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राख से भी निकला जिन्न, बीएस तिवारी के साथ काम न करने को आमादा थे बिजली कर्मी

#2015 में हरदुआगंज में तैनात सभी इंजीनियरों ने सामूहिक स्थानान्तरण को लिखा था पत्र.

#बीएस तिवारी के कारनामों और कार्यप्रणाली से थे आजिज, चेयरमैन व प्रबंध निदेशक को लिखा था पत्र.

#इंजीनियरों द्वारा लिखे इस पत्र को बीएस तिवारी द्वारा रिकार्ड से निकलवा जलवाने की पुख्ता जानकारी.

#पत्र की मूलप्रति भले ही बीएस तिवारी द्वारा जला दी गयी, लेकिन कापी अभी भी मौजूद.

#कारखाना रिपोर्ट,मजिस्ट्रेटी जांच रिपोर्ट,प्रमुख सचिव श्रम का केस चलाने को लेकर लिखा गया पत्र, इंजीनियरों द्वारा सामूहिक स्थानान्तरण का यह पत्र बीएस तिवारी के गुनाहों को करता है साबित.

#इन सब के बावजूद विभाग के कर्णधार जुटे बचाने में, चेयरमैन अलोक कुमार पर भी उठ रहे सवाल.             

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ : ताकतवर बीएस तिवारी इस कदर बेखौफ था कि हरदुआगंज हादसे के बाद बिजली इंजीनियरों और कर्मियों की सिविल नाफरमानी भी उसे बर्दाश्त नही हुयी थी. तिवारी के कारनामों से आजिज बिजली कर्मियों ने उसके साथ काम न करने की चिट्ठी लिखी तो उसे रिकार्ड से निकलवा कर जलवा दिया. दरअसल मजदूरों के खून से रंगे तिवारी के हाथों की जकड़ से ये सभी छुटकारा चाहते थे. अब तीन साल बाद उस जलाई गयी चिट्ठी की राख से निकला जिन्न सामने आ गया है. गांधी की सविनय अवज्ञा की राह पर चलते हुए इंजीनियरों व कर्मचारियों का लिखा गया पत्र बीएस तिवारी के लाख न चाहने के बाद भी सामने आ गया है.

वर्ष 2015 में बीएस तिवारी के कारनामों से आजिज आकर हरदुआगंज में तैनात रहे लगभग सभी इंजीनियरों ने खुद को वहां पर काम करने में असमर्थ पाने और निगम हित में खुद की तैनाती हरदुआगंज से अन्यत्र किये जाने की मांग की थी. इसके लिए इंजीनियरों ने एक साथ स्वहताक्षरित पत्र तत्कालीन चेयरमैन व प्रबंध निदेशक को लिखा था. वैसे तो बीएस तिवारी द्वारा इंजीनियरों द्वारा लिखे गए इस पत्र को रिकार्ड से निकलवाकर जलवा दिया गया था. लेकिन अब इसे गुनाहों के देवता बीएस तिवारी का दुर्भाग्य कहा जा सकता है कि इतने प्रयासों के बावजूद वो सबूत नष्ट करने में कामयाब नहीं रहा और आज वह सबके सामने है.

बीएस तिवारी के काले कारनामों के दबाव से आजिज आकर वर्ष 2015 में हरदुआगंज में तैनात लगभग सभी इंजीनियर एक साथ सामूहिक तौर पर अपने संगठन के माध्यम से अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को पत्र लिखा था कि “हम समस्त अधिकारी हरदुआगंज तापी परियोजना में कार्यरत हैं वह हम समस्त हरदुआगंज तापी परियोजना में काम करने में अपने आप को पूर्व पर असमर्थ महसूस कर रहे हैं आपसे अनुरोध है कि हम समस्त अधिकारियों का स्थानांतरण नियम हित में शीघ्र शीघ्र हरदुआगंज तापीय परियोजना से अन्यत्र कर दिया जाए.”

