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यूपी विद्युत् उत्पादन निगम में शीर्ष स्तर पर इंजीनियरों का टोटा…..पार्ट 2 

#इंजीनियर संघ ने निगम द्वारा नए पदों के सृजन के सम्बन्ध में शासन को भेजा गये प्रस्ताव को बताया  आधारहीन और औचित्य्हीन.

#पदों को कम या सरप्लस दिखाने के लिए उत्पादन निगम के चेयरमैन के निर्देश का दिया गया हवाला.

#निगमो में बड़े पैमाने के मसलों के निर्णय उसके निदेशक मंडल में तय किए जाते हैं. खासकर बड़े पावर प्लांट को बंद करने जैसे महत्वपूर्ण निर्णय तो निदेशक मंडल में ही होने चाहिए.

#ऐसे में यह फैसला निदेशक मंडल से बाहर कुछ अधिकारियों द्वारा ले लिया जाना, वह भी चेयरमैन के आदेश का हवाला देते हुए, खुद में कई सवाल खड़े करता है.

#निदेशकों ने “मिनट्स ऑफ मीटिंग” बना, कई पावर प्लांटों को बंद करने का निर्णय दिखाया गया.

#”मिनट्स ऑफ मीटिंग” में जिन प्लांट्स को बंद करना दिखाया गया वे ना तो बंद हुए और ना बंद होने थे.

#यह निगम के दो निदेशकों के बीच आपसी खींचतान और निजी स्वार्थ के चलते जानबूझकर लिया गया निर्णय था.

#इस तरह पदों को कम दिखा कंसल्टेंटस के प्रवेश के लिए जमीन तैयार की गयी ताकि पैसे का खेल चलता रहे.

#परियोजना निर्माण की गति में रुकावट बने निदेशक निर्माण और निदेशक तकनीकी, पदों को सरप्लस किया घोषित.

#परिणाम निर्माण परियोजनाओं का कार्य अपने शेड्यूल से पिछड़ा,और “कंसल्टेंसी के ऊपर कंसल्टेंसी” लगाने का मिला मौका.

#यूपी विद्युत् उत्पादन निगम में शीर्ष स्तर पर इंजीनियरों का टोटा” नामक शीर्षक से खबर चलने पर प्रबंधन ने शुरू की बचने की कवायद “निगम आर्गनाईजेशन स्ट्रक्चर 2016” को किया गया शून्य.   

 अफसरनामा ब्यूरो 

 लखनऊ : 10 नवम्बर 2017 को अभियंता संघ ने “नए पदों के सृजन के सम्बन्ध में आधारहीन,औचित्य्हीन एवं वास्तविक आवश्यकता से अत्यअधिक कम पदों के सृजन का प्रस्ताव शासन को संप्रेषित करने के विरोध में” तथ्यों के साथ एक ज्ञापन अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक को सौंपा था. इस ज्ञापन में प्रस्तावित पदों की आवश्यकता को निदेशकों द्वारा बहुत कम दिखाए जाने को आधारहीन और औचित्यहीन बताया गया. इस पत्र की प्रति सभी को देने तथा उसका रिमाइंडर भी देने के बावजूद अभी तक निगम अपनी स्कीम पर अड़ा है और परियोजनाओं का नुकसान समझते हुए भी इसके लिए गंभीर नहीं है. सूत्रों की मानें तो यह निगम की लापरवाही नहीं बल्कि निदेशकों द्वारा ये तो स्वार्थ भाव से किया गया एक घोटाला है. ऊर्जा विभाग के उत्पादन निगम में शीर्ष पदों पर इंजीनियरों की कम होती संख्या कुछ इन्हीं निदेशकों की सोची समझी रणनीति का हिस्सा जान पड़ती है. “निगम आर्गनाईजेशन स्ट्रक्चर 2016” के मुताबिक़ जरूरी पदों को भरने के लिए निगम द्वारा की गयी उदासीनता का परिणाम है कि निगम के दोनों विंग, निर्माण और तकनीकी में स्वीकृत मुख्य अभियंता सहित अन्य स्तर के पदों पर अभियंता ही अभी तक उपलब्ध नहीं हो सके हैं.

