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प्रापर्टी से पैखाने के धंधे में उतरा दलाल, प्रमुख सचिव मेहरबान

#मोदी के स्वच्छ भारत मिशन को पलीता लगा रहे योगी के अधिकारी

अफसरनामा ब्यूरो 

लखनऊ : नगर विकास विभाग में दो दर्जन से ज्यादा अधिकारियों और कर्मचारियों के बावजूद प्रधानमन्त्री मोदी के स्वच्छ भारत मिशन को पलीता लग रहा है और पैसे की लूट मची हुयी है.  प्रापर्टी की कमाई से वारे न्यारे करने वाले दलाल अब मोटी कमाई सूंघ पैखाने के धंधे में उतर पड़े हैं. मोदी जी के स्वच्छ भारत मिशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए योगी सरकार में मोटी तनख्वाह और भत्ते पर रखे गए सलाहकारों की योग्यता का कोई अता पता नहीं. ये सलाहकार इतने योग्य हैं कि नगर विकास के प्रमुख सचिव चाहे कहीं भी रहें अपने साथ सलाह के लिए रखते हैं. पूर्व में ग्राम्य विकास विभाग में इन काबिल सलाहकारों की सलाह लेते रहे हैं प्रमुख सचिव महोदय.

योगी सरकार के नगरों के विकास का कार्य देख रहे मंत्रालय में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. विभाग में योगी सरकार की तबादला नीति, प्रधानमन्त्री मोदी का स्वछता मिशन कार्यक्रम सब में झोल ही झोल है. विभाग के शीर्ष अधिकारी की मनमानी ऐसी हो गयी है कि यह एक सरकारी विभाग न होकर उनका जेबी संगठन बन चुका है. ग्राम विकास विभाग से लेकर नगर विकास तक गले लगे उनके दो लाडले और लाड्लियाँ हमेशा उनके साथ साए की तरह लगे हुए हैं. इन लाडलों का विभाग के संचालन में बड़ा महत्वपूर्ण हस्तक्षेप रहता है. विभाग के अन्य अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ इनका व्यवहार बिगड़े रईसजादों की औलादों की तरह होता है. उनके इस कारनामे में शीर्ष पर बैठे इन अधिकारी महोदय का पूरा शह रहता है. ऐसा आरएसएस विचारधारा से ताल्लुक रखने वाले वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री जिनके पास विधायी कार्य का भी काम है, की नाक के नीचे चल रहा है.

विधानसभा कैंटीन यानी स्वादेंद्रिय पर नियंत्रण खोने वाले योगी शासन के वरिष्ठ मंत्री खन्ना के नगर विकास में विकास को छोड़कर वह सब कुछ हो रहा है जो नहीं होना चाहिए. मिली जानकारी के अनुसार जिस कदर विभाग में मनमानी चल रही है वह हैरत करने वाली है. वैसे तो सवाल कई हैं लेकिन फिलहाल यह जानना जरूरी है कि आखिर किस मजबूरी के चलते एक पीसीएस स्केल वाले अनुबंध पर रखे गए अफसर ने इस्तीफा क्यों दिया? पिछले 10 साल से काम करने वाले इस कर्मचारी के साथ ऐसा क्या हुआ कि वह तमाम आरोप लगाते हुए नौकरी से त्याग पत्र दे दिया. जाहिर सी बात है आज जहां 10 हजार मासिक की नौकरी मिलना मुश्किल है, वहीँ  65 हजार प्रति माह की नौकरी कोई ऐसे ही नहीं छोड़ा होगा.

मिली जानकारी के अनुसार विभाग में टेक्नीकल एक्सपर्ट के तौर पर तैनात अनूप द्विवेदी आईईसी (IEC) जोकि 2009 से कार्यरत थे उनको नवम्बर 2017 में विभाग के प्रमुख सचिव और उनके दत्तक पुत्र विकास रस्तोगी और आदित्य विद्यासागर की मनमानियों के चलते इस्तीफा देना पडा. अनूप द्विवेदी ने अपने इस्तीफे में केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण योजना स्वच्छ भारत मिशन को लेकर कई आरोपों का जिक्र अपने त्याग पत्र में किया है. श्री द्विवेदी ने अपने ईमेल से भेजे त्याग पत्र में अपनी योग्यता और अनुभव का जिक्र करते हुए लिखा है कि मेरा कैरियर किसी आईएएस, पीसीएस अथवा किसी मंत्री के बल पर नहीं है यह मेरा अपना है ऐसे में आपका कई मर्तबा मेरे लिए अपमान जनक शब्दों का प्रयोग किया गया जिससे मैं दुखी होकर इस्तीफा दे रहा हूँ. आपने मेरे द्वारा किसी सवाल जोकि मिशन से जुडी समस्याओं व् अन्य विभागीय कार्यों से सम्बंधित होती थीं नजरंदाज किया गया और आपकी नजर में विकास और विद्यासागर ही सही थे और बाकी सब गलत और आपका उनपर अंधा विशवास है.

