
#व्यक्ति महत्वपूर्ण या पद? उठ रहे सवाल, दो सेवा विस्तार पर चल रहे निधि नारंग का विकल्प ढूढने में क्यों विफल रहा प्रबंधन?
#उदाहरण है सामने, अभी सूबे की अफसरशाही की मुख्य कुर्सी पर व्यक्ति को नहीं पद को महत्वपूर्ण मानते हुए सेवा विस्तार न देकर नयी तैनाती दी गयी. यहाँ भी पूर्व मुख्य सचिव के पास निदेशक वित्त से ज्यादा व महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां थीं. फिर भी पद को महत्वपूर्ण मानते हुए वरिष्ठता के आधार पर एक नये अनुभवी अफसर की तैनाती सरकार द्वारा किया गया.
#निधि नारंग की संपत्तियों और सोलर प्लांटों में उनकी हिस्सेदारी की संघर्ष समिति की उच्चस्तरीय जांच की मांग जायज.
अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : किसी भी व्यवस्था में पद व कुर्सी के बजाय उस पद पर बैठे एक व्यक्ति को इस कदर महत्वपूर्ण बनाने से सवाल उठना लाजमी है. इसमें प्रबंधन की कमी और करप्शन की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. ऐसा मुद्दा तब और गंभीर व महत्वपूर्ण हो जाता है, जब हाल ही में प्रबंधन द्वारा निदेशक वित्त को छोड़ 17 नए निदेशक लाये गए. आखिर उस समय निदेशक वित्त पद पर भी तैनाती क्यों नहीं की गयी? निदेशक वित्त के सेवा विस्तार को शासन स्वीकार करने के बजाय यह कहते हुए निरस्त कर देता है कि सेवा विस्तार का औचित्य नहीं पाया गया है. फिर भी प्रबंधन दुबारा उसी के सेवा विस्तार के लिए शासन को पत्र भेजता है और नए निदेशक वित्त की नियुक्ति नहीं करता है. जबकि उदाहरण सामने है कि अभी सूबे की अफसरशाही की मुख्य कुर्सी पर व्यक्ति को नहीं पद को महत्वपूर्ण मानते हुए सेवा विस्तार न देकर नयी तैनाती दी गयी. यहाँ भी पूर्व मुख्य सचिव के पास निदेशक वित्त से ज्यादा व महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां थीं. फिर भी पद को महत्वपूर्ण मानते हुए वरिष्ठता के आधार पर एक नये अनुभवी अफसर की तैनाती सरकार द्वारा किया गया.
ताजा प्रकरण बिजली विभाग के निदेशक वित्त निधि नारंग के सेवा विस्तार को लेकर है. यह प्रकरण इसलिए और भी गंभीर हो जाता है जब विभाग के ही एक मजबूत व बड़े संगठन द्वारा लिखित में उक्त अफसर निदेशक वित्त पर गंभीर आरोप लगाये जाते हैं और उच्चस्तरीय जांच की मांग की जाती है.
फ़िलहाल कारपोरेशन द्वारा दुबारा सेवा विस्तार के लिए पत्र भेजे जाने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं. साथ ही कारपोरेशन प्रबंधन भी सवालों के घेरे में है. सवाल यह हैं कि आखिर ऐसा क्या है कि पद व कुर्सी के बजाय एक व्यक्ति इतना महत्वपूर्ण हो गया है कि उसके बगैर सारे काम रुक जायेंगे? यदि ऐसा है तो प्रबंधन अबतक क्या कर रहा था? प्रबंधन यह जानते हुए कि उक्त अधिकारी पहले से ही सेवा विस्तार पर चल रहा है. इन्हीं निधि नारंग का सेवा विस्तार कारपोरेशन के चैयरमैन आशीष गोयल की सिफारिश पर दो बार किया जा चुका है. और निदेशक वित्त की कुर्सी निजीकरण के लिए अति महत्वपूर्ण है. फिर भी उस जगह पर दूसरे की व्यवस्था क्यों नहीं की गयी? क्या इसको प्रबंधन की गैर जिम्मेदाराना हरकत मानते हुए उनपर कार्यवाही नहीं बनती है? जबकि निदेशक वित्त निजीकरण हेतु बनाई गई टेंडर मूल्यांकन समिति का अध्यक्ष है.
