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योगी भी हुए बेकाम, उमाशंकर ने GO पर लगा दी लगाम, आरोपी को बचाने में जुटा RES, GO दबाया     

#RES में योगी का आदेश भी हुआ बेअसर, 27 मई का जारी शासनादेश अभी तक नहीं हुआ वेबसाईट पर अपलोड 

#शासन के अनुभाग 1 ने अपलोड करने के लिए निर्देश के साथ भेजा फिर भी निदेशालय कर रहा मनमानी.

#निदेशक RES गंगवार इसके लिए कर रहे हीलाहवाली ताकि उमाशंकर को मिल सके समय और न बढ़े दबाव.

#27 मई 19 को जारी शासनादेश संख्या 1866/1-92-2019 न तो  http://shasanadesh.up.nic.in/ पर और न ही विभाग की वेबसाईट पर.

#मुलायम, माया और अखिलेश के मुख्यमंत्रित्व काल को पार करते हुए तमाम इल्जामों से घिरे इस बाजीगर इंजीनियर उमाशंकर की रिटायर्मेंट के बाद भी योगी सरकार में भी अच्छी घुसपैठ.

#शासनादेश की कार्यवाही से बचने के लिए उमाशंकर कोर्ट से स्थगन आदेश की फिराक में, शासनादेश अपलोड न करके निदेशक गंगवार दे रहे मौका.   

अफसरनामा ब्यूरो 

लखनऊ : पद से हटा पर रौब नहीं घटा, कुछ यही हाल ग्रामीण अभियंत्रण सेवा (आरईएस) के पूर्व निदेशक उमाशंकर का है. निदेशक पद से सेवानिवृत्ति के बाद भी इस दागी अफसर पर विभाग की मेहरबानियां बरकरार हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की आंख में दिनदहाड़े धूल झोंकते हुए आरईएस विभाग इस दागी अफसर के खिलाफ जारी शासनादेश को सार्वजनिक नहीं कर रहा. उमाशंकर का जलवा इतना कि मुख्यमंत्री को धता बताते आरईएस के हुक्मरानों को लगता है कि उनका कोई बाल बांका न कर सकेगा. आखिर क्यों पूर्व निदेशक उमाशंकर की छाया से मुक्त नहीं हो पा रहा है ग्रामीण अभियंत्रण विभाग, अखिलेश राज से लेकर योगिराज तक अपने तिकडम के बलबूते जहां पहले पारस के ख़ास बने रहे वहीँ योगिराज में मोती के, शायद यही वजह रही है कि महीनों पहले सेवानिवृत्त हो जाने के बाद भी विभाग में हनक उमाशंकर की ही चल रही  है और उमाशंकर के आगे खुद मुख्यमंत्री का आदेश भी बेअसर साबित हो रहा है.

ग्रामीण अभियंत्रण विभाग के पिछले एक दशक से ज्यादा समय से विभागीय प्रमुख रहे पूर्व चीफ इंजीनियर उमाशंकर जोकि अखिलेश सरकार में डिमोट होने के बाद फिर प्रमोट हो गए और अपना रिटायरमेंट योगिराज में मंत्री जी की मेहरबानी से पूरा करने में कामयाब रहे. पूर्व निदेशक उमाशंकर के कारनामों पर “अफसरनामा” द्वारा पूर्व में उठाये गए सभी बिंदु मुख्यमंत्री के आदेश के बाद तत्कालीन एपीसी डॉ प्रभात कुमार द्वारा की गयी जांच में लगभग सही पाए गये और 27 मई 2019 को शासन ने उमाशंकर से निदेशक के तौर पर लिए गये अतिरिक्त वेतन और रिटायरमेंट के बाद ली गयी अतिरिक्त पेंशन की रिकवरी के लिए एक शासनादेश संख्या 1866/1-92-2019 जारी कर दिया. लेकिन वर्तमान निदेशक ग्रामीण अभियंत्रण आर एस गंगवार द्वारा अभी तक उक्त आदेश को विभाग की वेबसाईट पर अपलोड नहीं किया जा सका है जबकि अनुभाग संख्या 1 द्वारा उक्त आदेश को नोटिंग के साथ निदेशालय को अपलोड करने के लिए भेजा जा चुका है. बताते चलें कि सरकार किसी की भी रही हो, मुख्यमंत्री और मंत्री कोई भी रहे हों इस इंजीनियर में ऐसा जादू था कि सबके सब इसके मुरीद होते गये. कलंक कथा के पर्याय यादव सिंह  जैसे स्वनामधन्य इंजीनियर भी इनकी कलाकारी के आगे बौने नजर आते हैं. मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल को पार करते हुए तमाम इल्जामों से घिरे इस बाजीगर इंजीनियर ने योगी सरकार में भी अपनी अच्छी घुसपैठ बना लिया था.

