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यूपी में बिजली के निजीकरण के अहम किरदार रहे निदेशक वित्त निधि नारंग के सेवा विस्तार पर विराम, दफ्तर सील करने की मांग

#बड़ा सवाल सलाहकार कंपनियों की खामियों की अनदेखी का जिम्मेदार कौन? एक ही व्यक्ति इतना महत्वपूर्ण हो जाता है क्यों? निधि नारंग पर कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के लगाये गए सभी आरोप गंभीर, क्या होगी जांच?

#निजीकरण की सलाहकार कंपनी के टेंडर मूल्यांकन का काम देख रहे निदेशक वित्त निधि नारंग को लगातार चौथी बार सेवा विस्तार देने की थी तैयारी.

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ : उर्जा विभाग के निदेशक वित्त निधि नारंग के सेवा विस्तार जैसे प्रकरण और विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के आरोप यह समझने के लिए काफी हैं कि अनुभवी और विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति को सलाहकार बनाना, सलाह लेना व्यवस्था में सदा से रहा है. लेकिन आज सेवा विस्तार के नाम पर किसी का हक़ छीनना और उस पद व कुर्सी को भ्रष्टाचार का केंद्र बना देना यह कितना उचित है? उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के निदेशक वित्त एवं निजीकरण हेतु बनाई गई टेंडर मूल्यांकन समिति के अध्यक्ष निधि नारंग के सेवा विस्तार पर शासन से रोक और विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के आरोपों से यह स्पष्ट है कि अभी तक जो भी हुआ उसमें कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. वैसे तो यह उदाहरण मात्र है, इस तरह के उदाहरण सरकार के अन्य विभागों में भी विद्यमान हैं.

उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के निदेशक वित्त एवं निजीकरण हेतु बनाई गई टेंडर मूल्यांकन समिति के अध्यक्ष निधि नारंग का कार्यकाल न बढ़ाये जाने, वित्त निदेशक निधि नारंग द्वारा बिजली विभाग के निजीकरण संबंधी लिऐ गए सभी निर्णयों को तत्काल निरस्त किये जाने, साथ ही उनके कार्यकाल में लिए गए टैंडर संबंधी सभी वित्तीय फैसलों की उच्च स्तरीय जांच इस आशय से कराए जाने कि उनके कार्यकाल में भारी घोटाला हुआ है, से साफ़ है कि सेवा विस्तार जैसे निर्णय के पीछे की मंशा कुशल प्रबंधन व सञ्चालन की नहीं बल्कि तमाम अनैतिक कारकों को जन्म देती हैं. विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा अपर मुख्य सचिव ऊर्जा को पत्र भेज कर यह मांग करना कि निधि नारंग के कार्यालय को तत्काल सील किया जाए क्योंकि यह पता चला है कि निधि नारंग निदेशक वित्त के कार्यालय से कई गोपनीय दस्तावेज की फोटो कॉपी करा रहे हैं और उसे बाहर ले जाना चाहते हैं, जैसे उक्त संगीन आरोप किसी भी व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हैं.

कहते हैं कि निर्भरता उस व्यवस्था को पंगु और भ्रष्टाचारी बना देती है जिसका कोई दूसरा विकल्प नहीं होता. युद्ध से लेकर व्यवस्था को व्यवस्थित रखने के लिए कुशल रणनीतिकार सदैव एक प्लान के बैकअप में दूसरा प्लान तैयार रखते हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश में शीर्ष अफसरशाही से लेकर निचले स्तर तक तमाम ऐसे उदहारण मिल जायेंगे जहाँ वर्षों से एक ही कुर्सी पर अफसर जमा है, जैसे कि उसका दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है. जानकारों के मुताबिक़ यह विकल्प का नहीं बल्कि व्यवस्था का प्रश्न है और इसकी जिम्मेदारी सम्बंधित प्रबंधन अथवा शासन की है. लेकिन हित साधन में जुटे इसके जिम्मेदार व्यवस्था को दरकिनार कर एक व्यक्ति की महत्ता बताकर अपना काम करते रहते हैं. और यही भ्रष्टाचार के बड़े केंद्र भी होते हैं.

उतर प्रदेश में का उर्जा विभाग इधर अपने मंत्री के बयानों तथा विगत कई माह से अभियंता संघ के निजीकरण के विरोध को लेकर काफी चर्चा में है. मंत्री नौकरशाही की संवेदनहीनता और निरंकुशता पर चोट कर रहे हैं तो प्रबंधन अपने ही अंदाज में है. यह प्रबंधन की ही विफलता और मनमानापन है कि निदेशक वित्त निधि नारंग का विकल्प खोजने के बजाय लगातार 3 बार सेवा विस्तार दिया गया और चौथी बार के लिए शासन को पत्र भेज दिया. हांलांकि इस बार प्रबंधन को इसमें सफलता नहीं मिली और निधि नारंग के सेवा विस्तार पर विराम लग गया. लेकिन इसमे सबसे बड़ा सवाल यह है कि बिजली निजीकरण की सलाहकार कंपनी के टेंडर मूल्यांकन का काम देख रहे निदेशक वित्त निधि नारंग ने कंपनी की खामियों की अनदेखी क्यों की? और इसपर क्या कार्यवाई हुई? फ़िलहाल निधि नारंग के सेवा विस्तार पर विराम के फैसले का विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने स्वागत कर निजीकरण की सारी प्रक्रिया रद्द करने, निदेशक वित्त निधि नारंग द्वारा निजीकरण के सम्बन्ध में लिये गए सभी निर्णय निरस्त करने एवं उनके कार्यकाल में लिए गए वित्तीय फैसलों की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग करते हुए निजीकरण के विरोध में प्रांत व्यापी आंदोलन जारी रखने का ऐलान किया है.

