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यूपी का राजदरबार

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में कोरोना के खिलाफ लड़ाई में कई अधिकारी ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी कोशिशों को ‘सरकारी गाइडलाइंस’ तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि लीक से हटकर सोचने और उसे कामयाब बनाने के लिए चर्चा में आए. लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो चर्चा में आये अफसरों से असंतुष्ट हैं. ऐसे ही एक आईएएस का किस्सा : –

टीम -11 में भी असंतुष्ट ….
कोरोना से निपटने के लिए गठित टीम-11 में बड़े काबिल काबिल अफसर हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने टीम-11 के हर अधिकारी की जिम्मेदारी उसके आहौदे और रूचि के अनुसार तय की है. हर टीम के दायित्व अलग और बिल्कुल स्पष्ट हैं. मुख्य सचिव की टीम केंद्र और दूसरे राज्यों से कोऑर्डिनेट करती है. दूसरे राज्यों में यूपी के जो लोग फंसे हैं, उनकी निगरानी का जिम्मा इसी टीम पर है. तो औद्योगिक विकास आयुक्त की टीम को यह देखना होता है कि श्रमिकों और गरीबों को भरण-पोषण अच्छे से हो रहा है या नहीं. कृषि उत्पादन आयुक्त की टीम डोर-स्टेप-डिलिवरी सुनिश्चित कर रही है. अपर मुख्य सचिव गृह की टीम लॉ एंड ऑर्डर के साथ-साथ तब्लीगी जमात के लोगों को तलाश कर उन्हें आइसोलेट कराने का काम देख रही है. अपर मुख्य सचिव राजस्व की टीम पर सभी जिलों में बने कंट्रोल रूम की निगरानी का जिम्मा है. प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य की टीम के जिम्मे संक्रमित व्यक्तियों का इलाज और देखभाल है. प्रमुख सचिव, पशुपालन की टीम चारे की व्यवस्था देख रही है. डीजीपी की टीम का काम जेलों को सैनिटाइज कराना है. अपर मुख्य सचिव वित्त की टीम लॉकडाउन के आर्थिक प्रभावों पर काम कर रही है. प्रमुख सचिव कृषि की टीम के जिम्मे फसल के प्रभावी प्रोक्योरमेंट की व्यवस्था है. प्रमुख सचिव पंचायती राज की टीम पर गांव- शहर में पेयजल और सैनिटाइजेशन का जिम्मा है. इस टीम-11 के अधिकारियों के कामकाज की निगरानी के लिए खुद मुख्यमंत्री उन 11 अफसरों के साथ रोज मैराथन बैठकें करते हैं. इस बैठकों में दिए गए निर्देशों का अनुपालन कराने के मामले में कई अफसरों ने अपनी नई पहचान बनायी है. तो कुछ अफसर ऐसे भी हैं जिनके पास अहम जिम्मेदारी है लेकिन उन्होंने बीते 44 दिनों के लॉकडाउन पीरियड में कोई भी नाम कमाने वाला काम नही किया है. यानि कोई गुडवर्क उनके खाते में नही है. सिर्फ औसत कार्य ही किया है. ऐसा ही औसत कार्य करने वाले ये साहब ऐसे हैं जो जिनकी अपने से दो साल सीनियर अधिकारी से नही बनती. करीब-करीब दोनों में बोलचाल तक नही होती. बिहार में जन्मे यह साहब मुख्य सचिव के बेहद करीब हैं. उन्होंने ही दो माह पहले इनका विभाग बदलवाया था. कोरोना से मुकाबला करने को लेकर इस साहब के विभाग का अहम रोल है. यह जानने समझने के बाद भी वह अपनी जिम्मेदारी निभा के मामले में तेजी नही दिखा रहे हैं. जबकि देवेश चतुर्वेदी, आलोक टंडन, आलोक सिन्हा, अवनीश अवस्थी और भुवनेश कुमार ने जिस लगन के साथ अपने दायित्वों को निभाया है, उसकी मुख्य मंत्री ने तारीफ़ की है. मीडिया ने तो इन अफसरों के कार्य का आंकलन करते हुए भुवनेश कुमार को गोवंश का रक्षक और देवेश कुमार का किसानों का हितैषी बताया. यही नही टीम-11 की कमेटियों का हिस्सा रहे संजय भूसरेड्डी को सेनेटाइजर संजय और नवनीत सहगल को योगी का मास्क मैंन लिखा गया. लेकिन बिहार में जन्मे चीफ साहब के चहेते एक अफसर के हाथ में अभी तक तो कोई प्रसाद हाथ नही लगा और यह साहब अपने से दो साल सीनियर अपर मुख्य सचिव से असंतुष्ट होकर उनकी बुराई खोजने में लगे हैं. हालांकि यह साहब बहुतों की हेल्थ ठीक रखने की कूबत रखते हैं पर एक सीनियर को पसंद न करने की अपनी जिद के चलते अपने काम पर ठीक से ध्यान ही नही दे पा रहे हैं और ऐसे में नाम कमाने का अवसर गंवा रहे हैं. – वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र जी की कलम से।

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