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नियुक्ति जांच के घेरे में, पद पर रहते फंड डायवर्जन, बिजलीघर फूंकने का दोषी फिर भी संजय तिवारी की पौ बारह   

अफसरनामा ब्यूरो 

लखनऊ : योगी सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की घोषित नीति के बाद भी ऊर्जा विभाग में अफसरों का खेल जारी है. विभाग में उत्पादन निगम के निदेशक कार्मिक संजय तिवारी की नियुक्ति फंड डायवर्जन के एक मामले में चल रही जांच के बाद भी की गयी, यही नहीं संविदा पर चल रहे इसी निदेशक कार्मिक को एक दूसरे मामले में दोष सिद्ध आरोपी होने के बाद भी अभी तक उसको उक्त पद पर बरकरार रखा गया है. जबकि सरकार ऐसे अफसरों को पदमुक्त करने की वकालत करती रही है. अभी सरकार ने आयकर विभाग में पूर्व प्रधान आयकर आयुक्त सहित कुल 15 उच्च अफसरों को जबरन रिटायर कर दिया है जिनमें एक अधिकारी को 15 हजार की रिश्वत लेते दबोचा गया था. लेकिन इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि आयकर में 15 हजार का घूस लेने वाला जबरन रिटायर कर दिया गया और उत्पादन निगम में करीब 500 करोड़ सरकारी धन को स्वाहा करने और गलत तरीके से करोड़ों का फंड डायवर्जन करने वाले वाले निदेशक कार्मिक को बचाया जा रहा है.

उत्पादन निगम में भ्रष्टाचारी की पहले नियुक्ति और फिर उसको बचाने की पूरी कवायद ऊर्जा विभाग के जिम्मेदारों द्वारा की जा रही है. भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की मुख्यमंत्री योगी की हर मुहिम को सविदा पर चल रहे निदेशक कार्मिक संजय तिवारी के मामले में धता बताने का काम किया जा रहा है. संजय तिवारी की नियुक्ति में की गयी अनियमितता से लेकर ओबरा अग्निकाण्ड तक जिस तरह से संरक्षण देने का काम किया जा रहा है, वह तमाम तरह के सवाल खड़े करता है. फिलहाल अलोक कुमार द्वारा प्रबंध निदेशक सैंथिल पांडियन को भेजे गए 5 सितम्बर के पत्र के आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि ओबरा अग्निकांड जिसमें सरकार का करीब 500 करोड़ रुपया स्वाहा हो गया और निदेशक कार्मिक संजय तिवारी दोष सिद्ध आरोपी साबित हुए, उसमें संजय तिवारी पर त्वरित कार्यवाही करने के बजाय मामले को लम्बा खींचने का काम किया जा रहा है.

ज्ञातब्य है कि पूर्व मुख्य सचिव द्वारा एक आदेश जारी कर विभागों को निर्देश दिए गए थे कि भ्रष्ट अफसरों की स्क्रीनिंग करके उनको सेवा से बाहर किया जाय या फिर उनपर उचित कार्यवाही की जाय. विभागों में इस तरह की स्क्रीनिंग का काम कार्मिक प्रबंधक का होता है लेकिन उत्पादन निगम के कार्मिक प्रबंधक संजय तिवारी द्वारा इस तरह का कोई कदम नहीं उठाया गया. कारण साफ़ है कि जब उनकी खुद की नियुक्ति और कार्यकाल कार्यवाही की जद व सवालों के घेरे में है तो वह यह काम कैसे करेंगे. इसके अलावा शासन द्वारा 25 फरवरी 2019 को पत्र संख्या-235-पारे0अनु-16/पाट्राकालि-2019 के सन्दर्भ में दिए गए जवाब में स्पष्ट लिखा है कि संजय तिवारी कार्मिक प्रबंधक एवं प्रशासन के पद पर संविदा पर एवं अस्थायी रूप से तैनात है. पत्र में उनपर यथोचित कार्यवाही अपने स्तर सुनिश्चित करने को कहा गया है. इन सबके बावजूद अभी तक संजय तिवारी पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है जोकि प्रबंधन की मंशा पर सवाल खड़े करता है. विभागीय कर्मचारियों में कौतूहल यह भी है कि क्या तबादला सीजन के बाद अब संजय तिवारी को प्रमोशन का सीजन इन्जवाय करने का मौका दिया जा रहा है.