बताते चलें कि उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के निदेशक वित्त एवं निजीकरण हेतु बनाई गई टेंडर मूल्यांकन समिति के अध्यक्ष निधि नारंग का कार्यकाल न बढ़ाये जाने के उत्तर प्रदेश सरकार के निर्णय पर आभार प्रगट करते हुए विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने मांग की है कि निदेशक वित्त निधि नारंग द्वारा निजीकरण संबंधी लिऐ गए सभी निर्णयों को तत्काल निरस्त किया जाय, साथ ही निदेशक वित्त निधि नारंग के कार्यकाल में लिए गए टैंडर संबंधी सभी वित्तीय फैसलों की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए क्योंकि यह चर्चा है कि उनके कार्यकाल में भारी घोटाला हुआ है. संघर्ष समिति ने सीएम योगी से मांग की है कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण हेतु बनाए गए सारे दस्तावेज एक बड़े घोटाले का अंग है अतः निजीकरण की सारी प्रक्रिया तत्काल निरस्त करते हुए निधि नारंग के कार्यकाल में निजीकरण के नाम पर किए गए सारे घोटाले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए.

संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण हेतु जिस प्रकार से ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट की नियुक्ति की गई और झूठा शपथ पत्र देने की बात स्वीकार कर लेने के बावजूद ग्रांट थॉर्टन को कंसलटेंट बनाए रखा गया, इसके बाद ग्रांट थॉर्टन को निधि नारंग ने ही क्लीन चिट दिया और ग्रांट थॉर्टन के जरिए निजीकरण के ऐसे दस्तावेज तैयार कराये गए जो कुछ चुनिंदा निजी घरानों को लाभ देने हेतु बनाए गए हैं. निजीकरण की वर्तमान में चल रही सारी प्रक्रिया इन्हीं दस्तावेजों पर आधारित है अतः इसे निरस्त किया जाय. साथ ही विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने अपर मुख्य सचिव ऊर्जा को एक पत्र भेज कर यह मांग किया है कि निधि नारंग के कार्यालय को तत्काल सील किया जाए क्योंकि यह पता चला है कि निधि नारंग निदेशक वित्त के कार्यालय से कई गोपनीय दस्तावेज की फोटो कॉपी करा रहे हैं और उसे बाहर ले जाना चाहते हैं.

संघर्ष समिति ने अपर मुख्य सचिव ऊर्जा से इस प्रकरण में तत्काल हस्तक्षेप कर निधि नारंग के कार्यालय को तत्काल सील कराने के साथ ही यह सुनिश्चित कराने की मांग कि है कि निदेशक वित्त के कार्यालय से कोई भी गोपनीय दस्तावेज फोटोकॉपी होकर बाहर न जाने पाए जिससे पावर कॉरपोरेशन की गोपनीयता और पारदर्शिता प्रभावित न हो. खासकर ऐसे समय में जब पावर कॉरपोरेशन पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण कर रहा है और निधि नारंग को निजीकरण हेतु बनाई गई टेंडर मूल्यांकन समिति का अध्यक्ष बनाया गया है. बताते चलें कि संघर्ष समिति के आह्वान पर आज लगातार 245 वें दिन बिजली कर्मियों ने प्रदेश भर में निजीकरण के विरोध में व्यापक विरोध प्रदर्शन जारी रखा है.

गौरतलब है कि पावर कॉरपोरेशन के निदेशक वित्त निधि नारंग को 06 महीने का सेवा विस्तार देने के लिए पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष ने शासन को प्रस्ताव भेजा जबकि निदेशक वित्त निधि नारंग का कार्यकाल पहले ही 03 बार बढ़ाया जा चुका है. इसकी भनक लगते ही संघर्ष समिति के पदाधिकारी ने विरोध शुरू कर दिया. निदेशक वित्त निधि नारंग और ट्रांजैक्शन एडवाइजर कंपनी के बीच घनिष्ठता को लेकर भी संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने आरोप लगाया और कहा कि उर्जा विभाग के निजीकरण का प्रस्ताव निदेशक वित्त और कम्पनियों की मिलीभगत से ही तैयार किया गया है. यहाँ भी वही बड़ा सवाल है कि क्या बिजली विभाग के वित्त की जिम्मेदारी संभालने वाला कोई दूसरा अफसर है ही नहीं? और अगर कोई दूसरा नहीं है तो जिम्मेदारों ने इसके लिए क्या कुछ उपाय किया? इस तरह के निर्णय और उक्त पद के महिमा मंडन से व्यवस्था की कमियाँ उजागर होने के साथ ही निजी हित की तरफ इशारा है.

उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के निदेशक वित्त निधि नारंग के सेवा विस्तार और विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति का पत्र

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