“अफसरनामा” की जांच पड़ताल में यह बात सामने आयी कि वर्तमान निदेशक द्वारा प्रकरण को दबाया जा रहा है ताकि उमाशंकर शासनादेश के विरुद्ध कोर्ट से स्थगन आदेश लाकर रिकवरी से बच सके. जांच पड़ताल में एक बात और भी सामने आयी कि पूर्व में उमाशंकर से सम्बंधित सभी प्रकरणों में हुए आदेशों की कापी को वेबसाईट पर अपलोड करने में हीलाहवाली की गयी है. पड़ताल में एक बात और सामने आया कि पूर्व में इसी प्रकरण में निलंबित किए गए रामरतन, शासनादेश के विरुद्ध कोर्ट से स्थगन आदेश लाकर नौकरी कर रहे हैं. कुछ इसी तरह से शासन और निदेशालय में बैठे उमाशंकर के शुभचिंतकों द्वारा किया जा रहा है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा इस तरह के प्रकरण में जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्यवाही कब करेंगे और क्या ग्रामीण अभियंत्रण विभाग उमाशंकर के प्रभाव से मुक्त हो पाएगा.

RES के पूर्व निदेशक व विवादित चीफ इंजीनियर रहे उमाशंकर का योगिराज में भी मजबूत जुगाड़ है जिसकी बदौलत मुख्यमंत्री के आदेशों को भी उमाशंकर और उसके हिमायती ठेंगा दिखाने में पीछे नहीं हैं. साफ़ सुथरी इमेज और बेदाग़ मुख्यमंत्री होने के बावजूद वर्तमान सरकार में पिछली सरकार के दागी अफसर बचते चले आ रहे हैं. ग्रामीण अभियंत्रण विभाग जिसके भ्रष्टाचार को लेकर सरकार किसी की भी रही हो खबरे आम होती रही हैं. बिना बजट वाले इस विभाग में अभी के कुछ वर्षों को छोड़ दिया जाय तो कभी पैसों की कमी नहीं रही है और यही वजह रही है कि इस विभाग में नियुक्ति और तैनाती को लेकर रस्साकसी और कमीशनखोरी की खबरें हमेशा चर्चा में रही हैं. पहले पारस के बाद में मोती के दुलारे रहे उमाशंकर पर उसके रिटायरमेंट के बाद मुख्यमंत्री योगी के दबाव से APC डॉ प्रभात कुमार ने जांच शुरू की तो उन्हीं तथ्यों का खुलासा हुआ जोकि “अफसरनामा” द्वारा पहले भी उठाया जाता रहा है. कृषि उत्पादन आयुक्त डॉक्टर प्रभात कुमार की उच्च स्तरीय जांच में पूरे मामले का खुलासा होने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सेवानिवृत्त हो चुके उमाशंकर को पदावनत करने के साथ ही उससे अतिरिक्त वेतन भत्ते व् पेंशन के पैसों की वसूली करने का आदेश दिया जिसका शासनादेश दिनांक 27 मई को जारी हुआ. इसी प्रकरण में तत्कालीन अनुसचिव रामरतन, अनुभाग अधिकारी जयपाल सिंह को निलंबित करने के निर्देश भी दिए गये थे और इन दोनों के खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही की भी संस्तुति की गयी थी. बाद में राम रतन और जयपाल सिंह के निलंबित किये जाने की खबरें आयीं लेकिन निलंबन का आदेश बाहर नहीं आ सका. कुछ इसी तरह से उमाशंकर का आदेश भी बाहर जाने से रोकने की कवायद की जा रही है ताकि उसको समय मिल सके बिना किसी अतिरिक्त दबाव के.

