
#छांगुर मामले की तत्कालीन #DMBalrampur ने जब भेजा शासन को रिपोर्ट, तब पुलिस कप्तान रहे कुमार केशव. जमीनी हकीकत से सरकार को अवगत करने वाले डीएम को फ़िलहाल मिली है सजायाफ्ता पोस्टिंग, जबकि पुलिस कप्तान कुमार केशव संभाल रहे जिला अम्बेडकरनगर, साथ ही योगी सरकार नवाज रही राज्य के उच्च पुलिस सम्मान से.
#DM की रिपोर्ट और UPSTF के खुलासे में सिस्टम की जमीनी हकीकत और पुलिस की मिलीभगत है सामने. जांच रिपोर्ट में पुलिस थाने की जमीन पर छांगुर गैंग के कब्जे तक का हुआ खुलासा, फिर भी तत्कालीन पुलिस कप्तान पर सरकार मेहरबान? ऐसे पुलिस अफसर को सरकार द्वारा इनाम देने और तत्कालीन जिलाधिकारी को राजस्व परिषद भेजे जाने से क्या कोई दूसरा अफसर भविष्य में किसी जमीनी हकीकत को सामने लाने की हिम्मत करेगा?
#छांगुर प्रकरण में जिलाधिकारी की भेजी गयी रिपोर्ट के समय #DG विजिलेंस रहे वर्तमान #DGP राजीव कृष्णा और DGP रहे #प्रशांतकुमार, बड़ा सवाल आखिर जिलाधिकारी की इतनी संवेदनशील रिपोर्ट शासन में करीब डेढ़ वर्ष क्यों लंबित रही?
#प्रकरण में अहम् यह है भी है कि जिलाधिकारी की शासन को भेजी रिपोर्ट के बाद इंटेलिजेंस के स्तर से भी सूचना सरकार को भेजी गयी होगी. उसमें क्या रहा और उसमें इतनी देरी क्यों हुई? सवाल यह भी है कि क्या उक्त प्रकरण की सही जानकारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दी गयी?
अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के चर्चित अवैध धर्मांतरण मुद्दे में आरोपी छांगुर पुलिस की जांच में जितना बेनकाब हुआ उससे ज्यादा तो सरकार और सिस्टम में बैठे जिम्मेदारों की मंशा बेनकाब हो रही है. जांच में पुलिस थाने की जमीन कब्ज़ा होने और पुलिस के छांगुर के साथ मिलीभगत की बात सामने है. ऐसे में बलरामपुर के तत्कालीन पुलिस कप्तान रहे केशव कुमार मिश्र पर दरियादिली से सिस्टम बेनकाब हो गया है. महत्वपूर्ण यह है कि पहले तो जिले के तत्कालीन पुलिस मुखिया को एक संवेदनशील जिले की कमान दिया जाता है फिर राज्य के उच्च पुलिस सम्मान से नवाजा जाता है. और तत्कालीन जिलाधिकारी रहे राजस्व परिषद में तैनात कर दिए जाते हैं. बताते चलें कि आईपीएस केशव कुमार मिश्र बिहार प्रांत के दरभंगा जनपद जबकि पूर्व डीजीपी प्रशांत कुमार बिहार प्रान्त के सीवान जिले के मूल निवासी हैं.
जानकार बताते हैं कि जिलाधिकारियों की ऐसी रिपोर्ट पर सरकार में बैठे जिम्मेदार इंटेलिजेंस से भी जानकारी हासिल कर मुख्यमंत्री को अवगत करा फिर उचित निर्णय लेते हैं. लेकिन छांगुर मामले में ऐसा होता नहीं दिख रहा है. सख्त व पारदर्शी व्यवस्था के हिमायती सीएम योगी को यदि जमीनी हकीकत से अवगत कराया गया होता तो आज तत्कालीन जिलाधिकारी अरविन्द सिंह राजस्व परिषद् में न होते और उस समय पुलिस कप्तान रहे केशव कुमार को एक संवेदनशील जिला और 15 अगस्त पर सम्मानित करने के बजाय उनपर जिले की पुलिस पर नियंत्रण और लापरवाही आदि के आरोप में कार्रवाई हुई होती.
इस तरह पूरे प्रकरण में सरकारी मशीनरी सवालों में है, और खुद मुख्यमंत्री को सिस्टम की लापरवाही की हकीकत से रूबरू न कराकर केवल गुमराह किया जा रहा है. ऐसा तब हो रहा है जबकि आज के पुलिस महानिदेशक तत्कालीन डीजी विजिलेंस रहे, और सेवानिवृत्त हो चुके पुलिस महानिदेशक प्रशांत कुमार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुडबुक में शुमार रहे.
ऐसे में करीब एक महीने से सुर्ख़ियों में चल रहा बलरामपुर जिले का छांगुर प्रकरण भले ही अब आमजन में धूमिल पड़ता जा रहा है, लेकिन सरकारी मशीनरी और उसके कामकाज पर सवाल सदैव उठता रहेगा. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विजन और उनकी मंशा को कैसे पलीता लगाया जा रहा है यह छांगुर प्रकरण से साबित हो रहा है. डीएम रिपोर्ट, इंटेलिजेंस रिपोर्ट, एसटीएफ़ की जांच में हो रहे खुलासे और इसके लिए कौन जिम्मेदार अब इसकी चर्चा आम हो रही है. और माना जा रहा है कि सीएम योगी को प्रकरण की हकीकत से अवगत कराने के बजाय गुमराह किया गया है.
सबसे बड़ा सवाल यह है कि सीएम योगी की मंशा और तमाम दिशा निर्देशों के विपरीत बलरामपुर जिले के तत्कालीन पुलिस कप्तान केशव कुमार को किसकी मेहरबानी से मिली जिले की कप्तानी? और 15 अगस्त को राज्य के उच्च पुलिस सम्मान से नवाजा गया? जबकि पुलिस के संरक्षण में छांगुर प्रकरण की जमीनी हकीकत शासन को भेजने वाले जिलाधिकारी को राजस्व परिषद् भेज दिया गया है. बड़ा सवाल यह भी कि ऐसे प्रकरण पर एक संवेदनशील जिलाधिकारी को राजस्व परिषद् भेजकर और एक संवेदनहीन व लापरवाह पुलिस अधिकारी को एक संवेदनशील जिले की अहम् तैनाती देकर कौन सा सन्देश देने का काम किया गया है. क्या योगिराज में यही है अफसरों की तैनाती की मेरिट? ऐसी लापरवाही क्या शासन हित में व्यावहारिक है?
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