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यूपी में सौर क्रांति में बड़ों को फायदा छोटों को ठेंगा

#निवेशक सम्मेलन के वादों से उलट है नेडा की नीतियां, शासनादेश का भी हो रहा उल्लंघन.

#एमएसएमई और स्टार्टअप बाहर रह जाएंगे जटिल टेंडर प्रक्रिया से.

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बड़ा ढोल पीट कर लायी गयी सोलर पालिसी और सौर ऊर्जा क्रांति के सपने दिखाने के वादे महज चंद बड़े उद्यमियों को फायदा पहुंचाने के लिए हैं. सोलर ईकाई लगाने से लेकर रुपटाफ सोलर पालिसी तक सब कुछ चंद बड़े नामों को ही फायदा पहुंचाने के लिए रह गए हैं. लाखों लोगों को रोजगार देने वाले छोटे व मझोले उद्यमी सहित स्टार्टअप उत्तर प्रदेश के वैकल्पिक ऊर्जा विभाग व नेडा के चलते ठगा महसूस कर रहे हैं. प्रदेश की योगी सरकार विकास की तमाम योजनायें कितना ही क्यूँ न बनाये, निवेश लाने और निवेशकों को सहूलियतें देने के लिए सिस्टम को अगर अपग्रेड नहीं करेगी और अफसरों की वर्षों से चली आ रही लालफीताशाही के रवैये और कार्य प्रणाली में सुधार नहीं करेगी तो बाहरी निवेशक तो दूर घर के निवेशक ही किनारा करने पर मजबूर हो जायेंगे.

फिलहाल यूपीनेडा के अफसरों की कार्य प्रणाली से तो ऐसा ही लगता है, जहां अफसरों की कार्यशैली से केंद्र व राज्य सरकार की प्रमुख योजनाओं में से एक सोलर एनर्जी लगाने के काम में जुटे लघु उद्यमियों की परेशानियां तो यही बयाँ कर रही है. यूपीनेडा के अफसर केंद्र और राज्य की इस महत्वाकांक्षी योजना के सहभागी न बन, अपने पुराने ढर्रे लालफीताशाही पर ही चल रही है. इसके अलावा शासनादेश को दरकिनार करते हुए टेंडर प्रक्रिया को  इतना जटिल बना दिया है कि इस काम से MSME और STARTUP कटेगरी की कम्पनियां टेंडर प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकतीं या फिर वे एक निश्चित राशि का ही टेंडर डाल सकती हैं.

मजेदार बात यह है, कि MSME और STARTUP कटेगरी के उद्यमी अपनी शिकायत लेकर  विभागीय मंत्री से मिलकर ज्ञापन दिया उनके आश्वासन और निर्देश के बाद भी अफसरों द्वारा समाधान निकालने का झूठा आश्वासन देकर इनको चलता किया गया और फिर से वही पुराना मनमाना तरीका अपनाते हुए टेंडर जारी किये जा रहे हैं.

यूपीपीसीएल के अफसरों से सोलर एनेर्जी में नेट मीटर का इंस्टालेशन कराना किसी चुनौती से कम नहीं  

सोलर एनेर्जी सिस्टम और उसके इंस्टालेशन आदि के लिए जहां देश के अन्य राज्य इसकी बदलती तकनीकी को समझने के लिए अपने अधिकारियों की ट्रेनिंग दिलवा रहे हैं, वहीँ इस काम के लिए उत्तर प्रदेश की जिम्मेदार संस्था यूपीनेडा की कार्य प्रणाली में सुधार की तो छोड़ इसके लिए कोशिश करने मात्र से भी कतरा रही हैं. जानकारी का अभाव इस कदर है कि इनसे सोलर एनेर्जी में लगने वाले नेट मीटर के इंस्टालेशन का काम कराना किसी चुनौती से कम नहीं है. कमाल की बात तो यह है कि सोलर एनर्जी की जिस अपग्रेड व्यवस्था को इसकी रेगुलेटिंग अथोरिटी (MNRE) अपना चुकी है, उसको भी अपनाने में यूपीनेडा असमर्थता जता करना नहीं चाह रहा है.