अखिलेश सरकार के आरईएस मंत्री परस यादव के बाद योगी सरकार के आरईएस मंत्री मोती सिंह भी ग्रामीण अभियंत्रण सेवा (आरईएस) के इंजीनियर व पूर्व निदेशक उमाशंकर के मोहपाश से नहीं बच सके. योगी सरकार के आरईएस मंत्री मोती सिंह तो इस कदर उमाशंकर के ईश्क मे गिरफ्तार रहे कि विभाग के प्रमुख सचिव, सचिव को भी दरकिनार कर बस उसी की सुनते रहे. उमाशंकर का रसूख इतना था कि मनमुताबिक काम न पूरा होने पर प्रमुख सचिव तक को चलता करवा दिया था और भ्रष्टाचार में गले तक डूबने के बाद भी ससम्मान माला पहनकर पूर्व निदेशक उमाशंकर रिटायर हुआ. कृषि उत्पादन आयुक्त डॉक्टर प्रभात कुमार की उच्च स्तरीय जांच में पूरे मामले का खुलासा होने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सेवानिवृत्त हो चुके उमाशंकर को पदावनत करने के साथ ही उससे अतिरिक्त वेतन भत्ते व् पेंशन के पैसों की वसूली करने के आदेश को विभागीय मंत्री की कृपा से दबा दिया गया और उसपर किसी तरह की कार्यवाही करने से बचाया गया लेकिन लोकसभा चुनाव बाद खुद सीएम योगी की पहल के बाद इस पर शासनादेश जारी हो सका है.

जानकारों का कहना है कि RES में पहले पारस के बाद में मोती के दुलारे भी बने रहे पूर्व निदेशक उमाशंकर और आज भी मोती के प्यारे बने हुए हैं तथा अपने प्यादों के सहारे विभाग में हनक बरकरार रखे हुए हैं. भ्रष्टाचार की मिशाल रहे RES के पूर्व निदेशक उमाशंकर को योगी सरकार में मंत्री मोती सिंह से संरक्षण मिल रहा है. जिसके चलते मुख्यमंत्री के आदेश के बावजूद उमाशंकर से रिकवरी की फाईल को दबाया गया जबकि इस मसले में दूसरे अधिकारी और कर्मचारी पर कार्यवाही की जा चुकी है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्यों सेवानिवृत्त के बाद भी विभागीय मंत्री का मोह उमाशंकर से नहीं छूट पा रहा है. जब सीएम के आदेश के बाद 2 जिम्मेदारों पर त्वरित गति से कार्यवाही की गयी तो उमाशंकर से रिकवरी की कार्यवाही में इतना विलम्ब क्यों हुआ और अब जब शासनादेश जारो हो गया तो उसको पब्लिक होने से बचाया जा रहा है.

मायावती सरकार में चलाई गई अंबेडकर ग्राम CC रोड योजना से कमाई का जो धंधा शुरू हुआ वह अखिलेश सरकार के लोहिया ग्राम योजना तक जारी रहा. इसी योजना के एक बड़े हिस्से को ऊपर तक पहुंचाने में पूरी तरह से संलिप्त रहा उमाशंकर जिससे सरकार किसी की भी रही हो इस का जलवा बरकरार रहा था. जिसकी बानगी  पूर्व RES मंत्री पारसनाथ यादव का उमाशंकर की तैनाती पर फाईल पर किया गया वह नोट रहा था जिसका जिक्र मीडिया द्वारा खबरों में किया गया. इसके अलावा योगी सरकार में ग्रामीण अभियंत्रण मंत्री मोती सिंह द्वारा भी उमाशंकर को पूरा बचाने का काम किया गया और रिटायरमेंट तक उनको सेफ बनाए रखा गया, जबकि सरकार की मंशा भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को किनारे करने की रही थी. ऐसे में चर्चित और घोषित भ्रष्टाचारी उमाशंकर को संरक्षण भाजपा की योगी सरकार में भी मिला.

उमाशंकर के बारे में मशहूर था कि इनके कारनामों की जांच करने वाले या इनके कामों पर ऊँगली उठाने वाले प्रमुख सचिव स्तर के आईएएस अफसर विभाग से हटा दिए जाते हैं लेकिन अपनी अद्भुत क्षमता के बल पर ये जनाब अपनी कुर्सी पर और ज्यादा मजबूत हो जाते हैं. जानकारी के मुताबिक़ उमाशंकर के प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता ही कि विभाग में प्रमुख सचिव की तैनाती और स्थानान्तरण भी इनके मनमाफिक होते रहे हैं. तत्कालीन विभागीय मंत्री की सांठगाँठ के चलते उमाशंकर के सामने प्रभात कुमार, कुमार कमलेश, सूर्य प्रताप सिंह, मनोज कुमार और अजय कुमार सिंह जैसे दिग्गज  आईएएस अफसर भी उमाशंकर की मर्जी के खिलाफ विभाग में आवश्यक कार्यवाही करने में खुद को असमर्थ पाते रहे और जिसने कोशिश भी की उसका तबादला कर दिया गया था.

