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नगर विकास में रार, विशेष सचिव की पत्नी का कथित पत्र वायरल, ACS पर लगाये गंभीर आरोप, 3 पीओ की पुनः प्रतिनियुक्ति भी चर्चा में

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के नगर विकास विभाग और सुर्ख़ियों का सम्बन्ध इस समय चोली दामन का हो चुका है. कभी प्रधानमन्त्री आवास के नाम पर योगी सरकार को वाह वाही दिलाने वाला नगर विकास विभाग आजकल एक अलग ही सुर्खियाँ बटोर रहा है. नगर विकास विभाग में विगत महीनों से चली आ रही रार और उसके पीछे के कारणों तथा प्रदेश की अफसरशाही के हालिया घटनाक्रम को अगर देखा जाय तो जीरो टोलरेंस व पारदर्शिता की वकालत करने वाली और भ्रष्टाचार की विरोधी योगी सरकार की अफसरशाही की हकीकत सामने आती है.

नगर विकास विभाग में पिछले कुछ महीनों से सब ठीक नहीं चल रहा है और नगर विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव रजनीश दूबे के पद संभालने के साथ ही तमाम तरह की चर्चाएँ सामने आ रही हैं. विभाग में जहां वीसी के दौरान नगर आयुक्तों को धमकाये जाने और जेल तक भेजने की धमकी दी जाती है तो वहीं अब विशेष सचिव नगर विकास अवनीश शर्मा की पत्नी का वह पत्र चर्चा में है जिसमें उन्होंने खुद को अवसाद में जाने और रजनीश दूबे को पूर्वाग्रह से ग्रसित बताया है. साथ ही अवसाद के चलते खुद को किसी अनहोनी से इनकार नहीं किया है. ऐसे में एक सवाल जरूर जन्म ले रहा है कि क्या अब नगर विकास विभाग सही काम कर रहा है और पहले भ्रष्ट था या फिर पहले सही था और अब उसमें कमियाँ आ गयीं हैं जिससे कि तमाम तरह के विवाद सामने आ रहे हैं.

पिछले दिनों नगर विकास विभाग में निदेशक स्थानीय निकाय शकुन्तला गौतम अचानक लीव पर चली जाती हैं और उसके पहले नगर विकास विभाग में ही अपर मुख्य सचिव नगर विकास रजनीश दूबे के कथित अत्याचारों से व्यथित होकर विशेष सचिव अवनीश शर्मा मेडिकल की छुट्टी पर चले गए थे. और बाद में अपर मुख्य सचिव रजनीश दूबे ने अवनीश शर्मा की सरकारी गाड़ी व ड्राईवर छीन लिया था. और अब विशेष सचिव अवनीश शर्मा की पत्नी द्वारा अपर मुख्य सचिव नियुक्ति को लिखा गया वह पत्र वायरल हो रहा है जिसमें श्रीमती शर्मा के द्वारा अपर मुख्य सचिव नगर विकास रजनीश दूबे को अपने पति अवनीश शर्मा से पूर्वाग्रह से ग्रस्त होने और सेवा सम्बन्धी गंभीर क्षति पहुंचाए जाने का आरोप लगाया है. साथ ही उनके किसी अन्य विभाग में स्थानान्तरण की मांग की है और खुद को अवसाद में बताने व खुद के साथ किसी तरह की अनहोनी की आशंका भी पत्र में श्रीमती शर्मा द्वारा व्यक्त किया गया है.