अखिलेश सरकार में अगर आजम खान के नगर विकास में यह दहशत हुआ करता था कि कोई अधिकारी और कर्मचारी वहां तैनाती नहीं चाहता था, तो उसी सरकार में कुछ ऐसा ही हाल 2015 में बीएस तिवारी के नीचे काम करने वाले अधिकारियों का रहा था और वे एक साथ खुद के तबादला किये जाने का पत्र लिख बैठे. लेकिन तब यह मामला दबा दिया गया था.

ताज्जुब तो यह है कि अखिलेश राज में चेयरमैन संजय अग्रवाल की नाक के नीचे यह सब घटित होता रहा और उनके द्वारा मजिस्ट्रेटी जांच के उपर एक विभागीय जांच बैठाकर पूरे मामले को रफादफा करा दिया गया. जबकि विभागीय जांच जिस अधिकारी को दी गयी वह बीएस तिवारी से जूनियर था. ऐसे में कैसे कोई जूनियर अपने सीनियर के खिलाफ निष्पक्ष जांच करने की हिमाकत करेगा. बताते चलें कि हरदुआगंज पावरहाउस में हुई मजदूरों की मौत के जिम्मेदार बीएस तिवारी को बचाने के लिए भले ही तत्कालीन चेयरमैन संजय अग्रवाल ने कारखाना रिपोर्ट को दरकिनार किया और मजिस्ट्रेटी जांच के उपर जांच बैठाकर मामले को रफादफा करा दिया गया, लेकिन गुनाह पीछा नहीं छोड़ता. बताते चलें कि हरदुआगंज में मजदूरों की मौत के बाद हुई कारखाना आगरा और मजिस्ट्रेटी जांच में बीएस तिवारी को घटना का जिम्मेदार बताया गया था.

बीएस तिवारी को लेकर संजय अग्रवाल की तर्ज पर कमोबेश वर्तमान चेयरमैन अलोक कुमार भी चल पड़े हैं. इसी हरदुआगंज काण्ड की जांच करीब 8 महीने पहले उस संजय तिवारी को सौंप दी गयी जहां पर निदेशक बनने से पहले बीएस तिवारी तैनात हुआ करते थे. इस तरह जूनियर को जांच देकर चेयरमैन आलोक कुमार ने योगी सरकार के उस आदेश की अवहेलना की है जिसमें कहा गया था कि किसी भी आरोपी की जांच उससे एक पद सीनियर का अधिकारी करेगा.

अब ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही यह है कि हरदुआगंज कांड के जिस प्रकरण में कारखाना आगरा की रिपोर्ट, मजिस्ट्रेट जांच की रिपोर्ट, तत्कालीन प्रमुख सचिव श्रम द्वारा केस चलाये जाने की अनुमति पत्र और 20 से ज्यादा इंजीनियरों का निगम हित में इनके कारनामों से त्रस्त आकर एक साथ स्वहस्ताक्षरित निगम के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक को लिखा पत्र साबित करता है कि बीएस तिवारी के कारनामे क्या रहे होंगे. लेकिन सेटिंग में माहिर और पैसे का खिलाड़ी बीएस तिवारी तत्कालीन चेयरमैन संजय अग्रवाल की आंखों पर काली पट्टी बाँध खुद को बचाने में आज तक कामयाब रहा.

आज जब “अफसरनामा” बीएस तिवारी के कारनामों का सबूतों के साथ एक-एक करके खुलासा कर रहा है तो अखिलेशराज की ही तरह योगिराज में भी जिम्मेदारों द्वारा बीएस तिवारी को बचाने को लेकर कवायद जारी है. पूरे प्रकरण को लेकर उनकी चुप्पी यह साबित करने के लिए काफी है. वर्तमान चेयरमैन अलोक कुमार की आँखों पर भी कुछ उसी तरह की पट्टी बंधी है जैसा कि पहले संजय अग्रवाल की आँखों पर थीं.

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