#क्या सत्ताशीर्ष पर बैठी अफसरशाही होने देगी अपने खिलाफ कोई कार्यवाही.
#क्या ईमानदार अफसरों को मुख्यधारा में लाने में कामयाब होंगे योगी.
अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : मुख्यमंत्री बनने के बाद सूबे की अफसरशाही को बार बार नसीहत देने के बाद पहली बार एक्शन में आये योगी आदित्यनाथ ने एक साथ दो जिलों के कप्तानों को काम में लापरवाही के चलते अभी कुछ ही दिन पहले सस्पेंड किया था. और अब मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सतर्कता और आर्थिक अपराध शाखा में अफसरों के खिलाफ लंबित मामलों की पूरी रिपोर्ट मांगी है और मुख्य सचिव व प्रमुख सचिव गृह के साथ बैठक करेंगे. मुख्यमंत्री की इस बैठक को लेकर सोमवार को अफसर दिनभर मीटिंग में पूरी रिपोर्ट रखने को लेकर तैयारी में लगे रहे. अब इसमें देखने वाली बात यह होगी कि कई अफसर जिनके कारनामों की पत्रावलियां या तो गायब हैं या फिर कुछ न कुछ लेकिन लगाकर दबा दी गयीं हैं क्या वो बाहर आ पाएंगी.
मामले को दबाकर मौज काटने वाले अफसरों में मंगलवार को बुलाई गयी इस बैठक से हडकंप मचा है. जानकारी के मुताबिक़ इस समय सूबे में करीब तीन सौ से अधिक अधिकारियों के खिलाफ सतर्कता और आर्थिक अपराध शाखा के स्तर पर कार्रवाई लंबित हैं जिसकी अनुमति नहीं मिल पा रही है, और मामला दबा पड़ा है. माना यह भी जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पारदर्शी सरकार का संदेश देने के लिए योगी सरकार अफसरों के भ्रष्टाचार को संज्ञान में लेते हुए कड़ी कार्रवाई कर सकती है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इस समीक्षा बैठक में क्या नगर विकास प्रमुख सचिव मनोज कुमार सिंह, प्रमुख सचिव सचिवालय प्रशासन महेश गुप्ता, चंचल तिवारी व ललित वर्मा जैसे अफसरों पर कार्यवाही हो सकती है. क्या इनके कारनामों की फाईल को मुख्यमंत्री के समक्ष लाया जाएगा? सत्ताशीर्ष पर बैठी अफसरशाही क्या ऐसा होने देगी यह एक यक्ष प्रश्न है. जिस शासन में मनोज कुमार सिंह जैसे अफसर विभाग को चरागाह बना दिए हों और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की प्रमुख सचिव व सपा से करीबी रिश्ता रखने वाली अनीता सिंह को योगी शासन में भी मुख्यधारा में लाकर खडा कर दिया गया हो, जबकि सूबे में कई अन्य योग्य अफसर अभी भी साईड लाइन में हैं तो सवाल उठता ही है. बताते चलें कि केंद्र कि योगी सरकार में भी एक अफसर को गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ इसलिए तैनात नहीं किया गया था कि वह यूपीए गवर्नमेंट में सलमान खुर्शीद के साथ था. अब देखना होगा कि सीएम योगी की इस बैठक से कुछ निकलकर भी आयेगा या फिर इसपर भी अफसरशाही अपना एजेंडा चलाने में कामयाब रहेगी.
मिली जानकारी के मुताबिक़ वर्ष 2009-10 में ग्राम विकास आयुक्त के पद पर रहते हुए वर्तमान प्रमुख सचिव नगर विकास मनोज कुमार सिंह ने नरेगा में जो कारनामे किये उसमें हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई जांच हुई जिसमें साक्ष्य पाए जाने पर 2012-13 में सीबीआई ने मुकदमा चलाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार से अनुमति मांगी थी लेकिन तत्कालीन प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री से मिलकर मनोज कुमार सिंह ने या तो उक्त पत्रावली ही गायब करा दिया या फिर पत्रावली से सीबीआई का वह पत्र जिसमें उसके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी गयी थी. जिसके चलते आज भी वह नगर विकास जैसे मलाईदार विभाग का मुखिया बनकर अपने गुर्गों के साथ कारनामें करने में लगा हुआ है और स्वच्छ भारत मिशन में करोड़ों का वारा न्यारा कर चुका है. अपने कारनामों के लिए मशहूर मनोज कुमार पर वर्ष 1998-2000 में DRDA घोटाले में भी इनपर आरोप लगे और विजिलेंस की जांच चली.
इसी तरह आबकारी आयुक्त रहते वर्तमान प्रमुख सचिव सचिवालय प्रशासन महेश गुप्ता के कारनामें भी जगजाहिर हैं तो ललित वर्मा जैसे अफसरों के खिलाफ अभी भी विजिलेंस की जांच लंबित है. ऐसे में सवाल यह है कि ऐसे अफसरों से कैसे निपटेगी यह सरकार या फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह सराहनीय कदम केवल मीटिंग तक ही सीमित रहेगा.
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