शासन का पत्र जिसमें संजय तिवारी को संविदा पर बताया गया और कार्यवाही सुनिश्चित करने को कहा गया है.

संजय

तिवारी के निदेशक कार्मिक के पद पर चयन में भी अनियमितता

निदेशक पद पर 1 वर्ष के लिए संविदा पर चयन किये जाने के बाद चयनित अफसर की कार्यप्रणाली आदि के संतोषजनक पाए जाने पर उसको स्थायी किये जाने का प्रावधान होने के बावजूद संजय तिवारी के चयन के करीब 2 वर्ष पूरे होने को हैं लेकिन उनको अभी तक स्थायी नहीं किया जा सका है. संविदा पर चल रहे संजय तिवारी को स्थायी न किये जाने के कारणों का दस्तावेजी सबूत के साथ “अफसरनामा” खुलासा कर रहा है. दिनांक 10 अक्टूबर 2017 को संजय तिवारी की निदेशक कार्मिक के पद पर नियुक्ति प्रमुख सचिव उर्जा अलोक कुमार द्वारा कर दी जाती है, जबकि संजय तिवारी पर पहले से ही गलत तरीके से एक फंड डायवर्जन के मामले में थर्ड पार्टी (सीए फर्म) द्वारा जांच कराए जाने का आदेश हो चुका था और इसकी मानिटरिंग के लिए एक विभागीय कमेटी दिनांक 09 अगस्त 2017 को पत्रांक संख्या 329/उ0नि0लि0/मु0म0प्र0(वित्त)/ओ0 एंड एम0 गठित की गयी थी और गठित कमेटी की कापी अध्यक्ष पावर कारपोरेशन को भी भेजी गयी. ऐसे में सवाल यह है कि जब किसी पर वित्तीय भ्रष्टाचार की जांच चल रही हो तो उसको निदेशक कैसे बनाया जा सकता है. लेकिन नियम विरुद्ध किये गए इस चयन का परिणाम यह रहा कि संजय तिवारी आज तक संविदा पर है और उत्पादन निगम का कार्मिक विभाग भ्रष्टाचार को लेकर सुर्ख़ियों में रहा है.

संजय तिवारी का निदेशक कार्मिक का नियुक्ति पत्र.

CGM ओबरा के पद पर रहने के दौरान कई बार नियम विरुद्ध Priority क्रम को तोड़ भुगतान किया, उसमे ऐसे भी भुगतान कराए जो तुरंत प्लांट चलाने के लिए आवश्यक भी नहीं थे.

इसके अलावा संजय तिवारी को निगम द्वारा 28 फरवरी को उसके रिटायरमेंट के दिन जिस ओबरा अग्निकांड का जिम्मेदार ठहराया गया और चार्जसीट दी गयी, उसी ओबरा परियोजना में अपने परियोजना प्रबंधक रहने के दौरान उसका जो नया कारनामा सामने आ रहा है वह काफी चौंकाने वाला है. संजय तिवारी ने अपने CGM ओबरा के 3 साल के कार्यकाल में कई बार Priority क्रम को तोड़कर भुगतान कराने के लिए बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का काम किया और उसमे ऐसे भी भुगतान कराए जो तुरंत प्लांट चलाने के लिए आवश्यक भी नहीं थे. दूसरे शब्दों में कहें तो धन लेने के लिए हर महीने फ़ंड आते ही मंडी लग जाती थी और पैसे लेने के लिए पैसे की बोली लगती थी. इसकी शिकायत लखनऊ निदेशालय पहुंचने पर जांच गठित की गई और जांच मे ये दोषी पाए गए.

फंड डायवर्जन के मामले में जांच कर रही मेंसर्स जमुना शुक्ला के साथ सुपरविजन के लिए बनी कमेटी का आदेश.

