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ब्लैकलिस्ट सी०एंड०डी०एस० में होता है टेंडर में खेल, चहेते पास बाकी सब फेल, निदेशक और प्रोजेक्ट मैनेजर की मिलीभगत से नहीं होती कार्यवाही

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में सत्ता की बागडोर संभालते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जल निगम की कार्य प्रणाली पर जो सवालिया निशान लगाया था उसकी एक कड़ी जल निगम की कार्यदायी संस्था सी०एंड०डी०एस० को शासन द्वारा ब्लैक लिस्ट करने से जुड़ी है. दरअसल शासन को सी०एंड०डी०एस० के कामों में मनमानी, लापरवाही और वित्तीय अनियमितता की शिकायतें मिल रही थी जिसके कारण शासन को सख्त रवैया अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसकी एक बानगी जनपद हमीरपुर के महरौली में पशु आश्रय स्थल के निर्माण में हुए टेंडर के खेल से समझी जा सकती है. सी०एंड०डी०एस० में चल रहे खेल की यदि शिकायत भी होती है तो वह आजम खान के चहेते रहे निदेशक गुलाब दूबे तक पहुंचते ही दम तोड़ देती है और मामला ठन्डे बस्ते में चला जाता है. जिसका सीधा उदाहरण जनपद चित्रकूट में बन रहे विकास भवन में मिली खामियों को दर्शाते हुए डीएम द्वारा प्रोजेक्ट मैनेजर पर अनुशासनात्मक कार्यवाही करने को लिखा जाता है और मामला निदेशक तक पहुंचते ही शांत हो जाता है.

सी०एंड०डी०एस० महोबा में यूनिट-48 के प्रोजेक्ट मैनेजर लक्ष्मीकांत तिवारी द्वारा टेंडर में खेल करके नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए अपने चहेतों को उपकृत किये जाने का मामला प्रकाश में आया है और जिसकी शिकायत भी हुई है. परन्तु मामला गंभीर तब और हो जाता है जब प्रकरण की निदेशक से शिकायत होने के बावजूद एक लम्बा अंतराल बीत जाने के बाद भी मामला जस का तस पड़ा रहता है. अब यह परियोजना प्रबंधक और निदेशक की मिलीभगत का परिणाम है या फिर निदेशक की उदासीनता इसको जांचना शासन का काम है. वैसे यह नजीर मात्र है ऐसे और बहुत से कारनामे सी०एंड०डी०एस० के होनहारों द्वारा किये गये हैं और जिसका परिणाम है कि इस संस्था को शासन द्वारा ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है.

सी०एंड०डी०एस० की यूनिट-48 के परियोजना प्रबंधक लक्ष्मीनारायण का कोई यह नया कारनामा नहीं है. इसके पहले भी “अफसरनामा” ने चित्रकूट विकास भवन के निर्माण में इनके द्वारा की गयी गडबडियों को जिलाधिकारी द्वारा बिन्दुवार शासन को भेज इनपर अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए कहा गया है. परन्तु निदेशक सी०एंड०डी०एस० द्वारा कार्यवाही के नाम पर कोई निर्णय अभी तक नहीं लिया जा सका है. मामला पूरा प्रबंध निदेशक की जानकारी में भी पहुँच गया है अब देखना यह होगा कि क्या प्रबंध निदेशक इन मामलों में कोई न्यायसंगत निर्णय ले पायेंगे और दोषियों को दंड दे पायेंगे.

फिलहाल मिली जानकारी के मुताबिक़ जनपद हमीरपुर के महरौली में पशु आश्रय स्थल के निर्माण में हुए टेंडर के खेल में पहले एक ठेकेदार को काम का ठेका दिया जाता है. करीब आधा काम हो जाने के बाद नियमों को धता बताते हुए उक्त ठेकेदार से काम लेकर किसी अपने चहेते को दे दिया जाता है. आनन् फानन में लिए गये इस निर्णय में उन तमाम नियमों और कानूनों को दरकिनार किया जाता है जोकि टेंडर के निरस्तीकरण के लिए शासन द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का हिस्सा होता है.

सवाल यह भी है कि आखिर परियोजना प्रबंधक लक्ष्मीकांत तिवारी को हमीरपुर के इसी मामले में इतनी जल्दी क्यों थी ? जोकि आनन् फानन में काम में देरी का आरोप लगाकर व् नियमों को दरकिनार करते हुए आधा अधूरा काम अपने कथित चहेते ठेकेदार को दे दिया. जबकि अभी भी कई काम ऐसे हैं जोकि पूरे नहीं हो सके हैं. इनसीटू कुरारा, सरीला और महोबा के चल रहे कामों में एम०ओ०यू० के अनुसार अंतिम क़िस्त जोकि मार्च 2018 में मिल चुकी है, के मिलने के 6 महीने के अंदर काम को पूरा करना नियमतः जरूरी है, परन्तु ये काम अभी तक फाईनल नहीं किये जा सके हैं. इसके लिए परियोजना प्रबंधक ने कार्यवाही के नाम पर केवल कुरारा के ठेकेदार को बदलने का काम किया और बाकी दो सरीला और महोबा के ठेकेदार पर अभी तक किसी प्रकार की कोई कार्यवाही करना भूल गये. सूत्र की मानें तो चूंकि इन दो कामों को प्रोजेक्ट मैनेजर के चहेते की फर्म काम कर रही है और जिसमें अप्रत्यक्ष रूप से इनकी भागीदारी भी है, इसलिए इनपर देरी होने के बावजूद अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है.

बताते चलें कि 40 लाख तक के काम का टेंडर करने का अधिकार जनरल मैनेजर के कार्य क्षेत्र में तो आता है. परंतु किसी टेंडर को देने अथवा निरस्त करने का काम शासन द्वारा निर्धारित कमेटी के माध्यम से किया जाता है. जिसमें जनरल मैनेजर, प्रोजेक्ट मैनेजर, एकाउंटेंट और संबंधित जेई होते हैं. इस कमेटी के निर्णय के बाद ही कोई टेंडर निरस्त किया जा सकता है. सूत्रों के मुताबिक़ इस प्रकरण में मामले को कमेटी के समक्ष न लाकर खुद ही निर्णय ले लिया गया.

इसके अलावा यदि किसी मामले में कमेटी द्वारा टेंडर के निरस्तीकरण का निर्णय लिया जाता है तो पहले उक्त ठेकेदार द्वारा जमा की गई सिक्योरिटी को जब्त किए जाने का प्रावधान है. परंतु इसमें इस नियम का भी अनुपालन नहीं किया जा सका है. हमीरपुर के इस केस में अप्रैल माह में एक पत्र जारी किया जाता है कि आप का टेंडर निरस्त किया गया है और काम किसी अन्य ठेकेदार से करा लिया गया है जबकि सिक्योरिटी जब्त नहीं की गई है और ना ही इस संदर्भ में उक्त ठेकेदार को कोई सूचना भी दी गई है. फिलहाल शासन द्वारा सी०एंड०डी०एस० को ब्लैक लिस्ट भले कर दिया गया है, परन्तु अब आगे यदि प्रबंध निदेशक के पद पर बैठे एक ईमानदार छवि के अफसर विकास गोठवाल जमीनी स्तर पर पनप चुके इस तरह के सिंडिकेट को नहीं तोड़ पाते हैं तो इसमें किसी प्रकार के सुधार की गुंजाईस की उम्मीद महज ख्याली पुलाव ही साबित होगा.

निदेशक सी०एंड०डीएस० की मेहरबानी से परियोजना प्रबंधक के खिलाफ हर जांच पर पड़ा पानी

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