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यूपी में जिले की कुर्सी पर मेरिट नहीं जुगाड़ काबिज, अनुभव को नजरअंदाज कर सीधी भर्ती नए आईएएस को मिली तरजीह

#वर्तमान में 75 जिलों में कुल 22 प्रमोटी जिलाधिकारी और 18 मंडलों में कुल 03 प्रमोटी अफसर मंडलायुक्त बनाये गए हैं.
#अक्टूबर 2018 में डीएम पद पर प्रमोटी आईएएस अफसरों की संख्या 75 जिलों में 33 रही और 18 मंडलों में 9 प्रमोटी अफसर रहे कमिश्नर.

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ : योगी सरकार बनने के बाद भी प्रांतीय सिविल सेवा के अफसरों के अच्छे दिन अखिलेश सरकार की ही तरह जारी रही. वर्षों से सरकारों की उपेक्षा के शिकार इस संवर्ग को पिछली सरकार की ही तरह इस सरकार में भी कुछ दिनों तक प्रमोशन से लेकर तैनाती तक सम्मान मिला. लेकिन वर्तमान की योगी सरकार में यह सिलसिला कुछ ही दिनों तक रहा और धीरे धीरे इस संवर्ग के साथ सौतेला व्यवहार किया जाने लगा. सरकार ने साईडलाइन किया और बड़े भाईयों द्वारा सौतेला व्यवहार हुआ. फिलहाल कभी सरकार की आँख के तारे रहे पीसीएस और प्रोन्नत आईएएस अफसर आज हासिये पर जा चुके हैं. आखिर इसका क्या कारण है? अब यह सवाल सत्ता के गलियारों में और अफसरशाही के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है. फिलहाल सूबे के अफसरों की तैनाती में मेरिट और अवसर की समानता के सिद्धांत पर एक प्रश्नचिन्ह जरूर है, चाहे वह किसी भी संवर्ग से क्यों न हो?

पहले जहां मुख्यमंत्री योगी के भरोसे का आलम रहा था कि इस संवर्ग से आईएएस बने अफसरों की पूरे प्रदेश के करीब आधे जिलों में डीएम के पद पर तैनाती की गयी और प्रदेश के आधे मंडल के मंडलायुक्त भी इसी पीसीएस से प्रमोटी अफसर ही रहे. लेकिन आज की स्थिति एकदम अलग है. वर्तमान में 2006 बैच से लेकर 2013 तक के प्रदेश में कुल 109 पीसीएस प्रोन्नत अधिकारी हैं और सीधी भर्ती के अफसरों की संख्या 153 है. वर्तमान समय में इस संवर्ग से आईएएस बने अफसरों की तैनाती का आलम यह है कि पीसीएस से प्रमोटी आईएएस अफसर 22 जिलों में जिलाधिकारी बने हैं तो बाकी के 50 जिलों में सीधी भर्ती सेवा के अफसर सरकार ने तैनात किये हैं. इसी तरह प्रदेश के कुल 18 मंडलों पर नजर डालें तो मंडलायुक्त के पद पर केवल 3 प्रोन्नत आईएएस अफसर तैनात किये गये हैं और बाकी 15 में सीधी भर्ती के आईएएस सरकार द्वारा तैनात किये गये हैं.

अफसरों की नियुक्ति और उनके प्रमोशन व जिले की कमान देने में मुख्यमंत्री योगी के मेरिट सिस्टम की धज्जियां उडाई जा रही हैं. मुख्यमंत्री योगी के स्वच्छ प्रशासन के दावों के इतर जारी यह खेल तमाम सवाल खड़े कर रहा है और इसपर अफसरशाही को करीब से देखने वालों का कहना है कि वर्तमान की तैनातीयों में मेरिट सिस्टम नहीं बल्कि जुगाड़ सिस्टम ज्यादा प्रभावी दिख रहा है. फिलहाल जिन जिलों व मंडलों में प्रोन्नत हुए आईएएस अफसरों को जिलाधिकारी व कमिश्नर के पद पर तैनाती मिली है उनमें क्रमशः गाजियाबाद, सहारनपुर, अमरोहा, बिजनौर, संभल, मुरादाबाद, कानपुर देहात, कन्नौज, उन्नाव, सीतापुर, लखीमपुर, बांदा, हमीरपुर, अम्बेडकरनगर, गाजीपुर, बलिया, भदोही, गोंडा, एटा, कासगंज, फर्रुखाबाद व अलीगढ़ जिलों के जिलाधिकारी प्रोन्नत सेवा के हैं और मंडलों में मुरादाबाद, चित्रकूटधाम और मिर्जापुर में कमिश्नर पद पर प्रोन्नत सेवा के अफसर सरकार द्वारा तैनात किये गये हैं.