यूपीनेडा की टेंडर प्रणाली बनी “MSME और STARTUP” कटेगरी के उद्यमीयों के लिए संकट

बताते चलें कि यूपीनेडा द्वारा सोलर एनेर्जी के लिए बनी नीति में खामियों को लेकर “MSME और STARTUP” कटेगरी के उद्यमीयों का एक प्रतिनिधि मंडल विगत दिनों विभागीय मंत्री से मिलकर एक ज्ञापन दिया था. जिसमें विभाग की गलत नीतियों और कार्य प्रणाली के चलते उद्यमियों को मिलने वाली बकाया सब्सिडी का मुद्दा, वर्तमान टेंडर प्रक्रिया से केवल चंद बड़े (Establish) उद्यमियों को ही फायदा बाकी अन्य हाशिये पर, अधिकारियों व कर्मचारियों की अकुशलता और मनमानी के मुद्दे शामिल थे. जिसपर विभागीय मंत्री ने पूरी बात समझते हुए प्रमुख सचिव को समाधान के लिए निर्देशित किया और फिर यह मसला निदेशक यूपीनेडा के पास पहुंचा और उन्होंने इसके लिए तकनीकी जानकारी न होने और पूरे मसले को विशेषज्ञों व उद्यमियों के साथ बैठकर सुलझाने की बात कह प्रतिनिधिमंडल को चलता कर दिया. करीब 15 दिन बीत जाने के बाद बातचीत करने के लिए कोई सूचना तो नहीं आई बल्कि पुनः उसी पुरानी दोषपूर्ण प्रणाली से ही 1 लाख होम लाईट का टेंडर खोल दिया गया.

प्रतिनिधिमंडल के अनुसार वर्तमान टेंडर प्रणाली की खामियां, शासनादेश का किया जा रहा उल्लंघन     

सोलर एनेर्जी इंस्टालेशन के काम को करने के लिए यूपीनेडा ने पूरे काम को कुल तीन भागों में बांटते हुए सबका प्रतिशत निर्धारित कर दिया. जिसमें एक स्टेब्लिश कटेगरी जिसको 100 किलोवाट से उपर के प्रोजेक्ट का काम, दूसरी एमएसएमई को 11 से 100 किलोवाट तक के प्रोजक्ट का काम और तीसरी स्टार्टअप के लिए 01 से 10 किलोवाट का काम करने की बात कही गयी. इसमें पहली कटेगरी के उद्यमियों को कुल काम का 70 प्रतिशत और बाकी के 30 प्रतिशत में अन्य दो कटेगरी के उद्यमी मिलकर काम करेंगे, यह व्यवस्था दी गयी. यहाँ तक तो ठीक था. इसके अलावा यूपीनेडा और उनके अफसरों का असली खेल कुछ बड़ी मछलियों को चारा खिलाने के वास्ते शासनादेश को दरकिनार करते हुए शुरू हुआ.

अब इस सिस्टम में टेंडर डालने के लिए जो शर्तें निर्धारित की गयीं उसको पूरा करना दूसरी व तीसरी कटेगरी के उद्यमियों के लिए लगभग असंभव था और वे तीस प्रतिशत से ज्यादा के काम की सोच भी नहीं सकते और इसमें भी भागीदारी लगभग न के बराबर रहने की उम्मीद हो गयी. MSME कंपनी को काम करने के लिए शर्त लगाए गयी कि उसका टर्नओवर लगातार 3 साल तक 1 करोड़ सालाना होना चाहिए. “MSME और STARTUP” कटेगरी के उद्यमियों को इसी बात को लेकर आपत्ति थी कि जब हमारी काम करने की लिमिट 1 किलोवाट से 100 किलोवाट कर दी गयी है और कोई भी कंपनी एक साल में 150 किलोवाट से ज्यादा का काम कर चुकी हो तो 1 करोड़ का टर्नओवर बनेगा. ऐसे में कोई भी “MSMEऔर STARTUP” कटेगरीकी कंपनी कभी भी स्टेब्लिश कटेगरी में नहीं जा सकती. ऐसे में यूपीनेडा की टेंडर के लिए यह नीति केवल बढे उद्यमियों के हितों को साधने वाला हुआ और “MSME और STARTUP” कटेगरी की कंपनियों को मैदान से बाहर करने की कवायद कहा जाय तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. एक तरफ केंद्र की मोदी सरकार जहां छोटे निवेशकों को आकर्षित करने के लिए तमाम योजनायें ला रही है और इसी सोलर एनर्जी के लिए “MSME और STARTUP” उद्यमियों के हित में नियमों का सरलीकरण किया है, वहीँ उत्तर प्रदेश का यह विभाग उनकी हिस्सेदारी को शून्य करने पर तुला हुआ है.  

 

…….पढ़िए शासनादेश के पेज नम्बर 2 का प्वाईंट नम्बर 2… 

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