अभियंता संघ का पत्र……

इतना ही नहीं, पदों को कम या सरप्लस  दिखाने के लिए उत्पादन निगम के चेयरमैन के निर्देश का हवाला देकर निदेशकों ने एक “मिनट्स ऑफ मीटिंग” बनाया जिसमे कई पावर प्लांटों को बंद करने का निर्णय दिखाया गया, ताकि पदों को कम दिखाया जा सके और कंसल्टेंटस को लाया जा सके. जबकि इस मिनट्स ऑफ मीटिंग में जो प्लांट बंद करना दिखाया गया वे ना तो बंद हुए और ना बंद होने थे, यह केवल निगम के दो निदेशकों के बीच आपसी खींचतान और निजी स्वार्थ के चलते जानबूझकर लिया गया निर्णय था. निदेशक निर्माण पदों को कम नहीं होने देना चाहते थे लेकिन निदेशक तकनीकी पदों को सरप्लस घोषित करना चाहते थे ताकि निर्माण की गतिविधियों पर रुकावट आ जाय. ऐसा हुआ भी जब इसके बाद सभी निर्माण परियोजनाओं का कार्य अपने शेड्यूल से पिछड़ गया. इसका लाभ लेकर कंसल्टेंसी के ऊपर कंसल्टेंसी लगाने का मौका मिल गया. इसमे जम कर पैसे का खेल किया गया जिसका खुलासा “अफसरनामा” जल्द ही अपने अगले अंक में करेगा.

“मिनट्स ऑफ मीटिंग”

इसी सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण बिंदु यह भी है कि निगमो में बड़े पैमाने के मसलों के निर्णय उसके निदेशक मंडल में तय किए जाते हैं. खासकर बड़े पावर प्लांट को बंद करने जैसे महत्वपूर्ण निर्णय तो निदेशक मंडल में ही होने चाहिए. लेकिन यह फैसला निदेशक मंडल से बाहर कुछ अधिकारियों द्वारा ले लिया गया और वह भी चेयरमैन के आदेश का हवाला देते हुए. इसमें सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि इस फैसले को निगम द्वारा सिर्फ पदों को सरप्लस घोषित करने के अलावा कहीं और प्रयोग में या लागू नहीं किया गया. जानकारों का मानना है कि ऐसे में यदि निगम एक लिस्टेड कंपनी होती तो इस तरह की मीटिंग करके भ्रम फैलाने के लिए सेबी द्वारा विधिक कार्यवाही शुरू हो जाती. इसी से जाहिर होता है कि यह “मिनट्स ऑफ मीटिंग” एकदम अवैध और किन्ही अन्यथा उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया गया था. ना कोई इसका निश्चय करने के बाद कोई और आदेश निर्गत हुआ.

विगत कुछ वर्षों से क्रमबद्ध तरीके से उत्पादन निगम लि0 द्वारा आवश्यक जन-शक्ति का सृजन करने के बजाय जन-शक्ति की कमी दिखा कर पावर हाउसों का काम कराने के लिए कंसल्टेंसी का सहारा लेती हैं ताकि कमीशन के खेल को बखूबी अंजाम दिया जा सके. कहने को तो ये कंसल्टेंसी सरकारी हैं लेकिन यहाँ चल रहा पैसे का खेल किसी से छुपा नहीं है. और शीर्ष स्तर पर बैठे निगम के जिम्मेदार अपने अफसरों को अकर्मण्य दर्शाते हुए विगत कुछ वर्षों से निगम के निजीकरण के पक्ष में काम कर रहे हैं. पिछली सरकार से चली आ रही निदेशकों की मनमानी और कुव्यवस्था को इस सरकार में भी बिना सोचे-समझे आगे बढाया जा रहा है.