बताते चलें कि सरकार बनने के बाद से ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा शासन की रीढ़ कहे जाने वाले पीसीएस संवर्ग को तरजीह नहीं दिया गया. पीसीएस एसोसिएशन के तमाम प्रयासों के बाद भी बैठक के लिए मुख्यमंत्री का समय नहीं मिल सका. कारण जो भी रहा हो परन्तु तैनाती में अफसर की समानता के सिद्धांत को लेकर अफसरशाही के बीच चर्चाएँ गर्म हैं. सूत्रों के मुताबिक़ तैनातियों को लेकर पंचम तल पर बैठे एक सीधी भर्ती सेवा के अफसर का कहना है कि जब प्रमोशन में इस संवर्ग का कोटा 33% निर्धारित है तो नियुक्ति में भी इनका प्रतिनिधित्व 33% ही होना चाहिए. ऐसे में जानकार सवाल यह भी उठा रहे हैं कि भारत सरकार के गजट के आधार पर ही कैडर की तैनाती की जानी चाहिए. फिर आज नान कैडर पदों पर इनकी तैनाती क्यों है? दूसरा सचिव पद का स्केल 10000/- को पाने के बाद फिर इनको वहां पर प्रमोशन क्यों नहीं दिया जाता? जबकि पीसीएस संवर्ग के ही सेवानिवृत्त हो चुके चर्चित आईएएस अफसर एसपी सिंह को इसी के आधार पर कोर्ट द्वारा भी सही माना गया था और वे डिमोट होने से बच गए थे.

योगी की मेरिट के आधार पर तैनाती का फार्मूला भी हुआ दरकिनार

नजीर के तौर पर यदि देखा जाय तो मेरिट को दरकिनार कर पहली तैनाती पाने में कामयाब रहे 2013 बैच की दिव्या मित्तल को जिलाधिकारी संत कबीर नगर, अविनाश कुमार को जिलाधिकारी हरदोई और इसी बैच की अपूर्वा दूबे को जिलाधिकारी फतेहपुर बनाया गया है. जबकि बताया जा रहा है कि इन सबकी तैनाती में कोई न कोई समीकरण है कहीं सजातीय होने का तो कहीं किसी का सम्बन्धी होने का. वहीँ जुगाड़ के बल पर ही विशाल भारद्वाज 2012 बैच आईएएस अफसर जोकि पीसीएस संवर्ग के ही हैं लेकिन कभी फील्ड में नहीं रहे. इनका सिधौली में एसडीएम के तौर पर 2 महीने का ही अनुभव रहा जहां इनके उपर पब्लिक द्वारा पत्थरबाजी भी हुई. बाकी पूरी नौकरी लखनऊ में बिताया. इनके अलावा उदाहरण के तौर पर एक नाम गोंडा के जिलाधिकारी बनाये गये मार्कंडेय शाही का है.

जानकार बताते हैं कि मार्कंडेय शाही संतकबीर नगर भ्रष्टाचार के आरोप में हटे थे. यह लगातार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे रहे. इनके भ्रष्टाचार का मुद्दा प्रतापगढ़ से सत्ताधारी दल के सांसद संगमलाल गुप्ता संसद में भी उठा चुके हैं. सूत्रों के मुताबिक़ प्रतापगढ़ में जिलाधिकारी रहने के दौरान पुलिस अभिरक्षा में प्राण बचाकर भागना पड़ा था. वैभव श्रीवास्तव जिलाधिकारी रायबरेली के कारनामें इसी कोरोना काल में काफी चर्चित रहा. कोरोना काल में इनके द्वारा सीएमओ से अभद्रता किया गया, सीएमओ लामबंद हुए तो उन्हीं को हटा दिया गया और वैभव जिलाधिकारी के तौर पर अभी भी तक वहीँ तैनात हैं.

ऐसे में सवाल उठाये जा रहे हैं कि योगी सरकार में कहाँ गया अवसर की समानता का सिद्धांत, लिमिटेड सीट और दावेदारी ज्यादा. जब सीटें सीमित हैं और अफसर ज्यादा तो मेरिट के आधार पर चयन की जरूरत और बढ़ जाती है. लेकिन स्वच्छ प्रशासन की दुहाई देने वाली इस सरकार में भी सारे कायदे क़ानून धता बताये जा रहे हैं. बताते चलें कि फिलहाल 2011 और 2012 बैच के करीब आधे अफसर तैनाती के इन्तजार में हैं जबकि 2013 बैच के अफसरों को जिले की कमान दे दी गयी है. तैनाती के इन्तजार में 2011 बैच में करीब 20 से 25 अफसर और 2012 बैच के करीब 30 से 35 अफसर अपनी बारी की बाट जोह रहे हैं. फिलहाल तैनातियों को देखते हुए यह माना जा रहा है कि सरकार की नजर में ये अफसर दागदार हैं और इन अफसरों की काबिलियत पर कहीं कहीं सवाल जरूर है या फिर इनको नजरअंदाज किया जा रहा है. लोगों का कहना है कि सारे के सारे अफसर दागदार तो नहीं हो सकते लेकिन इनकी मेरिट देखना और उनको तैनाती देना सरकार का काम है.

उत्तर प्रदेश में पीसीएस से आईएएस में प्रोन्नति की सुस्त रफ़्तार के चलते पहले लम्बे समय तक सीधी भर्ती के आईएएस अफसरों का जिलों और मंडलों की तैनाती में एकाधिकार देखा जाता रहा है. एक वक्त तो 1976 बैच के सिर्फ एक अफसर चरणजीत सिंह बक्शी को आईएएस में प्रोन्नति के साथ डीएम के पद पर तैनाती मिली थी, शेष बैच और आगे के बैच के अफसरों को वर्षों तक तरक्की का इन्तजार करना पडा था. लेकिन आज परिस्थितियाँ एकदम अलग हैं प्रोन्नत सेवा के अफसर भी उपलब्ध हैं लेकिन अवसर में समानता के सिद्धांत के आधार पर अपनी बारी के इन्तजार में हैं.

योगी सरकार की गुडबुक में प्रमोटी आईएएस अफसर

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