे औपचारिकता मात्र की गयी. खबरों के मुताबिक़ गलत तरीके से एक निजी कंपनी में निवेश का निर्णय लिया गया और वह डेढ़ साल तक चलता रहा इस पर कोई रोक क्यों नहीं लगाई गयी. इसके जवाब में  अलोक कुमार का जावाब बेहद ही बचकाना रहा. उनका जवाब था कि ट्रस्ट के पैसों के निवेश के लिये पहले से चली आ रही व्यवस्था काम कर रही थी जिसमें वित्त नियंत्रक और सचिव स्तर से निर्णय लिया जाता रहा था लेकिन जब उन्हें जानकारी हुई तब तक निजी कंपनी में 2631.20 करोड़ रूपये का निवेश किया जा चुका था. इसके बाद उनके द्वारा निवेश पर रोक लगाई गयी और साथ ही DHFL से 1185.50 करोड़ रूपये वापस ट्रस्ट को दिलाये गए.

जीपीएफ घोटालें में आलोक कुमार का दिया गया यह बयान पूरी तरह से गलत है. जब पता चल गया था कि घोटाला हो रहा है तो सारी धनराशि वापस ली जानी चाहिए थी और इसके जिम्मेदारों पर आवश्यक कार्यवाही करते हुए इसकी जांच कराए जाने का आदेश देना था साथ ही प्रकरण को सरकार के संज्ञान में लाना चाहिए था. लेकिन मामले को दबाए रखा गया. अलोक कुमार जिस धनराशि को वापस लाने की बात कह रहे हैं दरअसल वह एफडी मेच्योर हो गई थी इसलिए धनराशि वापस आई. इसके अलावा अलोक कुमार द्वारा इस प्रकरण की जांच हेतु क्या कोई कमेटी बनाई या फिर इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों व कर्मचारियों पर किसी तरह की कार्यवाही अलोक कुमार द्वारा की गयी. इन सवालों का जवाब अभी तक नहीं सामने आ पाया है. इस तरह अलोक कुमार का यह बयान भी पूरी तरह गुमराह करने वाला व झूठा है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंसूबों को ठेंगा दिखाने वाला है.

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