शीर्ष स्तर पर अफसरों की कमी से जूझ रहे निगम को मानव संशाधन उपलब्ध कराने के बजाय कंसल्टेंसी पर ज्यादा भरोसा जताया जा रहा है. सरकार का यह फैसला तब और गंभीर हो जाता है जब वह एक तरफ कंसल्टेंसी से काम कराने में ज्यादा ही गंभीर रहती है जहां पर कमीशन का खेल साफ़ दिखता है. वहीँ दूसरी तरफ वर्तमान में मौजूद निगम के योग्य कर्मिओं की क्षमता का सही उपयोग नहीं हो पाता अर्थात इधर अपने कर्मी को सेलेरी भी उधर कंसल्टेंसी फीस भी. ऐसे में महत्वपूर्ण सवाल यह है कि पहले जब 500 मेगावाट की परियोजनाओं का निर्माण विभागीय इंजीनियर सिर्फ एक कंसल्टेंसी एनटीपीसी के साथ समय से और गुणवत्ता के साथ पूर्ण कराने में सक्षम रहे हैं तो कंसल्टेंसी पर निर्भर होने का क्या फायदा. इसके अलावा अलग-अलग दरों पर अलग-अलग कंसल्टेंसी से काम कराना कितना उचित है यह चिंतनीय विषय है.

जानकारों की मानें तो जब से निगम में सियासत की इंट्री हुई तब से कंसल्टेंसी से काम कराने की प्रवृत्ति बढ़ी और निगम के हितों को दरकिनार करते हुए पदोन्नति के द्वारा भरे जाने वाले शीर्ष पदों को रिक्त रखने का खेल जिम्मेदारों द्वारा खेला जाने लगा ताकि कंसल्टेंसी में बिचौलियों का खेल आसानी से चलाया जा सके जोकि पदोन्नति के बाद खाली बैठे अफसरों के आ जाने से बाधित होता. निगम के शीर्ष पदों को कैसे रिक्त रखा गया इसका ताजा उदाहरण निदेशक तकनीकी द्वारा वित्त विभाग से स्वीकृति हेतु भजे गये पत्र से  देखने को मिला जोकि अभी तक हुए इस पूरे खेल को समझने के लिए काफी है. शीर्ष पर बैठे उत्पादन निगम के जिम्मेदारों द्वारा द्वारा नई परियोजनाओं हेतु आवश्यक एग्ज्क्युटिव जन-शक्ति का प्रस्ताव आंशिक रूप से भेजा गया है. जिसके फुट नोट में ही वर्णित है कि पुरानी परियोजनाओं लखनऊ मुख्यालय एवं समूह ‘ग’ के पदो हेतु पृथक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाएगा. जोकि इस बात को समझने के लिए काफी है कि मात्र अपने कुछ चुनिंदा अधिकारियों को ही प्रोन्नत कराने और बाकी सीटों को रिक्त रखने का खेल रचा गया है. फिलहाल अभी यह वित्त विभाग में विचाराधीन है.

निदेशालय के सूत्रों की मानें तो इस खेल के पीछे उत्पादन निगम लि0 के निदेशकों के बीच की आपसी खींचतान रही है. परियोजनाओं में अधिकारियों की संख्या के रिव्यू का अधिकार निदेशक तकनीकी, निर्माण और कार्मिक को मिलते ही इनके द्वारा मनमाने तरीके से निगम और अधिकारियों के हितों को दरकिनार करते हुए सरप्लस बता रिपोर्ट भेजी गयी. इसके अलावा महत्वपूर्ण बात यह है कि पदो के सृजन व स्वीकृति का कार्य प्रगति परियोजना द्वारा देखा जा रहा है, जिन्हें मानव संसाधन की स्थितियों व वास्तविकताओं की कोई जानकारी व अनुभव नहीं है. प्रगति परियोजना जन-शक्ति के निदेशक कार्मिक के अधीन भी नहीं है. प्रगति परियोजना उत्पादन निगम लि0 की वेबसाइट के अनुसार निदेशक तकनीकी के अधीन कार्यरत हैं. ऐसे में विडम्बना है कि निदेशक तकनीकी द्वारा इन पदों की स्वीकृति में मनमाना किया जाना अत्यंत ही दुर्भाग्यपूर्ण है. इस तरह वर्ष 2016 से पदोन्नति न किए जाने से हर स्तर पर अधिकारियों/कर्मचारियों के हितों की अनदेखी की गयी है और बिचौलियों को बढ़ावा देने वाले कदम को सही ठहराया गया है.