प्रमुख सचिव मनोज कुमार द्वारा स्वच्छ भारत मिशन के पैसे की खुली लूट

बताते चलें कि स्वच्छ भारत मिशन कार्यक्रम के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक हाई पावर कमेटी का गठन किया गया था. जिसमें स्वच्छ भारत मिशन के डायरेक्टर को इन सब कामों के लिए अधिकृत किया गया था लेकिन सारे नियमों को दरकिनार करते हुए यह सारे काम खुद प्रमुख सचिव मनोज कुमार कर रहे हैं.  नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव मनोज कुमार द्वारा इस कार्य को बिना मिशन डायरेक्टर की जानकारी में लाये “आरसीएस (Regional Center for Urbon infrastructure), काल सेंटर और कंसल्टेंट के माध्यम से  कराना शुरू कर दिया. प्रमुख सचिव ने इस कार्य के लिए 3 लाख रूपये प्रति महीने के हिसाब से कंसल्टेंट रख रखें हैं. प्रमुख सचिव के इस कारनामे पर विभाग से ही जुड़े एक अफसर ने आपत्ति लगाई कि जब हाईपावर कमेटी  ने इस काम के लिए मिशन डायरेक्टर को अधिकृत किया है तो RCS ने काम कैसे किया.

मनमाने बिल को पास करने से मना करने पर सम्बंधित अधिकारियों पर दबाव बनाने की कोशिश की गयी. लेकिन मिशन डायरेक्टर के छुट्टी पर चले जाने पर मनोज कुमार के पास चार्ज आया और वे सारे बिल को खुद ही वेरीफाई करके भुगतान करा दिया जबकि इस पर पहले फायनेंस कंट्रोलर द्वारा आपत्ति लगायी गयी थी. और तो और शौचालय बनवाने का जो टेंडर NGO को दिया गया था उसको अपने दफ्तर में मंगवा लिया जबकि टेंडर वित्तीय डाकूमेंट होता है. और इसको खोलने का अधिकार केवल मिशन डायरेक्टर के पास होता है और वह इसको कमेटी के सामने खोलता है.

प्रमुख सचिव मनोज कुमार द्वारा तमाम भुगतान के बिल को खुद ही वेरीफाई किया गया और दूसरे दिन रिलीज कर दिया जबकि बड़े एमाउंट का बिल वित्त और अन्य सम्बंधित अधिकारियों/कर्मचारियों से पास होने के बाद ही पैसा निकलता है लेकिन यहाँ ऐसा नहीं हुआ. पूर्व सचिव की कार पर एनजीओ के लोग चल रहे हैं. जबकि मिशन डायरेक्टर के पास कोई कार नहीं है. इसके अलावा यूपी टूर के नाम से किसी का भी टिकट करा दिया गया जिसके भुगतान के समय फायनेंस कंट्रोलर ने क्वैरी किया और भुगतान करने से रोक दिया. मिशन डायरेक्टर द्वारा बिना सत्यापन के बिल भुगतान पर क्वैरी लगाने के बाद पेमेंट रूक गया लेकिन जब मिशन डायरेक्टर छुट्टी पर गए तो खुद चार्ज लेकर सारे बिल पास किया.

इसके अलावा प्रमुख सचिव की लगभग हर नियुक्तियों में किसी न किसी तरह साथ रहने वाले विकास रस्तोगी और आदित्य विद्यासागर हैं, इनमें विकास पहले प्रापर्टी डीलर रहे रस्तोगी जमीन के धंधे में मंदी आने के बाद स्वच्छता मिशन से जुड़कर शौचालय के बिजनेस में लग गए हैं. प्रमुख सचिव की कृपा इनपर इतनी है कि नगर निगम से इनको 30 हजार रुपया महीना मिलता है. इसके अलावा साहब की मेहरबानी के चलते ही कईयों को इनोवा कार मुहैया कराई गयी है, जिसका स्वच्छता मिशन से कोई लेना देना नहीं है. प्रमुख सचिव के दूसरे लाडले आदित्य विद्यासागर को मनोज कुमार ने अपना रिटायरिंग रूम आराम करने के लिए दे रखा है. ये साहब खुद को “एडवाईजर टू पीएस अर्बन इंस्टीट्यूटशन ” कहते हैं और गाडी में भी लिखवा रखा है, इसके पहले यही साहब “एडवाईजर टू पीएस रुरल इंस्टीट्यूटशन”. प्रमुख सचिव की मेहरबानी से इन दोनों का जलवा इतना है कि विभाग के अन्य अधिकारी व कर्मचारी इनको सर, सर कहकर बुलाते हैं. यही नहीं आदित्य विद्यासागर कि शैक्षणिक योग्यता क्या है यह तो पता नहीं लेकिन वे 14 नगर निगमों में तैनात पीसीएस सेवा के अपर नगर आयुक्तों को प्रशिक्षण देते हैं. प्रशिक्षण लेने का यह आदेश खुद प्रमुख सचिव मनोज कुमार बैठक के बाद निर्देश देते हैं कि विद्यासागर जी आप लोगों को अलग से 15 मिनट की ट्रेनिंग देंगे. और तो और ये सलाहकार महोदय संदेशों के आदान-प्रदान हेतु बनाये गए व्हाट्सएप ग्रुप पर बकायदा आदेश भी जारी करते हैं.

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