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अथ शशिप्रकाश गोयल कथा ! बाल न बांका कर सके, चाहे जग बैरी होय

#राज्यपाल के खत को महीने से कूड़े में डाले थे मामला उछलते ही 24 घंटे में निस्तारित.

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ : कहावत है जाको राखे सांइया मार सके न कोय, बाल न बांका कर सके चाहे जग बैरी होय और सांईयां अगर संगठन का ओहदेदार हो तो बैरी को मानसिक विक्षिप्त बनाया जा सकता है उससे नाक रगड़वाई जा सकती है वो भी महज कुछ घंटों में. इसी साईंया के बलबूते सूबे के संवैधानिक मुखिया के निर्देशपत्र को महीने भर से ज्यादा समय के लिए कूड़े में फेका जा सकता है.

गुरुवार 7 जून को अफसरनामा ने सबसे पहले खुलासा करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रमुख सचिव शशिप्रकाश गोयल पर 25 लाख रुपये घूस मांगने संबंधी एक हरदोई के व्यापारी की शिकायत को राज्यपाल द्वारा कारवाई के लिए सरकार के भेजे जाने की बात उजागर की थी. मामले के तूल पकड़ते ही राज्यपाल अथवा मुख्यमंत्री कार्यालय ने नहीं बल्कि भाजपा के कार्यालय प्रभारी ने इस मामले में शिकायतकर्त्ता के खिलाफ पुलिस में तहरीर दे दी. राजधानी पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए शिकायतकर्त्ता को घर से उठा लिया और महज आठ घंटे की पूंछताछ में उसे मानसिक विक्षिप्त बना दिया व लिखित माफीनामा लेकर मामले को रफा दफा कर दिया.

इतना ही नही मुख्यमंत्री के निर्देश पर मुख्यसचिव ने मामले की 24 घंटे की भीतर जांच कर ली और शिकायतकर्त्ता की पेट्रोल पंप की स्थापना के लिए सड़क चौड़ी करने हेतु भूमि प्रयोग बदलने व सरकारी भूमि देने के प्रस्ताव को गैर वाजिब बताते हुए पूरे प्रकरण को निस्तारित कर दिया गया. मिनिमम गवर्मेंट मैक्सीमम गवर्नेंस, कानून का राज, शुचिता जैसे नारों से आयी सरकार ने पहली बार गवर्नेंस दिखाया और हरदोई के कलेक्टर, राजस्व के सकारात्मक प्रस्ताव आदि को बैकडेट में बदलवाते हुए पूरे मामले को निस्तारित कर डाला.

हालांकि कई प्रश्न इसी आनन-फानन की कवायद में अनुत्तरित रह गए कि जब शिकायतकर्त्ता की मांग की लोक उपयोगिता व उपयुक्त्तता नही थी तो जिलाधिकारी ने अनुकूल रिपोर्ट क्यों भेजी? क्या इस पूरे प्रकरण में पुलिस को भाजपा कार्यालय की शिकायत पर कारवाई करनी चाहिए? पूरे मामले में भाजपा संगठन के कूदने की वजह और जिलाधिकारी की पूर्व की अनुकूल रिपोर्ट (यदि वह गलत थी) पर क्या कारवाई हुयी? क्या जिलाधिकारी, राजस्व की प्रतिकूल रिपोर्ट लगने के बाद भी इस तरह के मामले महज कबाड़ इकट्ठा करने के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय भेजे जाते हैं? राज्यपाल का 30 अप्रैल को भेजा गया पत्र मुख्यमंत्री के समक्ष एक महीने और एक सप्ताह तक पेश न करने वालों पर कोई कारवाई बनती है या नहीं?

भ्रष्टाचार की आंच योगी के दफ्तर तक, राज्यपाल ने लिखी चिट्ठी

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