वैसे तो बिजली का निजीकरण शासन का अपना नीतिगत फैसला हो सकता है लेकिन बिजली के निजीकरण के विरोध में लामबंद विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के यानी एक बड़े समूह के आरोपों के दृष्टिगत एक व्यक्ति को बिना जांच और क्लीनचिट के इतना जरूरी बताया जाना कितना उचित है. विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने पावर कॉरपोरेशन के चेयरमैन को भेजे पत्र में कहा है कि चर्चा है पंजाब और कुछ अन्य प्रान्तों में ऐसे सोलर प्लांट लगे हैं, जिनमें निधि नारंग की हिस्सेदारी है. समिति ने मांग की है कि निधि नारंग की संपत्तियों की और सोलर प्लांटों में उनकी हिस्सेदारी की उच्चस्तरीय जांच हो. संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री से यह भी अपील किया है कि निजी घरानों से मिलीभगत के आरोपी निधि नारंग को कोई सेवा विस्तार न दिया जाए. इसके पहले भी संघर्ष समिति सवाल कर चुकी है कि “आखिर डॉक्टर आशीष गोयल एक व्यक्ति विशेष को बार-बार सेवा विस्तार देने के लिए क्यों लालायित हैं? कहीं यह सब निजी घरानों से मिली भगत का परिणाम तो न हीं है?
गौरतलब है कि 30 जुलाई को उत्तर प्रदेश शासन द्वारा निधि नारंग, निदेशक वित्त के कार्यकाल को बढ़ाए जाने के पॉवर कारपोरेशन के अध्यक्ष आशीष गोयल के 14 जुलाई के प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया था. लेकिन फिर से निधि नारंग का कार्यकाल बढ़ाए जाने के प्रस्ताव को पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष ने शासन को लिखा है. समिति के अनुसार प्रस्ताव में लिखा है कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण की प्रक्रिया अभी अधूरी है और निधि नारंग निजीकरण हेतु बनाई गई टेंडर मूल्यांकन समिति के अध्यक्ष है. अतः उनका कार्यकाल 06 महीने के लिए और बढ़ा दिया जाए जिससे निजीकरण की प्रक्रिया सुगमता से पूरी हो सके.
संघर्ष समिति ने इसके पहले मुख्य सचिव एसपी गोयल को भजे गए पत्र में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण की प्रक्रिया में शामिल रहे निदेशक वित्त निधि नारंग की भूमिका को प्रारंभ से ही विवादास्पद बताया है. समिति ने पत्र में लिखा है कि निधि नारंग की निजीकरण हेतु ट्रांजैक्शन कंसलटेंट नियुक्त किए जाने की प्रक्रिया में हितों के टकराव का प्राविधान हटवाने में बड़ी भूमिका रही है. निजीकरण हेतु नियुक्त किए गए ट्रांजैक्शन कंसलटेंट ग्रांट थॉर्टन को झूठा शपथ पत्र देने के मामले में भी निधि नारंग ने ही क्लीन चिट दी है. निजीकरण हेतु नियुक्त किए गए ट्रांजैक्शन कंसलटेंट ग्रांट थॉर्टन की निदेशक वित्त निधि नारंग से बहुत व्यक्तिगत निकटता है. यह आम चर्चा रही है कि ग्रांट थॉर्टन के लोग अधिकांश समय निधि नारंग के कमरे में ही बैठकर काम करते थे और निधि नारंग उन्हें गोपनीय पत्रावली भी दिखते थे.
