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पुलिस के कार्यपालक मजिस्ट्रेट का डिविजनल मजिस्ट्रेट (SDM)को नोटिस, दिया स्वयं उपस्थित होने का आदेश, पीसीएस संवर्ग में खलबली

#दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC)के तहत कानून व्यवस्था के लिए पुलिस आयुक्त प्रणाली के तहत प्राप्त शक्तियों के इतर जारी हुआ नोटिस, पीसीएस अफसरों में चर्चा.    

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा बेहतर पुलिसिंग और सुदृढ़ कानून व्यवस्था स्थापित करने के लिए पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू किया गया. लेकिन पुलिस कमिश्नर प्रणाली और जिले की मजिस्ट्रेट व्यवस्था के बीच तालमेल की कमी देखने व सुनने को मिलती रही है. इसमें मैं बड़ा या तू बड़ा जैसी कहावत से जुड़ी खबरें अंदरखाने जिलों से आती रही हैं. योगी सरकार द्वारा पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम लागू करने के समय से चली आ रही “पुलिस कमिश्नरेट बनाम मजिस्ट्रेट” यानी कौन किसके ऊपर की इसी चर्चा के साथ ही पुलिस आयुक्त प्रणाली में दिए गये नियमों की भी चर्चा की जा रही है.

ताजा मामला राजधानी लखनऊ के पुलिस कमिश्नर सिस्टम के कार्यकारी मजिस्ट्रेट की हैसियत से उप जिलाधिकारी को जारी एक पत्र ने अफसरशाही के भीतर जहाँ चर्चा को गर्म किया है वहीँ दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत शांति व्यवस्था कायम रखने के लिए पुलिस को दिए गए न्यायिक अधिकार के नियमों की व्याख्या भी की जा रही है. वायरल पत्र में न्यायालय पुलिस उपायुक्त अथवा कार्यपालक मजिस्ट्रेट पुलिस कमिश्नरेट लखनऊ द्वारा लखनऊ के ही सदर में तैनात उपजिलाधिकारी को एक कारण बताओं नोटिस जारी किया गया है साथ ही उस नोटिस में उन्हें चेतावनी भी दी गई है. पुलिस कमिश्नरेट द्वारा उपजिलाधिकारी सदर को निर्देशित कारण बताओ नोटिस के बाद से पीसीएस अफसरों में इस बात की चर्चा है कि किस अधिकार के तहत न्यायालय पुलिस आयुक्त द्वारा पुलिस महकमे से बाहर जाकर उपजिलाधिकारी को इस तरह निर्देशित करते हुए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है. पुलिस कमिश्नरेट द्वारा शांति व्यवस्था कायम करने हेतु दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC)के तहत प्रदत्त शक्तियों की गलत व्याख्या तो नहीं की जा रही है.   

कानून व्यवस्था को मजबूत करने और त्वरित निर्णय लेने के मकसद से लागू पुलिस कमिश्नर सिस्टम में शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC)की धाराओं में निर्णय लेने का अधिकार दिया गया. जोकि इसके पहले यह सब भी कार्यकारी मजिस्ट्रेट से पुलिस को लेना पड़ता था. पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम में शांति व्यवस्था कायम रखने के लिए CrPC की यह व्यवस्था पुलिस को केवल अपने विभाग तक ही सीमित रखता है न कि किसी अन्य विभाग के अफसर को निर्देशित करने का हक़ देता है. इस हिसाब से कमिश्नरेट पुलिस के अफसर द्वारा उपजिलाधिकारी सदर को नोटिस जारी करना नियम विरुद्ध है. इसके अलावा दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC)की धारा 148  स्थानीय जांच (1) के अनुसार “जब कभी धारा 145 या धारा 146 या धारा 147 के प्रयोजनों के लिए स्थानीय जांच आवश्यक हो तब कोई जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड मजिस्ट्रेट अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट को जांच करने के लिए प्रतिनियुक्त कर सकता है.” इस लिहाज से भी पुलिस कमिश्नर सिस्टम में शांति व्यवस्था के लिए कार्यपालक न्यायिक मजिस्ट्रेट केवल अपने महकमें के भीतर ही आदेश/निर्देश दे सकता है. 

दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC)की धारा में संशोधन करके पुलिस कमिश्नर सिस्टम में पुलिस को जो कार्यकारी मजिस्ट्रेट की शक्तियां दी गयी हैं उसके अनुसार पुलिस द्वारा अपनी इन शक्तियों का प्रयोग अपने विभाग में ही करने का प्रावधान है न कि किसी अन्य में. इसके अनुसार कमिश्नरेट पुलिस का कार्यपालक मजिस्ट्रेट भी केवल अपने पुलिस विभाग के अधीनस्थ अफसर को निर्देशित कर सकता है. लेकिन लखनऊ के इस ताजा प्रकरण में लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट के कार्यपालक मजिस्ट्रेट ने अपनी शांति व्यवस्था की दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC)की शक्तियों के इतर नोटिस जारी करते हुए चेतावनी दिया है.   

