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नगर आयुक्त पद : प्रमोटी आईएएस और पीसीएस एक बार फिर हकमारी से नाराज

राजेश तिवारी

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में अफसरशाही की रीढ़ कहे जाने वाले अफसरों में एक बार फिर हकमारी से नाराजगी है. सरकार ने अभी राजधानी लखनऊ सहित कुछ और नगर निगमों में सीधी भर्ती के आईएएस अफसरों को नगर आयुक्त के पद पर तैनात किया है जिनमें राजधानी लखनऊ के नगर आयुक्त व पीसीएस एसोसिएशन के अध्यक्ष इन्द्रमणि त्रिपाठी का नाम भी शामिल है. जनता से सीधे सरोकार रखने वाले इन अफसरों में इस बात को लेकर नाराजगी है और वे इसके लिए सीधी भर्ती के आईएएस अफसरों को जिम्मेदार बताते हुए इसको उनकी  विस्तारवादी व अतिक्रमण की नीति का हिस्सा बता रहे हैं. जानकारों का कहना है कि सरकार की छवि जमीन पर तैयार करने का काम पीसीएस अफसरों का ही है और नगर निगम के मुखिया का पद सीधे जनता से जुड़ा होता है. ऐसे में इस पद पर तैनाती का मानक भी जनसमर्थन और जनप्रतिनिधियों की राय से होना चाहिए. परन्तु सरकार द्वारा ऐसा न किये जाने और इस संवर्ग की बढती नाराजगी आने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सियासी रूप से कतई लाभदायक नहीं है.

फिलहाल पीसीएस संवर्ग का पद माने जाने वाले सूबे के 17 नगर निगमों में से नगर आयुक्त के पद पर आधे से अधिक पर सीधी सेवा के आईएएस अफसर सरकार ने तैनात कर दिए हैं, बाकी में 3 निगमों में प्रमोटी आईएएस और 5 में पीसीएस अफसर नगर आयुक्त के पद पर हैं. पहले 10 नगर निगमों में कमिश्नर स्तर के अफसरों की तैनाती के प्रपोजल को लेकर काफी चर्चा में रहने वाला नगर विकास विभाग अब नगर निगमों में सीधी भर्ती के आईएएस अफसरों के नगर आयुक्त के पद पर नियुक्त किये जाने से फिर से चर्चा में है. स्वच्छता मिशन को लेकर सुर्ख़ियों में रहने वाले उत्तर प्रदेश के नगर विकास विभाग में स्मार्ट सिटी के भारी भरकम बजट के आने के बाद सीधी भर्ती के आईएएस अफसरों को नगर आयुक्त पद पर बनाये जाने से प्रमोटी व पीसीएस अफसरों में चिंता तो अन्य में चर्चाओं का बाजार गर्म है.

नगर निगमों में सीधी भर्ती आईएएस अफसरों के इस बढ़ते रुझान ने एक नई चर्चा को जन्म दे दिया है. लोगों का कहना है कि आईएएस अफसरों की इस पसंद के पीछे कहीं स्मार्ट सिटी तो नहीं जिसका करोड़ों का बजट होता है. फिलहाल सूबे में वाराणसी, प्रयागराज, लखनऊ, गाजियाबाद, कानपुर, आगरा, मथुरा, बरेली और झाँसी में सीधी भर्ती के आईएएस, तथा अयोध्या, अलीगढ और मेरठ में प्रमोटी आईएएस अफसर तो शाहजहांपुर, मुरादाबाद,सहारनपुर, फिरोजाबाद और गोरखपुर में पीसीएस सेवा के अफसर नगर आयुक्त के पद पर तैनात हैं.

अफसरशाही पर करीबी नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि सरकार के इस फैसले से क्या यह माना जाय कि अभी तक पीसीएस संवर्ग वाला नगर आयुक्त निगम व करोड़ों के बजट वाले स्मार्ट सिटी योजना के क्रियान्वयन में फेल साबित हुआ है. जबकि 90 के दशक में म्युन्सिपल कार्पोरेशंस में कमिश्नर के पद पर सीधी भर्ती के आईएएस तैनात होते थे लेकिन बढ़ते कामों के बोझ और जनप्रतिनिधियों के दखल के चलते इस संवर्ग ने खुद को इससे किनारे कर लिया. आज जब स्मार्ट सिटी योजना का भारी भरकम बजट निगमों में आ आ गया है तो क्या फिर से इनके द्वारा इस तरह की कवायद को जन्म दिया जा रहा है. बताते चलें कि स्मार्ट सिटी के लिए कुछ नगर निगमों की सेन्ट्रल फंडिग 1000 करोड़ रूपये होती है और राज्य से कुछ की 500 करोड़ होती है. वर्तमान में सेन्ट्रल फंडिंग वाले निगमों में वाराणसी, लखनऊ,कानपुर, प्रयागराज, झाँसी, अलीगढ, मथुरा, बरेली, आगरा और सहारनपुर हैं. बाकी में राज्य फंडिंग से पैसा आता है.