बताते चलें कि फिलहाल ऊर्जा विभाग के अधीन उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम की कुल बिजली उत्पादन क्षमता लगभग 4000 मे0वा0 है और स्थापित क्षमता 5474 मे0वा0 है. साथ ही 2015-16 से कई विस्तार की निर्माण परियोजनाएं आ गई हैं. जिनमें हरदुआगंज 660 मे0वा0, जवाहरपुर 1320 मे0वा0, ओबरा 1320 मे0वा0,पनकी 660 मे0वा0, ओबरा ‘डी’ 800 मे0वा0 (विकास प्रक्रिया में), अनपरा ‘ई’ 800 मे0वा0 (विकास प्रक्रिया में) और कोल ब्लाक  दुमका, झारखण्ड में. इस तरह कुल 5560 मेगावाट क्षमता की परियोजना निर्माणाधीन है. यानि उत्पादन निगम अपनी वर्तमान SIZE को पिछले दो वर्षों में दोगुना करने का काम कर रहा है. परन्तु यदि निगम में केवल GM और DGM पदो को देखा जाए तो 14 सितम्बर 2016 के निगम के निर्णय में कुल 13 GM तथा 69 DGM कुल 82 उच्च अभियन्ता थे. (निदेशक मंडल (BOD) संख्या 169 आर्गनाइजेशन चार्ट) जिनकी संख्या नई व आने वाली परियोजनाओं में बढनी चाहिए थी.

परियोजनाओं में पदों की संख्या पर नजर डालें तो ओबरा मे कुल 4 मुख्य अभियंता के पद होने चाहिए, जबकि वहां मात्र 2 की तैनाती की गई है. ओबरा निर्माण के लिए 3 पदों के सापेक्ष केवल 1 ही मुख्य अभियंता की पोस्टिंग है. इसी तरह अनपरा के लिए 5 मुख्य अभियंता के पद स्वीकृत हैं, परंतु समय से व्यवस्था न होने के कारण केवल 2 अधिकारी से काम चलाया जा रहा है. पारीछा के लिए कुल 4 मुख्य अभियंता होने चाहिए लेकिन वहां केवल 1 की ही तैनाती है. ऐसे ही लखनऊ निदेशालय मे कुल 11 मुख्य अभियंता के स्थान पर केवल 6 पद ही भरे हुए हैं, शेष खाली हैं. जवाहरपुर निर्माण के लिए 3 चीफ़ होने चाहिए लेकिन केवल केवल 1 ही की ही तैनाती हो पायी है जबकि निर्माण का कार्यक्रम आधे से ज्यादा बीत चुका है. निर्माण के लिए इंजीनियर की व्यवस्था देखें तो उत्पादन निगम मे 4 बड़ी परियोजनाओं का निर्माण किया जा रहा है जिसमे लगभग 30000 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है. इनमे गंभीरता का यह आलम है कि 4 में केवल 2 मे ही सिविल के चीफ़ इंजीनियर है जबकि स्वीकृत संख्या 5 की है. इसी तरह टेक्निकल इंजीनियर के 8 चीफ़ की स्वीकृति के जगह पर केवल 4 चीफ़ ही काम पर लगाए गए हैं. इसके विपरीत 2017 में जो प्रस्ताव शासन के पास भेजा गया है उसमें मात्र 7 GM व  29 DGM कुल 36 उच्च अभियन्ताओं की स्वीकृति ही केवल मांगी गई है जोकि निदेशक मंडल द्वारा तय की गयी उच्च अभियंता संख्या 82 के सापेक्ष काफी कम है. इतनी नई परियोजनाएं आने के बावजूद भी जबकि स्वाभाविकतया अधिकारी पदों की आवश्यकता ज्यादा होती है. शासन को भेजे गए पनकी, ओबरा, जवाहरपुर एवं हरदुआगंज की नई परियोजनाओं हेतु स्वीकृति आवश्यक एक्जीक्यूटिव जनशक्ति 53 के स्वीकृति के बदले उत्पादन निगम लि0 द्वारा 6 GM और 11 DGM  पदों को सरप्लस बता दिया गया है. इसी तरह यदि निगम में निर्माण इकाई के सभी अधिकारी पदों को देखा जाए तो 488 में से 261 पदों यानी आधे से अधिक 53 प्रतिशत पदों को सरप्लस बता दिया गया है. ऐसे समय में जबकि उत्पादन निगम अपनी क्षमता दोगुनी और निवेश करीब चार गुना बढ़ा रहा है.