बताते चलें कि संजय तिवारी पर निदेशक कार्मिक बनाये जाने के पहले ओबरा परियोजना के CGM पद पर रहने के दौरान वित्तीय अनियमतता का आरोप लगा था. जिस पर तत्कालीन CMD कामरान रिजवी ने निदेशक वित्त की संस्तुति पर 09 अगस्त 2017 को पत्रांक संख्या 330/UPRVUNL/CGM द्वारा चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्म मेसर्स जमुना शुक्ला एंड एसोसिएटस, वाराणसी को ओबरा परियोजना की 01.04.2016 से 30.06.2017 अवधि तक का स्पेशल आडिट कराए जाने का आदेश सौंपा था. चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्म द्वारा तय अवधि में किये गये आडिट की रिपोर्ट को निदेशक वित्त को सौंपा गया था. सूत्र बताते हैं कि फर्म की रिपोर्ट को निदेशक वित्त द्वारा संजय तिवारी पर कार्यवाही हेतु CMD को भेज दिया, जिसको CMD ने निदेशक कार्मिक को कार्यवाही हेतु भेज दिया. इसी बीच निदेशक कार्मिक के पद पर संजय तिवारी का चयन हुआ और चयन में उसके द्वारा इस जांच और कार्यवाही के तथ्यों को छिपाया गया तथा फाईल को भी कहीं गुमनाम अँधेरे में डाल दिया.

फंड डायवर्जन के मामले की जांच के बाद मेसर्स जमुना शुक्ला द्वारा रिपोर्ट जमा किये जाने का पत्र.

निदेशक कार्मिक बनाये जाने के पहले CGM ओबरा रहे संजय तिवारी की लापरवाही और भ्रष्टाचार का ही परिणाम रहा ओबरा अग्निकांड जिसमें जनता के करीब 500 करोड़ स्वाहा हो गए. इस तरह निदेशक कार्मिक पद पर संजय तिवारी की गलत तरीके से की गयी तैनाती और ओबरा अग्निकांड के बाद भी अभी तक पद पर बनाये रखना व संरक्षण दिया जाना खुद में साबित करता है कि संजय तिवारी को बचाया जा रहा है. जबकि फंड डायवर्जन के मामले सहित संजय तिवारी को बचाने वाले का भी खुलासा किया जाना आवश्यक है.

भ्र्ष्टाचार और मनमाने पन का आलम यह है कि फंड डायवर्जन मामले में विभाग द्वारा जो कमेटी बनाई गई वह जांच करने वाले अधिकारी इसी आरोपी निदेशक कार्मिक संजय तिवारी के अंडर में थे. ऐसे में GM HR या फिर कोई अन्य अपने निदेशक कार्मिक के खिलाफ कैसे जाँच कर सकता है. और जब एक स्वतंत्र एजेंसी मेसर्स जमुना शुक्ला एसोसिएट ने जांच किया भी तो मामले को अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर दबा दिया गया और आज तक उस रिपोर्ट पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकी. इसके अलावा निदेशक कार्मिक के पद पर संविदा पर कार्यरत संजय तिवारी ओबरा अग्निकांड वर्ष 2017 में लिप्त पाए जाने पर चार्जसीटेड है और नियमित सेवा से रिटायर हो चुके हैं. लेकिन इतना सब होने के बावजूद किस आधार पर अपने पद पर बने हुए हैं और इन्हें किस का संरक्षण प्राप्त है. यदि इसकी जांच कराई जाए तो एक बड़े घोटाले से पर्दा उठ सकेगा. दूसरा विद्युत विभाग में उत्पादन निगम में सरकार द्वारा थर्ड पार्टी ऑडिट के आदेश दिए गए हैं लेकिन ऐसे अधिकारी निर्णायक पदों पर आसीन है तो आडिट प्रक्रिया प्रभावित होने और उसकी रिपोर्ट से छेड़छाड़ की संभावना हो सकती है. फंड डायवर्जन मामले में आरोपी जिसकी आडिट मेसर्स जमुना शुक्ला एसोसिएट नामक चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म द्वारा कराई गई लेकिन संजय तिवारी को बचाने के लिए उक्त रिपोर्ट को ही सीन से गायब कर दिया गया है. सूत्रों के मुताबिक अब एकबार फिर से नई विभागीय कमेटी बनाये जाने की प्रक्रिया चल रही है.

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