इसके पहले भी उठ चुका है इस तरह का विवाद

उत्तर प्रदेश के PCS अफ़सरो को एक और झटका उस समय लगा था जब प्राधिकरण के सचिव की कुर्सी पर PCS की जगह IAS अफसरों की तैनाती कर दी गयी थी और IAS प्रेरणा शर्मा को सचिव मुरादाबाद प्रधिकरण बना दिया गया था. प्रधिकरण के VC की कुर्सी पर पहले से IAS अफसरों का कब्जा था. निदेशालयों की कुर्सी, नगर आयुक्त और CDO की कुर्सी भी IAS अफसरों के पास मौजूद. स्मार्ट सिटी वाले शहर में IAS के नगर आयुक्त बनने की तमन्ना की खबर पहले ही आ चुकी है.

पहले भी नगर विकास 10 निगमों में कमिश्नर स्तर के आईएएस आफसरों को नगर आयुक्त बनाने का भेज चुका है सरकार को प्रपोजल.

इसके पहले भी 10 नगर निगमों में कमिश्नर स्तर के अफसरों की तैनाती के प्रपोजल को लेकर इसी तरह काफी चर्चा हुई थी. उस समय इस विषय पर बातचीत में पीसीएस संघ के सचिव पवन गंगवार का कहना था कि सूबे में आईएएस संवर्ग की स्ट्रैंथ ही पूरी नहीं है और जितने आईएएस हैं उनके पद वेतनमान के अनुसार चिन्हित हैं. ऐसे में आईएएस कैडर के चिन्हित पदों को पहले भरा जाना चाहिए. इसके बाद यदि आईएएस अफसरों के सरप्लस की स्थिति में इस तरह की कवायद की जाती तो एक बार माना जा सकता था. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है और इसमें सीधा-सीधा पीसीएस अफसरों को निशाना बनाया जा रहा है और उनकी अनदेखी की जा रही है. IAS अथवा किसी भी अन्य संवर्ग के अधिकारियों को उस संवर्ग के अधिकारियों की तैनाती हेतु नोटीफाइड पदों से भिन्न पदों पर तैनाती हेतु विचार किये जाने से वो संवर्ग प्रभावित व हतोत्साहित होता है जिसके लिए वे पद पूर्व से चिन्हित होते हैं. पीसीएस एसोसिएशन अपेक्षा करता है कि आईएएस संवर्ग तथा पीसीएस संवर्ग के कैडर रिव्यु पर एसोसिएशन को विश्वास में लेकर कार्यवाही की जाएगी अन्यथा यदि कोई निर्णय पीसीएस अधिकारियों के विपरीत लिया जाता है तो विरोध करते हुए अग्रिम रणनीति पर निर्णय लिया जाना बाध्यता होगी.

उनका कहना था कि वैसे तो यह सरकार का निर्णय होता है कि वह किसको कहाँ तैनात करे लेकिन अगर ऐसा होता है तो पीसीएस संघ मांग करेगा की कैडर के आधार पर पदों को चिन्हित करने की व्यवस्था खत्म करते हुए अफसरों की योग्यता के आधार पर उनको तैनाती दी जाए और पीसीएस अफसर को भी डीएम और कमिश्नर जैसे पदों पर तैनाती दी जाय. प्रमोटी आईएएस अफसरों और डायरेक्ट आईएएस अफसरों के जिलों की तुलना करके उनके परफॉर्मेस को देखा जा सकता है. पवन गंगवार का कहना था कि सचिव लेवल पर इन आईएएस अफसरों को बैठने में दिक्कत आ रही है क्योंकि इनके दिमाग में कलेक्टर बनने की चाहत रहती है. जो डायरेक्ट अफसर कमिश्नरी में बैठे हैं उनकी तो ठीक है बाकी का सोचना होता है कि प्रमुख सचिव या फिर कमिश्नर जब बनेंगे तब बनेंगे, इस बीच में कोई ऐसा पद ढूंढो जहां पर कि अपना रुतबा बना रहे. इस सम्बन्ध में उन्होंने पीसीएस संघ के पूर्व अध्यक्ष बाबा हरदेव सिंह के कथन को कोट किया कि अगर आईएएस अफसर हमारे संवर्ग के पदों पर अतिक्रमण करेंगे तो हम बुलडोजर चला देंगे.

वैसे तो आईएएस बनाम पीसीएस व प्रमोटी आईएएस की आपसी खींचतान कोई नई नहीं है. हालिया इस बात की नाराजगी कोविड 19 को लेकर नोडल अफसर के रूप में पुनः तैनात किये जाने से भी इन अफसरों के बीच खींचतान की खबरें सुर्खियाँ बनीं थीं. परन्तु समय के साथ पीसीएस एसोसिएशन की बढती निष्क्रियता और पदाधिकारियों की स्वार्थपरता से धीरे धीरे संगठन हित के ऐसे मुद्दे ढीले पड़ते गये और अब संगठन केवल नाम का ही रह गया है.

नगर आयुक्त पद : प्रमोटी आईएएस और पीसीएस बिफरे हकमारी पर

नगर आयुक्त पद : प्रमोटी आईएएस और पीसीएस बिफरे हकमारी पर

 

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