“अफसरनामा” की पड़ताल में आया कि उत्पादन क्षमता में वृद्धि और कई विस्तार की नई परियोजनाएं आने के बावजूद शीर्ष स्तर पर अभियंताओं की काफी कमी बनी हुई है जोकि एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा नजर आ रही है. इस तरह आफिसर्स की संख्या कम होने से परियोजना के कामों को “कंसल्टेंट के उपर कंसल्टेंट” लगाकर कराया जा रहा है जिसमें भी भ्रष्टाचार की पूर्ण संभावना है. आश्चर्य की बात यह है कि निगम के कर्णधारों का यह प्रयोग भी बहुत सकारात्मक परिणाम नहीं दे रहा बल्कि वर्तमान की निर्माणाधीन परियोजनाएं अपने तय समय से पीछे चल रही हैं, जिसका असर उत्पादन से लेकर उसके निर्माण के ब्यय पर पड़ रहा है. क्षमता दोगुनी करते ही अधिकारी पदो की आवश्यकता आधी हो जाना एक आश्चर्य का विषय है. इतनी बड़ी विसंगती शासन को भेजते समय किसी निदेशक अथवा उत्पादन निगम के अध्यक्ष, प्रबन्धक निदेशक आदि किसी की नजर नहीं पड़ी हो, ऐसा नहीं हो सकता है.

इसके पहले “अफसरनामा” द्वारा “उत्पादन निगम में शीर्ष स्तर पर इंजीनियरों का टोटा……. पार्ट1” लिखा गया था, जिसके बाद हरकत में आये प्रबंधन ने “निगम आर्गनाईजेशन स्ट्रक्चर 2016” को एक आदेश जारी कर शून्य कर दिया था.     

 यूपी विद्युत् उत्पादन निगम में शीर्ष स्तर पर इंजीनियरों का टोटा पार्ट 1 

यूपी विद्युत् उत्पादन निगम में शीर्ष स्तर पर इंजीनियरों का टोटा

“निगम आर्गनाईजेशन स्ट्रक्चर 2016” को किया गया शून्य. पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें…….

“अफसरनामा” की खबर से दबाव में आये उत्पादन निगम के निदेशक मंडल ने जारी किया नया आदेश

“अफसरनामा” की खबर से दबाव में आये उत्पादन निगम के निदेशक मंडल ने जारी किया नया आदेश

“अफसरनामा” अपने अगले अंक में “कंसल्टेंट के उपर कंसल्टेंट” लगाकर किये जा रहे घोटाले का खुलासा करेगा…… 

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