
#प्रकरण में योगी सरकार के मंसूबों पर पानी फेरने का जिम्मेदार कौन? क्या सीएम से जमीनी हकीकत से कराया गया था अवगत ? आखिर किसने दबाई जिलाधिकारी की संवेदनशील रिपोर्ट? छांगुर के मामले से सवालों में आया पुलिस व शासन, एटीएस जमीनी दोषियों पर कार्यवाई की प्रक्रिया में, क्या शासन के जिम्मेदारों की भी होगी खोज और कार्यवाई? आखिर किसका था दबाव और इसके पीछे कौन?
#मुख्यमंत्री की मंशा और तमाम दिशा निर्देशों व मंशा के विपरीत तत्कालीन कप्तान को फिर कैसे मिला मलाईदार पद? और जिलाधिकारी को भेजा गया राजस्व परिषद्? बड़ा सवाल यह भी कि ऐसे प्रकरण पर संवेदनशील जिलाधिकारी को राजस्व परिषद्, जबकि संवेदनहीन व लापरवाह पुलिस अधिकारी को मिली अहम् तैनाती, क्या योगिराज में यही है अफसरों की तैनाती की मेरिट? ऐसी लापरवाही क्या शासन हित में व्यावहारिक?
अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : उत्तर प्रदेश के बलरामपुर के छांगुर और उसके अवैध धर्मांतरण प्रकरण के सामने आने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित उनकी सरकारी मशीनरी तथा भाजपा इसको गुडवर्क बताने में जुटी गयी और यूपी एटीएस टीम की जांच में हो रहे नित नए खुलासों से व्यवस्था की हकीकत सामने आ रही है. लेकिन सरकारी मशीनरी की जमीनी हकीकत और मुख्यमंत्री की नाक के नीचे बैठे इसके जिम्मेदारों की खबर कोई नहीं ले रहा है. प्रकरण के खुलासे के बाद ऐसे संवेदनशील मुद्दे और जिलाधिकारी की रिपोर्ट पर 01 वर्ष से ज्यादा तक बनी रही चुप्पी का जिम्मेदार कौन? व्यवस्था और शासन से जुड़े इस सवाल पर जिम्मेदार एक शब्द नहीं बोल रहे हैं. छांगुर और अवैध धर्मांतरण के इस प्रकरण में हो रही जांच और उसके खुलासे तथा इस अवैध धंधे के बढ़े साम्राज्य से यह भी साफ़ है कि यह सब एक दिन में नहीं हुआ और जब यह सामने आया तो कार्यवाई होने में एक वर्ष से ज्यादा का समय लगा. ऐसे गंभीर प्रकरण पर इतनी लम्बी चुप्पी एक अहम् बिंदु है, और इसमें किसी शीर्ष की संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता है.
छांगुर का अवैध धर्मांतरण प्रकरण जितना गंभीर है उससे ज्यादा गंभीर व्यवस्था पर उठ रहा उक्त सवाल है. जारी जांच में यह एक छांगुर की हकीकत सामने है, ऐसे और भी छंगुर के व्यवस्था के जिम्मेदारों की छाया में पलने से इनकार नहीं किया जा सकता. यह गंभीर इस सवाल की गंभीरता तब और बढ़ जाती है जब मुख्यमंत्री की मंशा और तमाम दिशा निर्देशों व मंशा के विपरीत तत्कालीन कप्तान को फिर एक महत्वपूर्ण जिले की जिम्मेदारी दे दी जाती है, और जिलाधिकारी को राजस्व परिषद् भेज दिया जाता है. ऐसे मामले में संवेदनशीलता व जिम्मेदारी दिखाने वाला जिलाधिकारी साईड पोस्टिंग पर भेज दिया जाता है जबकि मामले को लेकर संवेदनहीन व लापरवाह पुलिस अधिकारी को अहम् तैनाती दी जाती है. क्या योगिराज में यही है अफसरों की तैनाती की मेरिट? ऐसी लापरवाही क्या शासन हित में व्यावहारिक है?
छांगुर प्रकरण की जैसे-जैसे एटीएस की जांच आगे बढ़ रही है पुलिस के साथ ही शासन स्तर पर भी लापारवाही और कमियाँ सामने आ रही हैं. रिपोर्ट के बाद तत्कालीन एसपी को वहां हटाकर कुछ दिन साईडलाइन करने के बाद अयोध्या मंडल के एक महत्वपूर्ण जिले की जिम्मेदारी सौंप दी गयी गयी. जबकि ऐसे संवेदनशील मामले की तह तक जाने वाले जिलाधिकारी कुछ दिन प्रतीक्षारत रहने के बाद राजस्व परिषद् भेज दिए गए. इस तरह अवैध धर्मांतरण के इस पूरे प्रकरण में जहाँ सरकारी मशीनरी की जमीनी हकीकत सामने आयी और कोई प्रभावशाली कार्यवाई नहीं की गयी, तो शासन भी इससे अछूता नहीं रहा. सूत्रों के मुताबिक इस प्रकरण में अब सेवानिवृत्त हो चुके एक बड़े पुलिस अधिकारी की भी प्रमुख भूमिका रही है. जिनकी कोशिशों और प्रभाव से जिलाधिकारी हटे और साईड पोस्टिंग पाए साथ ही कप्तान को जिम्मेदार जिला मिला. और उक्त अधिकारी शासन व सरकार में बैठे जिम्मेदारों को अपनी थ्योरी समझाने में कामयाब रहे थे, जबकि जांच की हकीकत उनकी थ्योरी के इतर है.
खबरों के मुताबिक अवैध धर्मांतरण और पुलिस की मिलीभगत के संबंध में तत्कालीन जिलाधिकारी रहे अरविन्द सिंह की रिपोर्ट के तथ्यों से इस प्रकरण में सिस्टम के गठजोड़ की पोल को खोला और सरकार के दावों की जमीनी हकीकत, शासन की लापारवाही और पुलिस की मिलीभगत को उजागर किया. एटीएस ने पूरे नेक्सस का खुलासा करते हुए छांगुर के संरक्षक 5 अफसर व कर्मचारियों के नाम उजागर करते हुए उनपर कार्यवाई करने की तैयारी में है. 12 जून 2023 से 28 जून 2024 तक बलरामपुर जिले के जिलाधिकारी रहे अरविन्द सिंह ने पुलिस और धर्मांतरण कराने वालों के बीच के गठजोड़ की हकीकत को परखा और कारवाई की संस्तुति करते हुए एक रिपोर्ट बनाकर बनाकर भेजा. जिलाधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में उत्तरौला, गैह्रास बुजुर्ग और सादुल्लानगर थानों की भूमिका पर आपत्ति जताते हुए स्पष्ट किया था कि धर्मांतरण या संदिग्ध गतिविधियों ऐसे मामलों को इनके द्वारा गंभीरता से नहीं लिया गया और न ही कोई प्रभावशाली कदम इसके लिए उठाया गया. फ़िलहाल एटीएस की जांच में बलरामपुर में तैनात रहे 5 अधिकारियों और कर्मचारियों की संदिग्ध भूमिका सामने है. इनमें दो दूसरी जगह जा चुके हैं, जबकि दो अभी सेवा में हैं. एक कर्मचारी को एटीएस गिरफ्तार कर चुकी है. एसटीफ़ अब इन दोषी अधिकारियों से पूछताछ कर बयान दर्ज करेगी फिर रिपोर्ट को गृह विभाग को भेजेगी. जानकारों के अनुसार दोष सिद्ध होने पर कार्यरत दो अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की संस्तुति की जा सकती है.