जिलों में जिलाधिकारी की तो तहसीलों में उपजिलाधिकारियों की ही है. इन सबमें पुलिस कमिश्नर सिस्टम में आज भी पुलिस को केवल CrPC के तहत कार्यकारी मजिस्ट्रेट (शांति व्यवस्था) का ही अधिकार मिला है आज भी अगर हम जिले में जिलाधिकारी और तहसील में तैनात उपजिलाधिकारी की जिम्मेदारियों को देखें तो उनमें मूलरूप से कुल तीन शक्तियां निहित होती हैं. पहला- डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट अर्थात क़ानून व्यवस्था का जिम्मेदार, दूसरा-  कलेक्टर अर्थात रेवन्यू सम्बन्धी मामलों का जिम्मेदार और तीसरा- जिलाधिकारी यानी विकास सम्बन्धी सभी विभागों के कामों की जवाबदेही.  

लखनऊ कमिश्नरेट पुलिस के कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा पत्र में लिखा है कि “न्यायालय पुलिस उपायुक्त अथवा कार्यपालक मजिस्ट्रेट पूर्वी पुलिस कमिश्नरेट लखनऊ द्वारा उपजिलाधिकारी तहसील सदर, जनपद लखनऊ को जारी  23 नवम्बर 2023 को पुलिस उपायुक्त/ कार्यपालक मजिस्ट्रेट, पूर्वी पुलिस कमिश्नरेट लखनऊ द्वारा प्रेषित पत्र में वाद संख्या 12/2022 अंतर्गत धारा 145 द०प्र०सं० प्रथम पक्ष आमिर इस्लाही बनाम मुन्ना उर्फ़ रफीक के मामले में विवादित स्थल का स्थलीय निरिक्षण करके आख्या देने के सम्बन्ध में दिनांक 24.08.2023 को प्रथम बार उपजिलाधिकारी तहसील सदर लखनऊ से रिपोर्ट अपेक्षित की गयी थी.” याद दिलाने के बाद भी न्यायालय को वांछित आख्या उपलब्ध न हो पाने के बाद न्यायालय पुलिस आयुक्त द्वारा उपजिलाधिकारी को खरी खोटी सुनाते हुए लिखा गया कि “यह प्रतीत होता है कि आप द्वारा न्यायालय के निर्गत आदेशों एवं निर्देशों के अनुपालन में कोई रूचि नहीं ली गयी है. जो न्यायिक दृष्टिकोण से घोर निंदनीय है. पूर्व में इस प्रकरण से सम्बंधित पत्र का अनुस्मारक भेजने के बाद भी आपके स्तर से वांछित आख्या न आना एवं न्यायालय से निर्गत आदेशों-निर्देशों का समय से अनुपालन न करना आपकी लापरवाही एवं पदीय दायित्वों का निर्वहन न करना परिलक्षित होता है. अतः आपको निर्देशित किया जाता है कि उक्त प्रकरण में आख्या 14 दिवस के अन्दर विलम्ब का कारण स्पष्ट करें. अन्यथा की स्थिति में नियत तिथि 12.12.2023 को आप स्वयं मेरे न्यायालय में उपस्थित होना सुनिश्चित करें.”  

उक्त घटनाक्रम के मद्देनजर अफसरशाही पर नजर रखने वाले जानकारों का मानना है कि इस तरह की घटना व्यवस्था के लिए हितकर नहीं है. सक्षम स्तर पर गंभीरतापूर्वक यदि इसपर विचार करते हुए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है तो आने वाले समय में व्यवस्था में आपसी खींचतान की स्थिति होगी साथ ही विभाग की छवि के साथ ही सरकार की छवि भी धूमिल होगी. इसके अलावा सिस्टम में बैठे जिम्मेदार लोगों को अपनी शक्तियों और जिम्मेदारियों को गंभीरता पूर्वक समझते हुए कोई कदम उठाना चाहिए. क्योंकि इस प्रकरण में सम्बंधित अफसर की जिम्मेदारी और गंभीरता परिलक्षित हो रही है. इसके अलावा बदायूं में उपजिलाधिकारी पद पर तैनात रहे एक अफसर द्वारा महामहिम को नोटिस जारी करना भारी पडा था और वह उसकी जिम्मेदारी और समझदारी का परिचायक भी था. ऐसे में उच्च स्तर पर बैठे जिम्मेदारों से अपेक्षा है कि उक्त प्रकरण में नियमानुसार उचित निर्णय लेते हुए मामले को साफ़ करें ताकि आगे के लिए सबक रहे.          

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