आईएएस अवनीश शर्मा का कथित पत्र

ऐसे में अब सवाल उठ रहा है कि आखिर क्या हो रहा है यूपी के नगर विकास मुख्यालय में? अवनीश शर्मा के बाद एसीएस नगर विकास रजनीश दुबे की प्रताड़ना व अपमान से आहत एक और आईएएस अफसर निदेशक स्थानीय निकाय नगर विकास शकुंतला गौतम मेडिकल लीव पर चली गयीं. पूर्व में विशेष सचिव आईएएस अवनीश शर्मा ने भी रजनीश दुबे के कार्य व्यवहार को लेकर नाराजगी जताई थी. जानकार बताते हैं कि ऐसे ही एक झूठी साज़िश के तहत रातों रात निदेशक सूडा रहे उमेश प्रताप सिंह को राजस्व परिषद भेज दिया गया. जबकि उमेश प्रताप के ही समय में उत्तर प्रदेश ने पूरे देश में पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी योजना प्रधानमन्त्री आवास योजना में प्रथम स्थान हासिल किया था जिसको कि सरकार ने खूब प्रचारित भी कराया था. वैसे तो सरकार का यह अपना विवेक होता है कि वह किस अफसर से कौन सा और कैसे काम ले, लेकिन उमेश प्रताप सिंह के अचानक राजस्व परिषद भेजे जाने के पीछे का कारण अभी तक रहस्य में है.

जानकार बताते हैं कि नगर विकास विभाग में हालिया घटित घटनाक्रम को अगर देखा जाय तो एक बात जरूर सामने आती है कि क्या अब नगर विकास विभाग सही काम कर रहा है और पहले भ्रष्ट था या फिर पहले सही था और अब उसमें कमियाँ आ गयीं हैं जिससे कि तमाम तरह के विवाद सामने आ रहे हैं. विगत दिनों से तीन परियोजना अधिकारियों की नियम विरुद्ध सूडा/डूडा में तैनाती भी इस समय चर्चा में है और प्रकरण में तमाम तरह के भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं. बताया जा रहा है कि जब किसी परियोजना अधिकारी को उसकी नकारा कार्यशैली के चलते निदेशालय स्तर से उसको वापस उसके मूल विभाग में भेज दिया जाता है तो उसी परियोजना अधिकारी को वापस सूडा अथवा डूडा में लाने के लिए शासन अधिकृत होता है. वित्त के शासनादेश के अनुसार शासन को इसके लिए पहले वित्त विभाग से अनुमोदन लेना चाहिए अथवा मुख्यमंत्री से अवलोकन कराना चाहिए. जबकि उक्त प्रकरण में प्रतिनियुक्ति के आदेशों को तोड़ मरोड़ कर नियमों को दरकिनार किया जा रहा है.

वित्त विभाग का प्रतिनियुक्ति को लेकर शासनादेश

लेकिन ऐसा क्या है इन तीन परियोजना अधिकारियों में जिसके चलते नियमों को भी दरकिनार करते हुए वापस तैनाती करा दी गयी है. अयोध्या, आजमगढ़ और मेरठ के ये परियोजना अधिकारी शासन के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों हो गए हैं अभी इस पर से पर्दा उठना बाकी है. मिली जानकारी के अनुसार परियोजना अधिकारियों के करीब दर्जन भर इस तरह के मामले हाईकोर्ट में अभी भी लंबित हैं.

पार्टी विद डिफ़रेंस का नारा देनी वाली भाजपा और अफसरों की तैनाती में मेरिट का राग अलापने वाली योगी सरकार की मंशा को किस तरह ठेंगा दिखाया जा रहा है वह कानपुर में पुलिस के एक सीओ के रंगरेलियाँ मनाते हुए पकड़े जाने, उन्नाव में सीडीओ द्वारा एक पत्रकार की सरेआम पिटाई किये जाने और प्रधानमन्त्री आवास योजना में उत्तर प्रदेश को देश में प्रथम स्थान दिलाने वाले अफसर उमेश प्रताप सिंह को राजस्व परिषद भेजे जाने से साफ़ हो जाता है. अफसरों की तैनाती में मेरिट का जिक्र कई बार मुख्यमंत्री योगी भी कर चुके हैं लेकिन कुछ उदाहरण तो उनकी इस हकीकत को समझने के लिए काफी हैं. फिलहाल जो भी हो अगर सरकार ने इस मामले के निस्तारण में कोई पहल नहीं किया तो जिस तरह से क्रिया व् प्रतिक्रया का दौर चल रहा है उससे इस चुनावी वर्ष में किसी तरह का लाभ नहीं दिखाई देता बल्कि हानि जरूर है. विभाग में फ़िलहाल शह मात का खेल जारी है.

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