गौरतलब है कि पदोन्नति में आरक्षण एवं परिणामी ज्येष्ठता का लाभ न दिए जाने सम्बन्धी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय दिनांक 27 अप्रैल 2012 के परिप्रेक्ष में उत्तर प्रदेश शासन के कार्मिक विभाग के शासनादेश संख्या 8/4/1/2000 tc-1–क-2/2015 दिनांक 21 अगस्त 2015 द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नीति निर्धारित की गयी और उस नीति के अनुसार कार्यवाही करते हुए ग्रामीण अभियंत्रण विभाग उत्तर प्रदेश शासन के कार्यालय ज्ञाप संख्या १०९/२०१५/३९३१/९२-1-२०१५-५८(अधि)/२०१५ दिनांक 9 सितम्बर २०१५ द्वारा तत्कालीन निदेशक एवं मुख्य अभियंता ग्रामीण अभियंत्रण विभाग को पदोन्नति में प्राप्त आरक्षण का लाभ समाप्त कर अधीक्षण अभयन्ता के पद पर पदावनत कर दिया था. पदावनति के बाद उमाशंकर अधीक्षण अभियंता ग्रामीण अभियंत्रण विभाग परिमंडल फैजाबाद बनाये गए जहाँ पर उमाशंकर ज्वाइन न करके अवकाश पर चले गए और वापस तब आये जब फिर से निदेशक बनने में कामयाब रहे.

मजे की बात ये है कि जिस आदेश के द्वारा उमाशंकर को पुनर्बहाल किया गया उस आदेश को  न तो विभाग की वेबसाईट पर डाला गया था और न ही किसी अन्य विभागीय अधिकारी को उपलब्ध कराया गया था. ऐसे में यह रहस्य ही रहा था कि उमाशंकर को निदेशक ग्रामीण अभियंत्रण के पद पर बहाली के आदेश का आधार क्या था और इसकी संस्तुति किसके द्वारा की गयी थी. ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद डिमोशन की कार्यवाही तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के अनुमोदन के बाद की गयी थी. वैसे भी सीनियरिटी लिस्ट में उमाशंकर कई अधीक्षण अभियंताओं से नीचे हैं, तो बिना आरक्षण का लाभ लिए ये मुख्य अभियंता अथवा निदेशक का चार्ज बिना किसी वजह के कैसे ले सकते थे. सुप्रीम कोर्ट के उक्त आदेश के अनुसार पदोन्नति में आरक्षण का लाभ लेने वाले अधिकारी को डिमोट करने के बाद किसी तरह का अतिरिक्त प्रभार नहीं दिया जा सकता.

बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट ने 27 अप्रैल 2012 को प्रोन्नत में आरक्षण व् परिणामी ज्येष्ठता की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित करते हुए वर्ष 1997 के बाद के मामलों में संबंधित कार्मिकों को पदावनत करने का आदेश दिया था जिस पर कार्मिक विभाग ने 21 अगस्त 2015 को शासनादेश जारी किया ऐसे में 9 सितंबर 2015 को तत्कालीन मुख्यमंत्री के अनुमोदन से उमाशंकर को निदेशक पद से अधीक्षण अभियंता के पद पर पदावनत कर दिया गया. पूरे प्रकरण की उत्पादन आयुक्त द्वारा कराई गई जांच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. सूत्रों के अनुसार उमाशंकर के प्रत्यावेदन के तथ्यों का परीक्षण न करते हुए उन्हें यथावत स्वीकार कर लिया गया. फाइल में पदावनति करने व पदावनति समाप्त करने की टिप्पणियां विरोधाभासी हैं. जांच में पाया गया कि उमाशंकर को पदावनति समाप्त करने के लिए उत्तर प्रदेश कार्य नियमावली 1975 की व्यवस्था को अनदेखी की गई. संबंधित मामले में अनिवार्य रूप से मुख्यमंत्री से अनुमोदन तक नहीं लिया गया. तत्कालीन विभागीय सचिव ने नियमानुसार मुख्यमंत्री का अनुमोदन लेने के लिए फाइल पर टिप्पणी की थी लेकिन मंत्री पारसनाथ ने अफसरों की टिप्पड़ी खारिज करते हुए सीधे आदेश निर्गत करने के लिए अनुमोदित कर दिया. आश्चर्यजनक तरीके से पूर्व मंत्री पारसनाथ यादव ने अपने अनुमोदन में लिखा कि “प्रत्यावेदन के निस्तारण हेतु माननीय मुख्यमंत्री जी को कष्ट देने की आवश्यकता नहीं है”.

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